पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक की यह सम्पूर्ण सृष्टि पंचतत्वों से निर्मित है और पंचतत्वों की ही यह माया है जो सर्वत्र भासित है। बात प्रकृति की हो या प्राणी की, हर किसी का निर्माण पंचतत्वों से ही हुआ है।
इन तत्वों के बने रहने, पुनर्भरण होते रहने तक ताजगी, ऊर्जा और जीवनीशक्ति बनी रहती है जबकि इनके असंतुलन से मानसिक और शारीरिक बीमारियाँ शुरू हो जाती हैं। इनका क्षरण होने पर जीवन का क्षरण हो जाता है। इस दृष्टि से पंच तत्वों का संतुलन बनाए रखना और इनका निरन्तर रोजाना पुनर्भरण होते रहना सभी चराचर जगत के लिए अपरिहार्य आवश्यकता है।
इंसान की ही बात करें तो पंचतत्वों के संतुलन को हमेशा, हर क्षण बनाए रखने से ही जीवनीशक्ति का संचार उपयुक्त स्तर पर बना रहता है और इसका तनिक सा संतुलन बिगड़ जाने पर शरीर, मन-मस्तिष्क आदि सब कुछ जवाब देने लगते हैं।
हमारी अधिकांश समस्याओं, बीमारियों और तनावों का मूल कारण पंचतत्वों का अनुपात गड़बड़ा जाना ही है। सभी प्रकार के उपचार और औषधियां भी तभी कारगर सिद्ध हो सकती हैं जबकि पंच तत्वों का संतुलन बना रह सके। इसके बिना सब कुछ निष्प्रभावी ही रहता है।
इस दृष्टि से हर इंसान के लिए जरूरी है कि वह पंचतत्वों के नियमित और पर्याप्त पुनर्भरण के प्रति हमेशा सचेष्ट रहे ताकि इन तत्वों का संतुलन बना रहे और जहाँ किसी तत्व की मात्रा या गुणवत्ता में कमी आ जाए, इसकी पूर्ति समय पर हो सके।
जिन तत्वों से इंसान बना है उन सभी तत्वों की जीवन भर भरपूर आवश्यकता बनी रहती है और यह आवश्यकताएं प्रकृति और परिवेश के मौलिक तत्वों से ही पूर्ण हो पाती हैं। इनके लिए किसी भी प्रकार की कृत्रिमता का कोई उपयोग संभव नहीं है, और न ही किसी भी प्रकार की दवाइयों से शरीर को ठीक रखा जा सकता है।
पंचतत्वों के संतुलन के बगैर दवाइयां हमारे लिए किसी वेंटीलेटर की ही तरह हुआ करती हैं। जीवन की ढेरों समस्याओं और बीमारियों का निदान हम पंचतत्वों की संतुलन थैरेपी से संभव है। जो जितना प्रकृति के अधिक करीब रहता है उसे पंचतत्वों की भरपूर आपूर्ति होती रहती है और इस कारण संतुलन बना रहता है।
इसके बावजूद यदि कोई बीमारी हो जाए तब यही समझा जाना चाहिए कि मिथ्या व्यवहार, असंयमित व स्वेच्छाचारी जीवन तथा व्यसन ही संतुलन बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं अन्यथा जिन-जिन इलाकों में प्रकृति के बीच जो लोग रहते हैं उनमें पंच तत्वों का संतुलन हमेशा उच्चतम स्तर पर होता है और सेहत के मामले में मौलिकता बनी रहती है।
ऎसे लोग दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से ज्यादा प्रभावित नहीं होते बल्कि इनमें बाहरी तत्वों से लड़ने की अपार क्षमताएं होती हैं। वायु तत्व की पूर्ति के लिए रोजाना खुली हवा में भरपूर साँस लें और यह अभ्यास डालें कि गहरे तक श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया बनी रहे।
इसी प्रकार आकाश तत्व का संतुलन बनाए रखने के लिए संकीर्ण और घने स्थानों पर न रहें। मजबूरी ही हो तो रोजाना कम से कम आधा घण्टा शहर-गांव से दूर जाकर खुले मैदानों और पहाड़ों में भ्रमण करें। इससे आकाश तत्व और पृथ्वी तत्व दोनों की भरपाई हो जाती है।
जल तत्व की भरपाई के लिए नदी-नालों और तालाबों आदि जलाशयों, कूओं और बावड़ियों के आस-पास कुछ समय रहें, जल को देखें। अग्नि तत्व की कमी आजकल इंसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। एयरकण्डीशण्ड माहौल ने इंसानों को अग्नि तत्व से दूर कर दिया है। ऎसे में अग्नि तत्व का संतुलन बनाए रखने के लिए मौसम के अनुसार 5 से 15 मिनट तक सूर्य की रश्मियों से स्नान करने का अभ्यास डालें।
पाँचों ही प्रकार के तत्वों की उपयुक्त और पर्याप्त भरपायी हो जाने से मन-मस्तिष्क और शरीर तक को नवीन ऊर्जा तथा ताजगी प्राप्त होती है और इसका जो आनंद आता है उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। जो लोग पंच तत्वों का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं उनके जीवन में दरिद्रता और असंतोष कभी नहीं होते बल्कि हर परिस्थिति में मस्त रहने की आदत अपने आप आ ही जाती है।