पुस्तक समीक्षा : क्या कहती हो….
क्या कहती हो ….. नामक पुस्तक के लेखक डॉ दिलीप कुमार पारीक हैं । लेखक की यह पुस्तक काव्यमय है । पद्यात्मक शैली में उनकी यह दूसरी पुस्तक है । जो कि उनकी आजाद नज्मों का संग्रह कही जा सकती है। जब भी कोई कवि कविता लिखता है तो चिड़िया की भांति कविता का घोंसला बनाने के लिए उसे अनेकों स्थानों से तिनके – तिनके चुनने पड़ते हैं। बहुत सारे अनुभवों को सांझा करना पड़ता है और कई बार की माथापच्ची के पश्चात कविता को सही स्वरूप दिया जाता है। इस प्रकार एक कविता के पीछे कवि का बहुत बड़ा पुरुषार्थ और परिश्रम छुपा होता है। यदि कविता के रूप में पूरी पुस्तक ही लिखी गई हो तो कवि को कितना परिश्रम और पुरुषार्थ करना पड़ा होगा ? – इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कहने का अभिप्राय है कि इस पुस्तक को लिखने में कवि डॉ दिलीप कुमार पारीक को जो परिश्रम करना पड़ा है वह निश्चय ही अभिनंदन का पात्र है।
कवि स्वयं लिखते हैं कि किताब में उकेरे गए नज्म मेरे दिल के काफी करीब हैं। मैं अपने आपको इन नज्मों के आसपास पाता हूं। इसमें जो भी लिखा गया है वह एक लंबे समय की यात्रा का परिणाम है। 2014 से लेकर आज तक जो भी आजाद ख्याल दिलो-दिमाग में आए उन सबको इस किताब में प्रस्तुत कर रहा हूं।
पृष्ठ 8 पर लिखते हैं :-
दर्द कुछ यूँ दबाना चाहता हूं,
मैं हर एक चीज भुलाना चाहता हूं,
तुमसे कोई गिला शिकवा नहीं है
बस तुमको आजमाना चाहता हूं।
पृष्ठ 65 पर बहुत ही व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए कभी लिखता है :–
कोई ओहदा कोई रुतबा साथ नहीं जाता,
जो भी है जमीनी खुदा साथ नहीं जाता ।
फूल तोड़ लिए जाते हैं फकत गुलशन से,
मगर कभी कोई बागबां साथ नहीं जाता।।
इसी प्रकार का दृष्टिकोण रखते हुए कवि पृष्ठ 98 पर लिखता है:-
जब दरख्तों के साए में ही जहर है भरा ,
कौन ख्वाहिश रखेगा फिर से सुस्ताने की।
उसका चले जाना ही अच्छा है ‘दिलीप’
जिसने हर दिन धमकी दी चले जाने की।।
अंत में कभी की यह पंक्तियां भी बहुत कुछ कहती हैं :–
अब कैसे कहूं कि मुझ में वह बात नहीं है ,
किसी भी तस्वीर में हम तुम साथ नहीं हैं ।
फूल फरिश्ते फना फकत लफ्ज़ रह गए ,
वह इल्म खो दिए अब वह जज्बात नहीं है।
प्रत्येक कविता में उर्दू शब्दों की भरमार है। जिससे ग़ज़ल तो बन गई है परंतु हिंदी की कविता कहीं दूर उदास खड़ी रह गई है। अपेक्षा की जा सकती है कि श्री पारीक हिंदी साहित्य की सेवा करते हुए आगे इस पर ध्यान देंगे।
पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 302003 हैं। पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141- 2310785 , 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है। पुस्तक अमेजन पर भी उपलब्ध है ।पुस्तक का मूल्य ₹225 है। पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 156 है।
- डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत