रिश्ते सम्भाल कै राखिये, मत रखना दुर्भाव
बिखरे मोती भाग-76
गतांक से आगे……
व्याख्या :-जो विद्यार्थी आलसी है अर्थात-आज का काम कल पर टालता है, मादक पदार्थों (नशीले पदार्थों का सेवन करता है तथा अश्लील बातों में रूचि रखता है, लालची है तथा जो कभी एकाग्रचित नही होता है, मूर्खता की बातों में रत रहता है यानि मूर्ख है। इसके अतिरिक्त अप्रसांगिक बातें करता है, अर्थात व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद करता है। ऐसे छात्र विद्या से वंचित रह जाते हैं। अत: छात्रों को उपरोक्त दोषों से सर्वदा सजग रहना चाहिए तभी विद्या की देवी आपका वरण करेगी।
रिश्ते सम्भाल कै राखिये,
मत रखना दुर्भाव।
जीवन की पतवार है,
ये ही पार लगावें नाव ।। 825 ।।
जीवन के धागों में है,
यदि कहीं उलझाव।
मन में रहती खिन्नता,
बढ़ता जाए तनाव ।। 826।।
आध्यात्मिक परिवार को,
जो रखेगा साथ।
भव सागर से पार हो,
खुश हों दीनानाथ ।। 827 ।।
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि मैं भवसागर से पार हो जाऊं, किंतु अधिकांश लोग भटक जाते हैं और मंजिल तक नही पहुंच पाते हैं। इस बात को दृष्टि गत रखते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने महान ऋषि मुनियों ने कहा, जो भवसागर से पार उतरना चाहते हैं वे सर्वदा अपने आध्यात्मिक परिवार से जुड़े रहें।
आध्यात्मिक परिवार क्या है?
धैर्य पिता है, जो हर संकट में हमारी रक्षा करता है। क्षमा माता है, जो हमें बदले की आग से बचाती है। जीवन यात्रा सुगम और सुहावनी हो इसके लिए जीवन साथी की आवश्यकता होती है। ठीक इसी प्रकार जीवन प्रगतिशील और मन भावन हो इसके लिए शांति का होना बहुत जरूरी है क्योंकि शांति से ही बहुमुखी विकास संभव है। इसलिए शांति को पत्नी कहा गया है। गृहिणी के बिना जैसे घर श्मशान लगता है अन्यथा ऐसे ही शांति केे बिना सब कुछ शून्य है। प्रेम सखा है। जिस प्रकार जीवन में मित्र का महत्व है, वह हमें कदम-कदम पर सहयोग देता है, संबल देता है। ठीक इसी प्रकार प्रेम हमारे जीवन का बहुत बड़ा संबल है, एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। मन का संयम भाई है, इसे हमेशा सहेजकर अपने साथ रखो। सत्य बेटा है, पुत्र बुढ़ापे से तिराता है। ठीक इसी प्रकार सत्य इस संसार से तिराहा है। दया अथवा करूणा बहन है, जो हमारे सांसारिक संबंधों को सुकोमल बनाती है, उन्हें अपनी तरलता से स्निग्ध रखती है। क्रमश: