मौत के सौदागरों को सख्त सजा दें
छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों से महिलाओं के अचानक मरने और बीमार होने की खबर आई तो मैं हतप्रभ रह गया लेकिन मैंने यह सोचकर तत्काल प्रतिक्रिया नहीं की कि ऐसे मामलों में असली दोषियों का तुरंत पता लगाना मुश्किल हो जाता है। मेरा शक सही निकला। अब मालूम पड़ा है कि जिन औरतों की नसबंदी की गई थी, उन्हें शल्य-चिकित्सा के बाद जो दवा दी गई थी, उसमें चूहे मारने की दवा मिली हुई थी याने जहर मिला हुआ था। जैसे चूहे मरते हैं, ऐसे औरतें मर गईं। ताजा खबर यह है कि वे ही गोलियां खाने के कारण दो आदमियों ने भी दम तोड़ दिया है। शुरु में सब यह मानकर चल रहे थे कि इस हत्याकांड के लिए वह डॉक्टर जिम्मेदार है, जिसने नसबंदी की थी।
यह थोड़े संतोष की बात है कि छत्तीसगढ़ सरकार की मुस्तैदी के कारण इन निर्मम मौतों का असली कारण इतनी जल्दी पता चल गया। रायपुर की एक दवा-निर्माता कंपनी महावर फार्मा के गोदाम पर छापा मारा गया तो इस मिलावटी जहरीला दवा की लगभग 50 लाख गोलियां पकड़ी गईं। जिस कारखाने में से यह दवा पकड़ी गईं, वही जिंक फास्फेट (चूहेमार दवा) की बोरियां भी पकड़ी गई। सरकार ने नसबंदी करने वाले मुख्य डॉक्टर को पहले ही गिरफ्तार कर लिया था। अब उसने महावर फार्मा के मालिकों को भी गिरफ्तार कर लिया है। उसने प्रदेश की सारी दुकानों से महावर फार्मा की दवाइयां बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया है और एक जांच आयोग भी बिठा दिया है।
इसमें शक नहीं कि छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री के विरुद्ध भंयकर क्रोध का लावा उभर रहा है लेकिन अब यह पता चलना चाहिए कि क्या महावर फार्मा के साथ उनकी कोई सांठगांठ रही है? यदि हां तो यह कम से कम होगा कि वे इस्तीफा दें और अगले 10 साल तक उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाए। यदि उनकी कोई सांठगांठ नहीं तो यह समझ में नहीं आता कि महावर फार्मा के मालिकों पर सिर्फ ठगी (धारा 420) का आरोप क्यों लगाया गया है, उन पर सामूहिक हत्या का आरोप क्यों नहीं लगाया गया? जरुरी यह है कि जांच एक हफ्ते में पूरी हो और एक माह के अंदर-अंदर दोषियों को फांसी पर लटकाया जाए और रायपुर के चौराहे पर लटकाया जाए। जो सरकारी अफसर इस कंपनी से माल मंगाते रहे और जिन इंस्पेक्टरों ने दवा में मिलावट की अनदेखी की, उन्हें कम से कम उम्र-कैद की सजा दी जाए। सभी दोषियों की चल-अचल संपत्ति जब्त की जाए और उसे हताहत लोगों के परिजनों को बांट दी जाए। दोषियों को सजा देते समय सरकार उन दवा-विक्रेताओं और उस दवा कारखानें के कर्मचारियों को भी न भूले जो इस मौत के सौदागर का सिर्फ इसलिए साथ देते रहे कि उनकी जेबें गर्म होती रहें। यदि मौत के इन सौदागरों की सजा में हमेशा की तरह लंबा समय खिंच गया तो वह निरर्थक सिद्ध होगी। सजा इतनी जल्दी और इतनी सख्त होनी चाहिए कि दवाइयों में मिलावट करने वालों की रुह कांपने लगे।