उगता भारत ब्यूरो
जम्मू कश्मीर देश के उन हिस्सों में से है जिसको लेकर लगभग हर रोज़ सुर्खियाँ बनती हैं l बने भी क्यों न, आज भी राज्य का आधे से ज्यादा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है, जिसे हम पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के नाम से जानते हैं l वहाँ पाकिस्तानी सेना लोगों के साथ भयंकर अत्याचार कर रही है l पाकिस्तान ने एक समय तक लोगों से इस बात को छुपाये रखा लेकिन आज वहाँ के लोगो की दुर्दशा जगजाहिर है l पूरे विश्व में इस विषय पर चर्चा हो रही है l
दूसरी ओर जो हिस्सा भारत के पास है, उसमे से सबसे छोटा हिस्सा है कश्मीर, जो अविभाजित जम्मू कश्मीर का मात्र 7 प्रतिशत है और विभाजित यानी जो हिस्सा आज भारत के पास है उसका १५ प्रतिशत है l इस हिस्से में केवल कश्मीरी मुस्लिम ही नहीं रहते, यहाँ कश्मीरियों के अलावा शीना, पहाड़ी , गुज्जर और कश्मीरी हिन्दू भी है l 1989 के बाद कश्मीरी हिन्दुओ को इस्लामिक कट्टरवाद की वजह से कश्मीर छोड़ कर जम्मू या देश के अन्य हिस्सों में बसना पड़ा l
1947 से लेकर आज तक राज्य का यह कश्मीर हिस्सा राजनीतिक हलचल का केंद्र रहा है और कुछ स्थानीय और केंद्र के नेताओं की बदनीयती का शिकार रहा है l इन नेताओं ने अपने छोटे हितों के लिए, अपने निजी स्वार्थों के लिए पूरे कश्मीर हिस्से के लोगों के भविष्य को दाँव पर लगा दिया है l आज़ादी के समय राज्य के इस हिस्से में एक प्रसिद्द नेता थे – शेख अब्दुल्लाह l जब महाराजा हरी सिंह ने जम्मू कश्मीर राज्य के भारत में अधिलिमन पर हस्ताक्षर किये जो कि एक वैधानिक प्रक्रिया थी, तब महाराजा का समर्थन शेख अब्दुल्लाह ने भी किया l उसने संयुक्त राष्ट्र तक में जाकर कहा कि कश्मीर का मुसलमान भारत के साथ है l लेकिन आज़ादी के पाँच साल बाद जब शेख अब्दुल्लाह को लगा ये तो राज्य में जनतंत्र आ गया है, और आने वाले समय में उनकी कुर्सी जा सकती है तो उन्होंने अधिमिलन के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया l परिणाम स्वरुप वो लम्बे समय तक जेल में रहे, फिर 1974-75 में बाहर आये तो यह मानते हुए आये कि वो भारत में राज्य के अधिमिलन को पूरी तरह स्वीकार करते है l लेकिन इस पूरे 30 वर्ष के अंतराल में जो अलगाववाद के बीज बोये गए उनका दंश देश और जम्मू कश्मीर के लोग आज भी झेल रहे हैं l
कांग्रेस का समर्पण :
अपने छोटे हितो की जो ग़लतियाँ शेख अब्दुल्लाह कर रहे थे वही ग़लतियाँ दिल्ली में तत्कालीन सरकार के मुखिया जवाहर लाल नेहरु और उनके बाद के नेताओं ने भी की l जब जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन हुआ उस समय केवल महाराजा ही एकमात्र आधिकारिक व्यक्ति थे जिनके साथ अधिमिलन से सम्बंधित किसी भी प्रकार की औपचारिक बातचीत या निर्णय किया जा सकता था, क्योंकि नियमानुसार यही पद्धति सभी रियासतों के अधिमिलन के लिए तय की गयी थी l हर रियासत के केवल शासक को, अधिमिलन हिंदुस्तान के साथ हो या पाकिस्तान के साथ, ये तय करने का अधिकार था, लेकिन जवाहर लाल नेहरु ने अपने अहंकार के चलते महाराजा को नज़रअंदाज़ किया और शेख अब्दुल्लाह को अपने सर पर बिठा लिया l
इसी समय जम्मू में, जो राज्य का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा था, (लगभग 27 % हिस्सा) शेख अब्दुल्लाह के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। इस माँग के साथ कि भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में लागू किया जाना चाहिए l
उस समय नेहरू ने जम्मू के लोगों की माँग की ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन 1953 में ये बात सही साबित हुई l इतिहास गवाह है उसी शेख अब्दुल्लाह ने देश और नेहरु की पीठ पर छुरा घोंपा l बाद में नेहरु ने सर पर सवार शेख अब्दुल्लाह को खुद ही जेल भेजा l
नेहरु ने गलती की पर इंदिरा ने कहाँ सीख ली ?
1974 में नेहरु की उत्तराधिकारी और देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने शेख अब्दुल्लाह के साथ एक सहमति बनायी, जिसे कश्मीर-अकॉर्ड के नाम से जाना जाता है l जिस शेख अब्दुल्लाह को देश द्रोह के आरोप के चलते जेल में डाला गया था, उसके समर्थक मिर्ज़ा अफज़ल जो प्लेबिसिट फ्रंट बना कर देश विरोधी गतिविधिया संचालित कर रहे थे, अचानक इन दोनों को बुला कर राज्य का मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बना दिया गया l चौकाने वाली बात यह है कि जम्मू कश्मीर में 1972 में चुनाव हुए थे l कांग्रेस ने 58 सीटों पर जीत दर्ज की थी l सैय्यद मीर कासिम कांग्रेस पार्टी की तरफ से मुख्य मंत्री थे और शेख अब्दुल्लाह की नॅशनल कांफ्रेंस का एक भी विधायक नहीं था, लेकिन जम्मू कश्मीर में नॅशनल कांफ्रेंस की सरकार बनी !!! बिना किसी विधायक के शेख अब्दुल्लाह मुख्यमंत्री और मिर्ज़ा अफजल बेग उप मुख्यमंत्री बने l कांग्रेस के विधायक देखते रह गए l राज्य के जम्मू , लदाख और कश्मीर के जिन हिस्सों ने कांग्रेस के विधायको को चुनकर भेजा था, इंदिरा गाँधी ने एक झटके में उनके विश्वास को तोड़ दिया l इस से बड़ा धोखा देश के प्रजा तंत्र में आपको कहीं नहीं मिलेगा l इसी तरह के विश्वासघातो के चलते आज राज्य में ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस हाशिये पर चली गयी है l
अलगाववादी सोच रखने वालों को आश्रय देने का जो सिलसिला 1970 के दशक में शुरू हुआ, वो आज तक चल रहा है l फर्क इतना है कि तब वो राजनीति की भाषा में बात करते थे और आज दुस्साहस इतना बढ़ गया है की अब गोलियों की भाषा बोलते हैं l
स्वार्थ चाहे जिसका हो, ग़लती चाहे जिसकी हो, खामियाज़ा जनता भुगत रही हैं, सारा देश भुगत रहा है l (साभार)