साध्वी निरंजन ज्योति को लेकर संसद, अखबारों और चैनलों पर हंगामा मचा हुआ है। खेद है कि उनके खिलाफ वे सब लोग सड़कों पर नहीं उतरे हैं, जिन्हें उन्होंने ‘हरामजादा’ कहा है। उनका वैसा कहना घोर अशिष्टता तो है ही, वह कथन इतना बेबुनियाद और मूर्खतापूर्ण है कि उस पर कोई प्रतिक्रिया करें भी तो क्या करें? वैसे ज्योति ने साफ़-साफ़ शब्दों में माफी मांग ली है। लेकिन प्रतिपक्ष का कोई भी दल उन्हें माफ़ करने को तैयार नहीं है। जिन्हें उस तथाकथित साध्वी ने अपमानित किया, वे तो चुप हैं और सारा नाटक देख रहे हैं लेकिन प्रतिपक्ष ने सारे आसमान को सिर पर उठा रखा है। साध्वी ने प्रतिपक्ष को तो कुछ नहीं कहा है लेकिन प्रतिपक्ष इतना मुखर क्यों हो गया है? सिर्फ इसलिए कि वह मोदी-सरकार की छवि खराब करने पर उतारू हैं। प्रतिपक्ष का यही काम है, वह बखूबी कर रहा है। इसमें उसका कोई दोष नहीं है।
प्रतिपक्ष इस बात से भी संतुष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय दल को हड़काया है। उन्होंने सारे सांसदों को अपनी जुबान पर लगाम लगाने के लिए कहा है। यह बात नाम लिये बिना उस साध्वी के संदर्भ में ही कही गई थी। प्रतिपक्ष ही नहीं, देश के निष्पक्ष विचारक लोग भी यही मानते हैं कि प्रधानमंत्री को उस साध्वी के बयान पर एक सख्त बयान जारी करना चाहिए था। ऐसा करने से मोदी को क्या डर है? कोई डर नहीं है। यह कहना गलत है कि मोदी हिंदुत्ववादियों से डरे हुए हैं। हिंदुत्व के कौन से सिद्धांत में कहा गया है कि आप गैर-हिंदुओं को ‘हरामजादा’ कह डालें। हिंदुत्व का अर्थ ही है- अनेकांतवाद। हम ही सही नहीं है, तुम भी सही हो सकते हो। सर्व धर्म समभाव तो हिंदुत्व का प्राणाधार है। साध्वी के बयान की भर्त्सना करके मोदी हिंदुत्व की धारणा को बल प्रदान कर सकते थे। उनकी अपनी छवि भी प्रधानमंत्री के तौर पर जरा चमक जाती। ‘सबके साथ: सबके विकास’ वाले नारे में जान पड़ जाती।
यह कहना बिलकुल तर्कहीन है कि मोदी यदि साध्वी की भर्त्सना करते तो वे अपनी नींव पर प्रहार करते याने वे जिस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जीते हैं, उस पर प्रहार कैसे करते? मोदी जीते हैं- भ्रष्टाचार-विरोधी गुस्से के कारण। यह ठीक है कि अल्पसंख्यकों ने उन्हें वोट नहीं दिए लेकिन बहुसंख्यकों के जो वोट उन्हें मिले हैं, उसका आधार सांप्रदायकिता नहीं है बल्कि कांग्रेस का भ्रष्टाचार है। यदि मोदी सफल प्रधानमंत्री बनना चाहते है तो उन्हें देश के प्रत्येक नागरिक के हित और सम्मान का ध्यान रखना होगा। साध्वी अगर स्वयं इस्तीफा दे दें तो सर्वश्रेष्ठ होगा लेकिन यही काफी नहीं है। साध्वी को खुद का शुद्धिकरण करना चाहिए। इस्तीफे से शुद्धिकरण नहीं होगा, वह तो मजबूरी है। उनके इस्तीफे से ज्यादा महत्वपर्णू यह है कि वे कम से कम एक माह मौन रखें। जिस मुंह और मन से ऐसी निकृष्ट बात निकली है, जरा उस पर ताला लगाएं। इसके अलावा कम से कम एक हफ्ते तक वे अन्न-जल का त्याग करें। यही सच्चा प्रायश्चित है।