बिखरे मोती : प्रकृति के दो चितेरे, आग और पानी

प्रकृति के तत्व दो,
एक अग्नि एक सोम।
दोनों के संयोग से,
चल रहा सृष्टि- होम॥1634॥

व्याख्या:- सुना है सृष्टि के आग और पानी दो शत्रु हैं, जो निर्माण या नाश का नृत्य करते हैं।भाव यह है कि मनुष्य जो भी निर्माण करता है, उसका यह विनाश कर देते हैं। जल जहां सब कुछ बहा ले जाता है, वहां अग्नि सब कुछ जलाकर भस्म कर देती है। वस्तुत: यह पूर्ण सत्य नहीं है। तस्वीर का दूसरा पहलू भी देखिए – प्रकृति के यह दो तत्व ऐसे चितेरे है,जो विध्वंसात्मक ही नहीं अपितु सृजनात्मक भी है, उसके स्वरूप को संवारते है, सुरम्य और मनोरम बनाते हैं, जैसे – लावा धरती की छाती पर ऊँची और विस्तृत आग्नेय चट्टानों का निर्माण करता है, जो भवन और सड़कों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चट्टानों का सीना तोड़कर अविरल बहती हुई सरिता नई-नई घाटियों अथवा मैदानों का निर्माण करती है, जिन से मानव-जीवन और प्राणी मात्र का बहु- आयामी कल्याण होता है, नई सभ्यताओं और संस्कृतियों का आविर्भाव होता है जैसे- सतलुज – गंगा का विस्तृत मैदान। इसके अतिरिक्त भूमण्डल पर पर्वत-शिखरों तथा उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव पर विस्तृत रूप से फैले विशाल हिमनद तथा हिमखण्डों में अथाह जल – राशि तथा असीमित ऊर्जा (विद्युत) के अम्बार हैं, जिनके दोहन से संसार का कल्याण सम्भव है। बड़ी-बड़ी नदियों के प्रवाह को रोक कर बाँध बनाए गए हैं जिनसे अपार ऊर्जा प्राप्त हो रही है। यह ऊर्जा घरों को रोशन कर रही है तथा कल – कारखानों में दिन-रात राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में वृद्धि कर रही है। संसार के स्वरूप को आधुनिक और समुन्नत कर रही है, चिकित्सा के क्षेत्र में भी अकल्पनीय और अप्रत्याशित चमत्कार कर रही है। जलयान हो, वायुयान अथवा अन्तरिक्षयान तथा यातायात के अन्य छोटे-बड़े साधन इन सब के प्राण है – आग और पानी। आग और पानी के बिना यह सब गतिशून्य है निष्क्रिय हैं। यहां तक कि आपके हाथ में घड़ी और मोबाइल को भी ऊर्जा (सैल) की आवश्यकता होती है। आधुनिक आयुध्दों जैसे- गोली, गोला, एटमबम, परमाणुबम, उदजनबम इत्यादि में भी ऊर्जा (अग्नि) की प्रधानता है। यह ऊर्जा चट्टानों को तोड़ने तथा शत्रुओं का मुंह मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
जरा गम्भीरता से सोचिए – व्यक्ति चाहे मैदानी क्षेत्र में हो अथवा सियाचिन ग्लेशियर जैसे क्षेत्र में जहां तापमान शून्य से भी 40-50 डिग्री सेल्सियस नीचे होता है किन्तु मनुष्य के अंदर जो तापमान है वह 98. 5 डिग्री सेल्सियस ही रहता है और सारे शरीर में गर्मी बनाए रखता है। यह अग्नि तत्व ही तो है जो विषम परिस्थितियों में भी हमारी रक्षा करता है। यहां तक कि हमें भूख- प्यास भी अग्नि तत्व के कारण ही लगती है, अग्नि तत्व के कारण ही हम बोल पाते हैं। हमारा हृदय और मस्तिष्क सक्रिय रहता है, शिराओं और धमनियों में रक्त का संचार होता है। हमारे भोजन को जठराग्नि ही तो बचाती है, जिससे नया रक्त बनता है, अस्थि, माँस,मज्जा, अन्य धातुएं और वीर्य बनता है। कहने का आशय यह है कि जीव -जन्तु हो, मानव हो, भौतिक समृद्धि हो, व्यक्ति अथवा विश्व का बहुआयामी विकास हो, सब में प्रकृति के दो चितेरे -आग और पानी की प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसका कोई सानी नही, कोई विकल्प नहीं।इनकी उपलब्धता और प्रचुरता के लिए इसलिए वेद में प्रार्थना की गई है:-
ओ३म् अग्नेय स्वाहा।
इदमग्नये-इदं न मम्।।
ओ३म् सोमाय स्वाहा।
इदं सोमाय – इदं न मम्।।
क्रमशः

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