जब कभी भी देशहित में कोई निर्णय लिया जाता है, मुस्लिम समाज में सबसे ज्यादा बेचैनी होती है। मोदी सरकार द्वारा लड़कियों की विवाह उम्र बढ़ाने से इस समाज में बेचैनी स्वाभाविक है। फिर कहते हैं कि भारतवासी हैं, भारत के साथ हैं, लेकिन देशहित निर्णय का विरोध करना भी अपना अधिकार समझते हैं। सरकार मुफ्त में कुछ देती है, अग्रिम पंक्ति में यही समाज नज़र आता है।
स्मरण हो, 1975/76 इमरजेंसी में संजय गाँधी द्वारा परिवार नियोजन योजना लागु करने का विरोध दिल्ली में जामा मस्जिद क्षेत्र से शुरू हुआ था, जिस कारण दंगे होने की स्थिति में क्षेत्र को कर्फ्यू का सामना करना पड़ा था।
लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से 21 साल करने का प्रस्ताव अभी कैबिनेट से पास हुआ है कि हरियाणा के मेवात में खलबली मच गई। वहाँ से खबर आ रही है कि लोग इस विधेयक के कानून बनने से पहले-पहले अपनी लड़कियों की शादी/निकाह कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, हरियाणा के ग्रामों में पिछले दिनों शादियों का तांता लग गया। मुस्लिम बहुल वाले नूँह क्षेत्र में कई लोग ऐसे लड़कों की तलाश में है जो 2 दिन में निकाह के लिए तैयार हों। क्या कारण है कि कानून लागु होने से पहले निकाह की हड़बड़ी मचाई जा रही है? इस तरह की हड़बड़ी से इनकी मानसिकता पर संदेह होना स्वाभाविक है। और जब मानसिकता का मुद्दा तूल पकड़ेगा, छद्दम सेक्युलरिस्ट्स Victim Card खेलने लगेंगे।
नूँह में जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष साजिद इस कानून को लेकर कहते हैं, “हम इस पर आपत्ति जताते हैं। ये उनके लिए ठीक है जो पढ़ी लिखी हैं और जीवन में कोई उद्देश्य रखती हैं, लेकिन जिनका कोई उद्देश्य नहीं है, वह अनपढ़ हैं, उन्हें उनके माता-पिता शादी न होने पर भार समझते हैं। “
इस मामले पर इससे पहले सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि इस फैसले के बाद लड़कियाँ आवारा हो जाएँगी। अब यहाँ एक बात गौरतलब हो कि एक ओर जहाँ बर्क जैसे कट्टरपंथी के विचारों पर चलते हुए साजिद ने बयान दिया है कि ये नया नियम सिर्फ पढ़ी लिखी लड़कियों को फायदा पहुँचाएगा। वहीं वास्तविकता में ये नया कानून हर धर्म, हर मजहब, हर वर्ग की लड़कियों के लिए है। लेकिन साजिद के विचार अलग हैं। वो कहते हैं कि आज के समय में लड़के-लड़कियों को ज्यादा छूट दी जाती है इससे उनके भटकने के आसार ज्यादा हैं।
नूँह जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि जो महिलाएँ शिक्षित हैं और अपने जीवन में कुछ करने का लक्ष्य रखती हैं, वे इस बेचैनी को नियंत्रित कर सकती हैं। लेकिन ये ज्यादा चांस है कि अगर लड़की अविवाहित हैं, अनपढ़ है और लक्ष्यहीन है तो वो इसका उल्लंघन करेगी।व ह कहते हैं कि अगर एक लड़की को 18 की उम्र में अपने जीवन के बारे निर्णय लेने का अधिकार है तो उनकी शादी की आयु 21 करने के पीछे कोई तर्क नहीं है।
हरियाणा के मेवात में लड़कियों की शादी जल्दी कर देने का चलन है। पिछले एक हफ्ते में वहाँ सैंकड़ों शादियाँ की गई ऐसा मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं। हड़बड़ी में की गई इन शादियों में लड़कियों की उम्र 18 से 20 ही थी। वहाँ इमामों के पास भी अच्छा दूल्हा बताने के लिए माँग बढ़ रही हैं और इसी के मद्देनजर अजान के समय घोषणा भी होती सुनी गई। रिपोर्ट बताती हैं कि पिछले गुरुवार को जबसे सरकार ने घोषणा की है उसके बाद अदालत में होने वाली शादियाँ भी बढ़ी हैं। दो स्थानीय वकीलों की मानें तो गैर-जातीय जोड़े भी गुरुग्राम में हफ्ते भर में शादी के लिए आ रहे हैं।
दिलचस्प बात ये है कि जिस नूँह में हड़बड़ी में इतनी शादियाँ हो रही है। वहीं की लड़कियों ने उस अभियान को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया था जिसमें लड़कियों की उम्र 18 से बढ़ाने की माँग की गई थी। सुनील जागलान जो शादी की उम्र को लेकर हरियाणा में अभियान चला रहे थे उन्होंने बताया कि लड़कियाँ चाहती थीं कि शादी पंजीकृत करने की प्रक्रिया पर तब तक रोक लगे जब तक कि कानून नहीं अप्रूव होता।