ललित गर्ग
एक आदर्श एवं संतुलित इंसान की सर्वोपरि प्राथमिकता है उसका हंसता हुआ चेहरा एवं मुस्कराती हुई जीवनशैली। हंसते रहना एक दैवी गुण है, जिस पर अमीरों की सुविधाएं न्यौछावर की जा सकती हैं। हंसने की आदत चित्त को हल्का बनाती है और शरीर को निरोग, दीर्घजीवी एवं सुंदर बनने की सुविधा उत्पन्न करती है। एक खुशनुमा इंसान की सबसे बड़ी जरूरत एवं सबसे बड़ा उपहार यही हो सकता है कि उसका प्रसन्न रहना, मुस्कराते रहना और हंसने की आदत को अपने स्वभाव का अंग बना लेना। प्रसन्नता के संग हम हर पल एक नया जन्म ले सकते हैं, हर पल एक नई शुरुआत हो सकती है। इसी सन्दर्भ में दलाई लामा का मार्मिक कथन है कि प्रसन्नता अपने आप नहीं मिलती। यह आपके अपने कर्मों से ही आती है।’ एक प्रसन्न मनुष्य सुखी होता है और वह संस्कृति व सभ्यता को अपने कर्मों से जीवंत रखता है और एक नये इतिहास का सृजन करता है।
खूबसूरत बनने के लिए किसी ब्यूटी पार्लर में जाकर चेहरे को सुंदर बनाने की आवश्यकता नहीं। चेहरे को सुंदर बनाने का सर्वोत्तम उपाय है-मुस्कुराना। मुस्कान वह टाॅनिक है जो न केवल शारीरिक अपितु मानसिक सुस्ती को दूर कर तन व मन दोनों में स्फूर्ति का संचार करती है। मिनटों की मुस्कान घंटों की थकान को दूर करती है।
महापुरुषों के चेहरे पर हमें सदैव अभिनव क्रांति, सौम्यता व प्रसन्नता के दर्शन होते हैं। मुस्कराती तस्वीर सभी को प्रिय लगती है। यही वजह है कि फोटोग्राफर फोटो खींचने से पूर्व कहता है-‘सर, स्माईल प्लीज!’ मुस्कराने से तस्वीर सुंदर आती है।
चेहरा दिल का दर्पण है। आपका चेहरा यदि गुलाब के फूल-सा हंसता-खिलता है इसका मतलब आपके हृदय में भी प्रसन्नता का निर्झर बह रहा है। आंतरिक प्रसन्नता अवश्य बाह्य जगत में प्रकट होगी। हंसते खिलते चेहरे में चुम्बक-सा आकर्षण होता है। मुस्कुराती आंखें बरबस सभी का ध्यान आकर्षित कर लेती हैं। मुस्कान बेगानों को अपना बनाती है। एक कहावत है ‘सौ दवा एक हवा, सौ हवा एक मुस्कान’। जैसे मुस्कुराता फूल सबका मन मोह लेता है उसी प्रकार हंसता चेहरा सबका प्यारा होता है।
हम उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करें और सद्प्रवृतियों का चिंतन करें। ऐसा करते हुए हमें जो बहुमूल्य रत्न उपलब्ध होगा वह प्रसन्नता ही है। हम सर्वथा निर्धन और अक्षम होते हुए भी इस बहुमूल्य रत्न को उपहार में देने में सक्षम होंगे और यह ऐसा उपहार होगा जो हमें भी समृद्ध बनाएगा और पाने वाले के जीवन को भी सुखी और समृद्ध करेगा। इसके माध्यम से हम कुछ भी करने में सक्षम हो सकते है, चाहे वह हमारी सोच हो, चाहे हमारा जीवन हो या हमारे सपने हों, सब सच हो सकता है। आप जो चाहे कर सकते हैं। आप अनंत ब्रह्मांड की तरह अनंत संभावनाओं से परिपूर्ण बन सकते हैं। बेन्जामिन की उक्ति भी मार्मिक है कि हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु। जिस व्यक्ति के भीतर दिल से निकली सच्ची प्रसन्नता विराजमान रहती है उसका लोक व्यवहार उत्कृष्ट होता है। जीवन में हर ओर प्रसन्नताएं व्याप्त हैं, लेकिन लोग उनको अपने अंतस में प्रवेश नहीं करने देते। जो खुशी होने की और प्रसन्न होने की शक्ति को पहचान जाते हैं। वे छोटी-छोटी बातों में खुशियां-प्रसन्नताएं तलाश कर अपने जीवन को खुशहाल बना लेते हैं। यही नहीं ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिक व नैतिक रूप से बल्किम आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी सशक्त हो जाते हैं।
