संसार का भला करने वाले केवल वे मनुष्य नहीं हैं जो केवल विद्वान हैं और न वे मनुष्य हैं जो बड़े बड़े शब्द रटकर लम्बे लम्बे व्याख्यान दे सकते हैं क्योंकि वे मनुष्य जो कुछ कहते हैं उसको मन से अनुभव नहीं करते। उन ही मनुष्यों के जीवन से जगत का कल्याण हुआ है और हो सकता है जो सदाचारी हैं, नेक हैं और जिनका मन पवित्र है।
स्वामी श्रद्धानंद ने जो अपने जीवन में सफलता प्राप्त की उसका कारण उनकी विद्या न थी, उनका वकील होना न था और न ही उनकी मीठी वाणी थी…, बल्कि विशेष कारण उनका आचारवान होना था। वे जो कुछ कहते थे उस पर आचरण भी करते थे। उनकी आत्मा शुद्ध थी, इसलिए उनके कथन का प्रभाव पड़ता था। जो कोई भी मनुष्य उनका सत्संग करते थे वे अत्यंत प्रभावित होते थे। स्वामी जी अपने कर्तव्य को अनुभव करते हुए ईश्वरीय नियमों और सच्चाई का निडरता से प्रचार करते थे। वे अपने असल अमूल से कभी नहीं डगमगाए। उनका वैदिक धर्म प्रचार इस कारण से प्रभावित करता था कि वे दृढ़ता से अपने जीवन में उसका पालन करते थे। उनका ईश्वर के प्रति विश्वास दृढ़ था। घोर निराशा में भी उन्होंने बलवती आशा का संचार किया था और कितने ही भटकते हुओं को सन्मार्ग पर लगाया था।
(सन्दर्भ- स्वामी जी के सहयोगी लब्भूराम नैय्यड़ कृत धर्मोपदेश की भूमिका)
डॉ0 विवेक आर्य