किसी भी संप्रदाय, मत, धर्म के मानने वालों के लिए कुछ आवश्यक कार्य निर्देशित किए जाते हैं, दुर्भाग्य से उस धर्म के अनुयाई उस मत का होने का दावा तो करते हैं, परंतु उसके आवश्यक कार्य नहीं करते, अधिकतर को तो यह भी नहीं पता होता कि उस धर्म के क्या कार्य हैं, उसमें वैदिक धर्म इस भाग में सबसे पीछे दिखाई देता है, जिस के अनुयायियों को वैदिक धर्म के आवश्यक कार्य नहीं पता है, इन कार्यों में पांच यज्ञों को भी निर्देशित किया गया है।
अब एक साधारण मनुष्य के मन में प्रश्न उत्पन्न होता है कि वैदिक धर्मी के लिए कौन- कौन से कार्य करने अनिवार्य है? पांच यज्ञ क्या है ? इनके क्या लाभ है? और शास्त्रों में इस विषय पर क्या कहा गया है?
पांच यज्ञ के विषय को निम्न प्रकार से अवलोकन विश्लेषण किया जा सकता है।
- वैदिक धर्मी के लिए पंचमहायज्ञ करने अनिवार्य है, इन पांच यज्ञों को पंचमहायज्ञों के नाम से जाना जाता है और शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को यह अवश्य करने चाहिए, जो नहीं करता वह पाप का भागीदार है।
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सबसे पहले यज्ञ का नाम ब्रह्मयज्ञ कहा गया है, इसका अर्थ है प्रातःसायं ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना , उपासना करना और योग-साधना, जिस प्रकार एक अच्छा व्यक्ति किसी के छोटे से उपकार के लिए भी धन्यवाद करता है, इसी प्रकार क्योंकि ईश्वर ने हमें सब कुछ दिया है इसलिए उसका धन्यवाद करना ही यह यज्ञ है।
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दूसरे यज्ञ को देवयज्ञ के नाम से जाना जाता है, जिसमें अग्निहोत्र , हवन करना आदि है, जो भी पदार्थ आग में जलाया जाता है वह छोटे-छोटे अणुओं को धारण करके सारे ब्रह्माण्ड में फैल जाता है, क्योंंकि इस यज्ञ के द्वारा अग्नि में अच्छे-अच्छे मेवे और पदार्थ डाले जाते हैं, इसलिए इससे वातावरण शुद्ध होता है, जो मनुष्य जितना अधिक वायु को प्रदूषित करता है, उसका उतना ही कर्तव्य हो जाता है कि वह इसको यज्ञ के द्वारा शुद्ध करें।
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तीसरे यज का नाम पितृयज्ञ दिया गया है जिसका अर्थ है जीवित माता पिता, दादा दादी , नाना नानी आदि की सेवा करना। एक व्यक्ति का कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी हो जाता है कि जिन्होंने उसे पाला, रक्षा की, और शिक्षा दे कर अच्छा मनुष्य बनाया, वह उनका ध्यान रखें और जो नहीं करता उससे बड़ा दुर्भाग्य और कोई नहीं है।
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चौथे यज्ञ का नाम अतिथि यज्ञ रखा गया है इसके अनुसार मनुष्य का कर्तव्य है कि वह जो विद्वान, संन्यासी, समाजसेवी महापुरुष उसके घर में आए उनका आदर सत्कार करे, इससे एक और मनुष्य में विनम्रता आ जाती है, दूसरी ओर विद्वानों का अनुभव प्राप्त हो जाता है और अपनी शंकाओं का समाधान भी।
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पांचवे यज्ञ को बलिवैश्वयज्ञ कहां गया है जिसका अर्थ है पशु-पक्षियों आदि की सेवा करना, पशु पक्षी पर्यावरण का महत्वपूर्ण भाग है, और पर्यावरण को सुरक्षित रखना मनुष्य का कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी है।
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वैदिक धर्म में जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए 16 संस्कारों को भी करना अनिवार्य बताया गया है।
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भागवत गीता, सत्यार्थ प्रकाश आदि शास्त्रों में यज्ञों को अनिवार्य बताया गया है, बाल्मीकि रामायण के अनुसार तो न केवल भगवान राम यज्ञ करते थे अपितु उनके पिता ने उनके जन्म से पहले भी यज्ञ करवाया ।
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निष्कर्ष यह है कि प्रत्येक मनुष्य के लिए यज्ञों का अनुष्ठान अनिवार्य है।
दलीप सिंह एडवोकेट
One reply on “मनुष्य जीवन और पंच महायज्ञ”
बहुत बढ़िया प्रस्तुति