प्रसन्नता जीवन का प्राणतत्व है, प्रसन्नता के साथ किया गया भोजन अमृत के रूप में परिवर्तित होता है। प्रसन्नता के साथ ली गई दवा विशेष लाभ देती दिखती है। जो सुख-शांति लाखों रुपए खर्च करके प्राप्त नहीं की जा सकती वह प्रसन्नता से सहज सुलभ हो जाती है। जो आनन्द हिल स्टेशनों की यात्रा करके नहीं मिलता और मधुशाला में पहंुंचकर भी नहीं मिलता वह भीतरी पवित्रता से होने वाले प्रसन्न भाव से मिलता है।
एक संत के विषय में यह प्रसिद्ध था कि जो उनके पास जाता है, प्रसन्न होकर लौटता है। वे सहज में आनंदित, सुखी एवं संतुलित जीवन के सूत्र बता देते। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी।
एक धनी व्यक्ति एकाएक सुखी और प्रसन्न होने की चाह लेकर उनके पास गया और जल्दी से उतावलेपन से प्रसन्न रहने की विधि पूछने लगा। संत ने उसकी बात अनसुनी करते हुए एक पेड़ के नीचे बैठे चिडि़यों को दाना चुगाते रहे। चिडि़यों की प्रसन्नता के साथ संत अपने को जोड़कर आनंदविभोर हो रहे थे। संत के इसी स्थिति को देखकर धनी व्यक्ति अपना धैर्य कायम नहीं रख पा रहा था और अधिक उतावलेपन से संत से सुखी और बनने का सूत्र बताने का आग्रह करने लगा। संत अपने काम में आनंदित हो रहा था।
अमीर आदमी उतावला हो रहा था, उसने पुनः संत से प्रसन्न रहने का रहस्य पूछा। अधिक आग्रह पर संत ने अलमस्ती से कहा-दुनिया में प्रसन्न होने का एक ही तरीका है-दूसरे को देना। देने में जो आनंद है, जो सुख है वह और किसी चीज में नहीं है। तुम चाहो तो अपनी अमीरी जरूरतमंदों को लुटाकर स्वयं आनंदित रहने वालों में अग्रणी हो सकते हो। ग्रोचो मार्क्स ने स्वयं को प्रसन्न रखने का रहस्य उद्घाटित करते हुए कहा है कि हर सुबह जब मैं अपनी आंखें खोलता हूं तो अपने आप से कहता हूं कि आज मुझमें स्वयं को खुश या उदास रखने का सामथ्र्य है न कि घटनाओं में, मैं इस बात को चुन सकता हूं कि यह क्या होगी, कल तो जा चुका है, कल अभी आया नहीं है, मेरे पास केवल एक दिन है, आज तथा मैं दिन भर प्रसन्न रहूंगा।’ हर व्यक्ति ऐसी ही सोच से अपने हर दिन को खुशनुमा बना सकता है। ऐसे ही सही तरीके से जीने वाला व्यक्ति अपनी जिंदगी की राहों को जगमगा लेता है और जो जीवन जीने का ढंग नहीं जानते उनका जीवन भारभूत बन जाता है। प्रश्न है परिवार एवं समाज में कैसे जीएं? इस प्रश्न का पहला उत्तर यह हो सकता है कि प्रसन्नता के साथ जीएं, क्योंकि प्रसन्नता से स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और परस्परता भी बढ़ती है। इस गुण के अभाव में 90 प्रतिशत व्यक्ति असफल हो जाते हैं। प्रसन्नता ही वैवाहिक जीवन की सफलता का आधार है और इसी से आध्यात्मिक उन्नति भी संभव है। आंतरिक प्रसन्नता के लिए किन्हीं बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं होती। बड़े-बड़े राजा-महाराजा, सेठ-साहूकारों के समीप सुख-सुविधाओं के प्रचुर साधन होते हुए भी वे दुखी रहते हैं, क्योंकि प्रसन्नचित्त व्यक्ति एक झोपड़ी में भी सुखी रह सकता है और चिंतित व्यक्ति राजमहल में भी दुखी। प्रसन्न मन ही अपनी आत्मा को देख सकता है, पहचान सकता है एवं उस परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है।
