दतिया के महान हिंदू शासकों की 400 वर्ष पुरानी इतिहास परंपरा


अनिल सिंदूर

म.प्र. दतिया के प्रथम शासक की छोटी सी रियासत पहाड़ों तथा जंगलों के बीच घिरी बडोनी से शुरू हुई थी लेकिन समाप्त ओरछा के शासक बनने पर हुई। दतिया राज्य के अंग बुंदेलखंड राज्य की नींव कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहारों तथा चंदेलों ने डाली थी। सबसे पहले बुंदेला राजा रुद्रप्रताप ने अप्रैल 1531 में बुंदेलों की प्रसिद्ध राजधानी ओरछा की नींव रखी। रूद्र प्रताप की मृत्यु के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र भारतीचन्द्र ने ओरछा का राजपाट सम्भाला। भारतीचन्द्र ने 1531 से 1554 तक शासन किया। राजा भारतीचन्द्र की मृत्यु के बाद उनके कोई पुत्र न होने के कारण अनुज मधुकर शाह ओरछा के शासक बने जिन्होंने 1554 से 1592 तक शासन किया। राजा मधुकर के आठ पुत्र थे। वीर सिंह बुंदेला उन्हीं आठ पुत्रों में से एक थे। वीर सिंह बुंदेला ने बडोनी को अपना मुख्यालय न बना कर दतिया को मुख्यालय बनाया। वीर सिंह ने दतिया से शुरू कर ओरछा तक का सफ़र तय किया। वीर सिंह बुंदेला ने अपने पुत्र भगवान राय को दतिया का प्रथम शासक बनाया।
भगवान राय के पुत्र शुभकरन बुंदेला जब दतिया के शासक बने तब उन्होंने पहले तालाब की नींव रखी। तालाब का नाम करनसागर रखा गया। करनसागर तालाब लगभग 250 से 300 एकड़ में फैला हुआ था। शुभकरन बुंदेला ने सन 1640 से 1678 तक राज किया। शुभकरन के बाद रामचंद्र बुंदेला ने रामसागर तालाब बनवाया। रामचंद्र का कार्यकाल सन 1707 से 1733 था। रामचंद्र की पत्नी सीता बुंदेला के नाम से सीतासागर तालाब बनवाया गया जिसका क्षेत्रफल लगभग 300 एकड़ से 400 एकड़ था। राम चन्द्र बुंदेला के दीवान देवी लाल के नाम से लाला का ताल तथा तरणताल राजा शत्रु जीत ने तथा राधासागर तालाब भवानी सिंह बुंदेला ने अपनी पत्नी राधा के नाम से बनवाया जो जल प्रबंधन का अद्भुत प्रबंधन कहा जा सकता है। यह सब तालाब एक छोटे से राज्य के चारों ओर बनवाये गये। इस समय दतिया की जनसंख्या वर्ष 2011 के सर्वे अनुसार 1,00446 है जिस समय जल प्रबंधन के लिए तालाबों को स्थापित किया गया उस समय जनसंख्या 5 हज़ार से 10 हज़ार रही हो ये कहना भी मुश्किल ही है। लेकिन भविष्य में जल की महत्ता और आवश्यकता को देखते हुए सभी शासकों ने तालाबों को स्थापित करना महत्त्वपूर्ण समझा। तालाबों को वर्षा जल से ही भरा जाता था। दतिया स्थित सीतासागर, तरणताल, लाला ताल, लक्ष्मण ताल, राधासागर, नया ताल तथा करनसागर ताल साईफन सिस्टम से बंधे हैं जब सीतासागर तालाब भर जाता है तभी तरणताल भरना प्रारम्भ करता है इस तरह दतिया के चारों ओर बने तालाब एक के बाद एक भरते चले जाते हैं।
बिगड़ते पर्यावरण के चलते वर्षा काम होती चली गयी और तालाबों की स्थिति दयनीय होती चली गयी रही सही कसर जिम्मेदारों ने कर दी सीतासागर को पानी से लबालब करने वाले वर्षा स्रोतों को ही बंद कर दिए हालात बद से बदतर हो गए तालाब सूखने लगने और फिर शुरू हुआ अतिक्रमण का खेल, लोगों ने बेहिचक अतिक्रमण किया। सीतासागर तालाब सबसे बड़ा था इसी तालाब में अतिक्रमण सबसे ज्यादा हुआ। मालूम हो कि सभी तालाबों को जाने वाला पानी सीतासागर से होकर ही जाता था। सीतासागर को पानी से भरने के लिये आसान तरीका इज़ाद किया गया और अंगूरी बैराज का पानी सीतासागर को देना शुरू किया गया लेकिन स्वाभाविक स्थिति न आ सकी। पीने के पानी की जब स्थिति बिगड़ी तो सीतासागर तथा करनसागर तालाब में बोरिंग की गयी जिससे आज भी पानी की आपूर्ति शहर को की जा रही है।
तालाब के अतिक्रमण को क़ानूनी अमलीजामा पहनाने के लिए प्रशासन ने सीतासागर तालाब के अन्दर पिकनिक स्पॉट बनवा दिया लेकिन तालाब में पानी न होने के कारण सिर्फ पिकनिक स्पॉट का स्वरूप भी न दिया जा सका।
. पूर्व विधायक एवं पूर्व शासकों के वंशज घनश्याम सिंह कहते हैं कि हम धरोहरों को सहेज नहीं पाये आज करोड़ो रुपए खर्च होते हैं लेकिन पानी की व्यवस्था सही नहीं हो पाती। आज हालात यह है कि जो हमारे पूर्वजों ने पानी के स्रोत तैयार किये थे उन्हीं स्रोतों से पीने का पानी उपलब्ध हो रहा है। तालाबों तथा बावड़ियों से पीने का पानी लिया जा रहा है लेकिन कब तक जिम्मेदारों ने उन्हें संरक्षित करने की कोशिश ही नहीं की। तालाबों को रिचार्ज करने के प्राकृतिक स्रोत ही बंद कर दिए गए। जिन तालाबों से खेतों को पानी मिल जाता था आज वो तालाब सूखते नज़र आ रहे हैं। यदि हम जल्द न चेते तो पीने के पानी को हमारी पीढ़ियों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा।
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