गाजियाबाद। ( ब्यूरो डेस्क ) उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव ज्यों – ज्यों नजदीक आते जा रहे हैं त्यों – त्यों चुनावी सरगर्मियां तेजी से बढ़ती जा रही हैं। सत्ता के गलियारों में जहां राजनीतिक दल आने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी जीत के दम खम ठोक रहे हैं वहीं प्रदेश के मतदाताओं में भी धीरे-धीरे चुनावी बुखार चढ़ने लगा है। लोग बेबाकी से अपने विचार रख रहे हैं और सोशल मीडिया पर स्पष्ट शब्दों में अपने मनपसंद दल के बारे में बोलते हुए देखे जा सकते हैं।
चर्चा है कि फरवरी के महीने में ही विधानसभा चुनाव 7 चरणों में पूर्ण कर लिया जाएगा और 15 मार्च से पहले ही प्रदेश को नई सरकार मिल जाएगी । इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , राजनाथ सिंह आदि प्रदेश में अपना पूरा समय दे रहे हैं और ताबड़तोड़ रैलियां करके चुनावी बुखार को बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
अखिलेश यादव ने सत्ता प्राप्ति के लिए इस समय चाचा शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ जारी जंग को रोक दिया है। चाचा ने भी भतीजे के सिर पर हाथ रख दिया है और चाचा भतीजा की जोड़ी इस बार फिर ‘परिवार की सरकार’ बनाने की जुगत भिड़ा रही है । बुआ – बबुआ और दो लड़कों का खेल खत्म हो गया है, पर ‘परिवार’ फिर सत्ता स्वार्थ के लिए ही सही पर एक साथ आ गया है। सारे खेल को प्रदेश का मतदाता भी बड़ी गहराई से समझ रहा है और जितनी चौकसी बrtते हुए राजनीतिक दल अपनी तैयारी कर रहे हैं उतनी ही चौकसी के साथ अपनी वोट किसे दी जाए ? – इस पर मतदाता भी ध्यान रख रहा है।
सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने लिए रथ तैयार करवा लिया है। बसपा और कांग्रेस भी बड़ी तेजी से चुनावी तैयारियों में जुटी हुई दिखाई दे रही हैं। मतदाता को लूटने, ठगने ,छलने के सारे हथकंडे अपनाते हुए राजनीतिक दल दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि प्रदेश के मतदाता के बारे में यह बात भी सच है कि अब वह 80 के दशक से पहले वाला मतदाता नहीं है, जिसे बड़े आराम से बहकाया जा सकता था। अब वह बहुत सावधान है और वह जानता है कि उसकी वोट की कीमत क्या है ?
एबीपी-सी वोटर के सर्वे में यूपी चुनाव को लेकर बड़े अनुमान लगाए गए हैं। जनता की राय में भले ही अब भी भाजपा पहले नंबर पर है, लेकिन सपा भी कमजोर नहीं है और मुकाबला दो ध्रुवीय रह जाने के चलते कड़ा होने की संभावना है। इसके उपरांत भी भाजपा के लिए यह खुशखबरी है कि प्रदेश के 49% लोग अभी भी योगी आदित्यनाथ के साथ खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं पिछले सप्ताह के बाद यह वृद्धि भाजपा के लिए निश्चय ही उत्साहवर्धक है।
एबीपी-सी वोटर की ओर से 29 दिसंबर को जनता की राय ली गई, जिसमें से 49 फीसदी लोगों ने कहा कि भाजपा सत्ता में वापसी कर सकती है। इसके अलावा 30 प्रतिशत लोग सपा के पक्ष में दिखाई दिए। साफ है कि समाजवादी पार्टी भी मुकाबले में मजबूती के साथ है। सर्वे में शामिल 8 फीसदी लोग मायावती की सरकार के पक्ष में दिखे तो 6 फीसदी लोगों ने कांग्रेस को भी मजबूत दावेदार माना है। 2 प्रतिशत ने अन्य और 3 प्रतिशत ने त्रिशंकु विधानसभा होने की बात कही है। तीन प्रतिशत लोगों ने पता नहीं में जवाब दिया था। दिलचस्प बात यह है कि बीते सप्ताह के मुकाबले भाजपा की ताकत बढ़ती दिखी है।
इससे पहले 23 दिसंबर को यही सवाल लोगों से पूछा गया था तो करीब 48 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि बीजेपी को दोबारा यूपी की सत्ता मिलेगी। 31 प्रतिशत लोगों ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का नाम लिया था। 7 प्रतिशत ने कहा था कि बसपा की सरकार यूपी में बनेगी। 6 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि कांग्रेस का दशकों पुराना वनवास खत्म होगा। इस तरह से देखें तो बीते एक सप्ताह में भाजपा का माहौल पहले से बेहतर हुआ है। क्षेत्रवार भी बात करें तो पूर्वांचल से लेकर अवध, बुंदेलखंड और पश्चिम तक में भाजपा भारी पड़ रही है। दिलचस्प बात यह है कि जिस पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन का असर माना जा रहा था, वहां भी वह सपा, बसपा जैसे दलों से आगे है।
अवध में भाजपा को 44 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं, जबकि सपा को 31 और बसपा को महज 10 पर्सेंट वोट ही मिलने का अनुमान है। कांग्रेस 8 फीसदी वोट हासिल कर सकती है। पश्चिमी यूपी में भाजपा का ही दबदबा है। यहां उसे 40 फीसदी वोट शेयर मिलता नजर आ रहा है। इसके अलावा सपा को 33 फीसदी मत मिल सकते हैं। यहां बसपा 15 फीसदी मत पा सकती है। कांग्रेस यहां भी 7 फीसदी पर ही सिमट सकती है। पूर्वांचल में130 सीटें हैं, जो किसी भी पार्टी को सत्ता के शीर्ष पर ले जाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। यहां भाजपा को 41 तो सपा को 36 पर्सेंट वोट मिल सकते हैं। बुंदेलखंड में 19 सीटें हैं। यहां भाजपा 42 फीसदी वोट पा सकती है। सपा यहां मुकाबले में काफी करीब है और 33 फीसदी वोट पा सकती है।
इस प्रकार के आकलन से स्पष्ट होता है कि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में फिर से सत्ता संभाल सकते हैं। यद्यपि इसके उपरांत भी चुनावी परिणामों के बारे में कोई स्पष्ट राय नहीं दी जा सकती। क्योंकि अंतिम परिणाम आने तक मतदाता का क्या रुझान होगा या उसका दृष्टिकोण क्या हो सकता है ? – यह सब भविष्य गर्भ में ही समाया हुआ है।
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