गतांक से आगे….
दक्ष कृतज्ञ मतिमान हो,
ऋजुता से भरपूर।
भृत्य-मित्र को प्राप्त हो,
बेशक धन से दूर ।। 806 ।।
अर्थात जो व्यक्ति चतुर है, उपकार को मानने वाला है, बुद्घिमान है और उसका कुटिलता रहित उत्तम स्वभाव है। ऐसा व्यक्ति धन रहित होने पर भी भृत्यों (सेवकों) और मित्रों के समूह को प्राप्त होता है।
बुरा कहै संसार ये,
जिसको हो अभिमान।
उससे ज्यादा वो बुरा,
जो खोवै स्वाभिमान ।। 807।।
चुगली में रसना सनी,
और बोलै कड़वे बोल।
भक्ति के नाम पै वंचना,
लोग उड़ावें मखोल ।। 808।।
वंचना-धोखा, झांसा, फरेब। प्राय: देखा गया है कि लोग जिस जिह्वा से भगवान का नाम लेते हैं उसी से दूसरों की चुगली करते हैं और इतना कठोर बोलते हैं कि उनकी वाणी तीर की तरह चुभती है। ऐसे लगता है जैसे रसना आग उगल रही हो। उनका मुंह मुखारबिन्द नही रहता, अपितु ज्वालामुखी बन जाता है। ऐसे लोगों के मुख से शीतल शब्द नही अपितु अग्नि के शोले निकलते हैं। ध्यान रहे, ऐसे लोग भक्ति के नाम पर झांसा देते हैं। ऐसे लोगों का सभी मजाक उड़ाते हैं, पाखण्डी, ढोंगी, धोखेबाज न जाने क्या-क्या नाम रखते हैं। सारांश यह है कि भक्ति-मार्ग पर चलने वाले के लिए वाणी और व्यवहार में पवित्रता होनी चाहिए। आत्मसंयम होना चाहिए जैसे रोगी के लिए जितनी औषधि महत्वपूर्ण है उतना ही परहेज नितांत आवश्यक है, अन्यथा औषधि का प्रभाव नही पड़ेगा। ठीक इसी प्रकार भक्ति के नाम पर फरेब करने वाले का प्रभाव नही पड़ेगा और अंततोगत्वा लोग उसका उपहास ही करेंगे।
सर्पयुक्त घर में कभी,
सुख से न सोया जाए।
ऐसे ही पापी के पाप से,
सबका चैन छिन जाए ।। 809।।
वाणी में हो मधुरता,
और धर्मयुक्त व्यवहार।
करूणा धैर्य शांति,
करें ‘श्री’ से घर गुलजार ।। 810।।
श्री-लक्ष्मी
गुलजार-समृद्घि, खुशहाली
पागल पतित और दुष्ट के,
यदि धन होय अधीन।
सारा धन वापिस मिलै,
मत करना कभी यकीन ।। 811।।
भाव यह है कि पागल, पतित और दुष्ट से कभी धन वापिस नही मिलता है।
मूर्ख जहां शासन करें,
और महिला खेलें द्यूत।
एक दिन सब कुछ नष्ट हो,
घर में नाचें भूत ।। 812।। क्रमश: