मुलायम और मोदी एक राह पर
मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की महिला शाखा को संबोधित करते हुए एक हिम्मत की बात कह दी। उन्होंने कहा कि औरतें पर्दा क्यों करें? क्या सीता, सावित्री और द्रौपदी पर्दा करती थीं? उन्होंने यह भी कह दिया कि पर्दे का समर्थन करने वालों को पकड़कर जेल में दे मारना चाहिए।
मुलायम सिंह यदि यह नहीं कहते तो भी उनकी राजनीति भली प्रकार चल रही थी। कोई भी नेता समाज-सुधार की बात क्यों करे? उसके बिना भी उनका काम सुचारु रुप से चलता रहता है। अब राजनीति का लक्ष्य बहुत सीमित रह गया है। वोट और नोट कबाड़ना ही सत्य है। बाकी सब मिथ्या है। नोट और वोट ही ब्रह्मा है। सभी नेता आजकल इसी ब्रह्म-साधना में निमग्न रहते हैं।
वो जमाना गया, जब राजनीति का लक्ष्य समाज-परिवर्तन रहता था। गांधीजी सूत कातना सिखाते थे, स्वावलंबन और सफाई का निर्देश देते थे, नशाबंदी के लिए सत्याग्रह करते थे, मंदिर-प्रवेश के लिए विनोबा धरना देते थे, लोहियाजी जात-तोड़ो और अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चलाते थे।
आजकल के नेता इन सब समाज-सुधारों के प्रति निष्ठुर हो गए हैं। ऐसे में मुलायमसिंह ने पर्दे पर प्रहार करके अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है। उनके बयान पर पोंगापंथी हिदुत्ववादी भी बरस पड़ेंगे और कठमुल्ले मौलवियों का तो कहना ही क्या? वे कहेंगे कि पर्दा मतलब बुर्का! मुलायम ने बुर्के पर प्रहार कर दिया। वे अब गुहार लगाएंगे कि मुसलमान मुलायम को वोट न दें। अगर यह खतरा पैदा हो गया तो पता नहीं मुलायम क्या करेंगे?
लेकिन मुलायम को अब अपना पग पीछे हटाने की बजाय आगे बढ़ाना चाहिए। सिर्फ पर्दे के विरुद्ध ही नहीं, दहेज, बहुविवाह, व्याभिचार, नशा, रिश्वत आदि सभी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध अभियान चला देना चाहिए। अंग्रेजी की अनिवार्यता और वर्चस्व के खिलाफ आज प्रचंड अभियान की विशेष जरुरत है लेकिन हमारे पिद्दीनुमा नेताओं में इतना दम भी नहीं है कि वे इन बुराइयों के विरुद्ध जरा-सा मुंह भी खोलें।
देश का दुर्भाग्य है कि अखबारों और चैनलों में ये ही नेता छाए रहते हैं। हमारे संतों और साधुओं को अपनी आरती उतरवाने से फुर्सत नहीं है। वे आत्मरति में अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं। ऐसे में देश को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा कौन देगा? यह एक दिव्य संयोग है कि नरेंद्र मोदी और मुलायम ने समान राह पकड़ी है। एक स्वच्छता अभियान चला रहा है और दूसरे ने पर्दा-प्रथा की बात उठाई है। अगर सभी पार्टियां और सभी नेता इसी तरह कुछ-कुछ सामाजिक बुराइयों के पीछे पड़ जाएं तो भारत के विकास की रफ्तार कई गुना हो जाए।