हर व्यक्ति के जीवन में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। अच्छाई को देखकर उसका प्रशंसा करना, प्रोत्साहित करना प्रमोद भाव है। इससे सद्गुणों का विकास होता है। आत्म प्रशंसा सुनकर व्यक्ति को जो तृप्ति मिलती है वह घी-दूध से भी नहीं मिलती। जहां कहीं ऐसी अनुकूलता नहीं बन पाती, वहां जीवन में सफलता संदिग्ध हो जाती है। हेलन केलर ने सटीक कहा है कि बेशक दुनिया में तकलीफों की कमी नहीं है, लेकिन इन तकलीफों से पार पाने के रास्ते भी कम नहीं हैं। प्रसन्नता भी एक ऐसा ही रास्ता है जो जिन्दगी को सुगम बनाती है। एक चीनी कहावत है कि व्यक्ति को एक घंटे की खुशी के लिए झपकी लेनी चाहिए। एक दिन की खुशी के लिए पिकनिक पर जाना चाहिए और जिंदगी-भर की खुशी के लिए किसी अनजान व्यक्ति की मदद करनी चाहिए। खुशी व्यक्ति की आंतरिक रूप से मजबूत रखती है।
ब्रिटेन का बहुत बड़ा हास्यकार था-ग्रेमाल्डी। वह बीमार हो गया। डाॅक्टर के पास जाकर बोला, ‘डाॅक्टर! मेरी चिकित्सा करो। मैं बहुत दुःखी हूं। मैं बहुत खिन्न हूं। मैं मानसिक व्यथाओं से घिरा हुआ हूं, पीडि़त हूं।’ डाॅक्टर ने उसका परीक्षण किया। कुछेक प्रश्न पूछे। अंत में डाॅक्टर ने कहा, ‘मैंने तुम्हारी बीमारी का मूल पकड़ लिया है। मैं तुम्हें कोई दवा नहीं दूंगा। मेरा एक परामर्श मानो, तुम स्वस्थ हो जाओगे। तुम एक सप्ताह अपने देश के प्रसिद्ध हास्यकार ग्रेमाल्डी के पास रहो। तुम निरोग हो जाओगे। तुम्हारी मानसिक ग्रंथियां समाप्त हो जाएगी।’
डाॅक्टर का परामर्श सुनकर ग्रेमाल्डी रो पड़ा। उसने कहा, ‘दुनिया को हंसाने वाला, दुनिया को स्वस्थ करने वाला, दुनिया को सुखी बनाने वाला मैं ही हूं ग्रेमाल्डी। पर मैं स्वयं कितना दुखी हूं?’
दुनिया को हंसाने वाला ग्रेमाल्डी ही नहीं, बडे़-से-बडे़ धर्मगुरु, योगाचार्य, शिक्षाशास्त्री, वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर, न्यायाधीश, ज्ञानी और व्यापारी- सभी के जीवन में विरोधाभास देखने को मिलता है। हर व्यक्ति को अपनी थाली खाली प्रतीत होती है तथा दूसरों की थाली में अधिक चिकनाहट अनुभव होता है। ‘दूरस्था पर्वता रम्याः‘ दूर से पर्वत मनोरम प्रतीत होता है, पर निकट पहुंचने पर उसका आकर्षण खत्म हो जाता है। कुछ लोग अपने जीवन से व्यर्थ ही असन्तुष्ट और दुःखी प्रतीत होते हैं, प्रायः उन्हें दूसरों केे जीवन में अधिक सुख-शांति और प्रसन्नता का दर्शन होता है, पर जब उनकी अंतरंग स्थिति से परिचित होते हैं तो स्वयं के अज्ञान पर हंसने लगते हैं। किसी महापुरुष का यह कथन कि ‘आपकी मुस्कुराहट आपके चेहरे पर भगवान के हस्ताक्षर हैं। उसको क्रोध करके अथवा आंसुओं से धोने की कोशिश मत करिए- एक ऐसा मंत्र है जो जीवन को सफल एवं सार्थक बनाता है।