उगता भारत ब्यूरो
ईसाइयों का एक त्योहार है, गुड फ्राइडे। फ्राइडे से पहले गुड सुनकर ऐसा लगता है जैसे ये कोई खुशी का त्योहार है, जबकि ऐसा नहीं है। इस दिन ईसाई शोक मनाते हैं। ईसा मसीह की मृत्यु का शोक। बाइबिल के अनुसार इसी दिन ईसा मसीह को 6 घण्टे तक क्रूस पर लटकाया गया था।
इसके दो दिन बाद रविवार को ईसा मसीह फिर से जीवित हो उठे, इस दिन को ईस्टर सन्डे के रूप में मनाते हैं। लेकिन ईस्टर सन्डे ईसाइयों का मुख्य त्यौहार नहीं है जो कि खुशी का दिन है ईसाइयों का मुख्य त्यौहार है गुड फ्राइडे। हज़ारों साल बाद भी ईसाई ईसा मसीह की मृत्यु का शोक मना रहे हैं।
मुस्लिमों में एक पर्व होता है मोहर्रम। मोहर्रम मुख्यतः शिया मुस्लिमों का पर्व है, लेकिन सुन्नी समुदाय भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है, खासकर वहाँ जहाँ काफिर ज्यादा हो और इसके पीछे वजह है शक्ति प्रदर्शन। मुहर्रम भी एक शोक पर्व है जो हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है। हज़ारों सालों से मृत्यु का मातम ढोया जा रहा है।
भारत में मृत्यु से जुड़े सिर्फ दो त्यौहार मिलेंगे, वो भी लोकपरंपरा से आते हैं और एक छोटी सी कम्युनिटी तक सीमित हैं। पहला इरावन की याद में मनाया जाता है जो सिर्फ किन्नर समुदाय मनाता है, दूसरा साउथ में एक लोकल कम्युनिटी मनाती है जिसे ‘भुतः पर्व’ कहते हैं।
अगर सनातन की बात करें तो एक भी ऐसा राष्ट्रीय स्तर का सनातनी पर्व नहीं है जहां किसी की मृत्यु का मातम मनाया जाता हो। राम चले गए, कृष्ण चले गए, दोनों की मृत्यु मानवीय तरीके से हुई लेकिन उनके जाने का शोक कभी भी नही मनाया गया। सनातन कभी भी मृत्यु का शोक ढोता नहीं है, हज़ारों साल तक तो कत्तई नहीं।
वो इसलिए मृत्यु का शोक ढोते हैं क्योंकि उन्हें एक ही जन्म मिलता है। हमारे यहाँ अनंत जन्म होते हैं, जो जाता है वो फिर लौट आता है। हम शरीर को मिट्टी कहते हैं इसलिए मरने के बाद सूट बूट कुर्ता पजामा पहनकर जमीन नहीं घेरते, जल कर हवाओं में घुल जाते है, फिर से आने के लिए। मरना हमारे लिए गर्व की बात है। देश के लिए, धर्म के लिए मरने का मौका तो किस्मत वालों को ही मिलता है और काशी में मरना तो फिर सौभाग्य की बात है।
काशी में मृत्यु का शोक नहीं, मृत्यु का उत्सव होता है टोंटी भिया। मोदी अंत समय मे काशी में मरते है तो राष्ट्र के लिए, सनातन के लिए, मोदी के लिए, हमारे लिए गर्व की बात होगी। बाकी आपने तो ऑस्ट्रेलिया से ईसाई शिक्षा हासिल की है, विकास के नाम पर कब्रिस्तान की दीवारें बनवाई है और संस्कृति के नाम पर सैफई में भाँड़ और नचनिया नचवाई है तो आपको सनातन या काशी की अहमियत कहाँ पता होगी।
(साभार)