कविता – 1
बढ़ते चलो – बढ़ते चलो,
नित सीढ़ियां चढ़ते चलो,
गीता को हृदयंगम करो
मत दीनता धारो कभी।
मत हार को उच्चारो कभी ….
जीवन मिला है जीतने को,
नैराश्य भाव मेटने को,
मत फटकने दो उदासियों
को और ना हारो कभी।।
मत हार को उच्चारो कभी ….
संपूर्ण पृथ्वी लोक में,
कोई ग्रस्त ना हो शोक से,
ह्रदय की स्वर लहरियों को
अनायास ना मारो कभी।।
मत हार को उच्चारो कभी ……
हर श्वास का क्रम कह रहा,
आश की डोर से वह बंध रहा ,
गतिशीलता के श्रृंगार से
जीवन को तुम धारो सभी ।।
मत हार को उच्चारो कभी ……
चाहे मिले अभिशाप तुमको,
और मिले भयंकर ताप तुमको,
महा संकल्प मन में धारकर
जीत को मत बिसारो कभी।।
मत हार को उच्चारो कभी ….
तुम जीत और हार को,
सहज हो स्वीकार करो,
‘राकेश’ मिले परिणाम जो भी
उसे विनम्रता से धारो सभी।।
मत हार को उच्चारो कभी ….
( “मेरी इक्यावन कविताएं” नामक मेरी पुस्तक से )
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत