‘मानव अभयारण्यों में स्त्री आखेट’- नामक यह पुस्तक श्री शंकर लाल मीणा जी द्वारा लिखी गई है। इससे पहले भी लेखक के द्वारा कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इस पुस्तक के नाम से ही स्पष्ट है कि नारी को प्राचीन काल से ही पुरुष ने अभयारण्य में आखेट के रूप में प्रयोग किया है । इस प्रकार समाज के बहुत गहरे दर्द पर हाथ रखने का प्रयास विद्वान लेखक श्री शंकर लाल मीणा द्वारा किया गया है।
ढेर सारे दर्दों पर हाथ रखते – रखते लेखक पुस्तक के पृष्ठ संख्या 215 पर अंत में जाकर लिखते हैं कि- ‘गर्भाशय में चिमटे जैसा उपकरण डालकर कन्या भ्रूण का सिर पकड़कर खींचते समय उसको भान हुआ कि उसके सिर का आकार कुछ बड़ा है। तब उसने वह उपकरण निकालकर दूसरा उपकरण उसके सिर को तोड़ने के लिए डाला । जैसे ही वह उपकरण भ्रूण के सिर से के पास पहुंचा चिकित्सक ने देखा कि उसका चेहरा रुहासा हो गया है। भ्रूण ने सिर को दूसरी ओर सरकाया । चिकित्सक प्रयास करता रहा। भ्रूण बचने के प्रयास में इधर-उधर सरकता रहा। सिर को पकड़ने के लिए चिकित्सक को बहुत प्रयास करना पड़ा ….”
यह जन्म लेने से पहले ही किसी आने वाले जीव पर होने वाले अत्याचार का बहुत ही दर्दनाक चित्रण है। जिसे पढ़कर प्रत्येक संवेदनशील पाठक भावुक हो सकता है। लेखक ने बहुत सुंदर ढंग से अपने शब्दों को बांधने का प्रयास किया है।
पुस्तक के फ्लैप मैटर में भी जिन शब्दों को लाकर रखा गया है वह भी पुस्तक के विषय में बहुत कुछ स्पष्ट कर देते हैं। लिखा गया है कि – शिव कहने लगे यह विडंबना कोई आज की नहीं है, इसकी जड़ें बहुत पुरानी है मुनिवर। दुष्कर्म भी स्त्री के साथ हो और इसके पश्चात दंड भी उसी को मिले । ऐसा पहले भी होता रहा है। अहिल्या के साथ क्या हुआ था ? देवराज इंद्र ने उसके साथ दुष्कर्म किया और दंड भी उसी को मिला ? पत्थर की हो जाने का शाप। इंद्र के विरुद्ध तो किसी ने कुछ नहीं किया। किसी ने उसको देवराज के पद से पदच्युत करने की नहीं सोची। वह तो पहले की भांति इंद्रासन पर बैठ वारुणी के चषक पीता हुआ रंभा, मेनका, उर्वशी का नृत्य देखता रहा। आपको क्या ज्ञात नहीं है मुनिवर द्वापर युग में क्या-क्या होता था ? ऐसे भी प्रसंग हैं जब कोई कथित ऋषि आकर किसी छोटे-मोटे से नहीं स्वयं राजा से कहता है कि अपनी रजस्वला कन्या मुझे दो । राजन, मुझे उससे संतान उत्पन्न करनी है। वह अमुक दैत्य का वध करेगी …’
श्री मीणा गंभीर चिंतन लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने इस ग्रंथ में भी अपने गंभीर चिंतन को प्रस्तुत कर मानवता के हित में बहुत ही उपयोगी विचारों को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। निश्चय ही समाज में व्याप्त बुराइयों की ओर ध्यान आकृष्ट करने में यह पुस्तक सफल रही है। मानव अभयारण्य में स्त्री आखेट के रूप में प्रयोग ना हो इस विचार को ग्रंथ रूप में प्रस्तुत कर विद्वान लेखक ने पूरे समाज को सोचने के लिए विवश किया है कि आज 21वीं सदी में आकर भी हम युगों पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं को स्वीकार कर नारी शक्ति के साथ कौन सा न्याय कर रहे हैं ? पढ़ाई लिखाई बढ़ जाने के उपरांत भी हमारी सोच और भी अधिक घटिया होती जा रही है, निश्चय ही गिरावट के इस स्तर को रोकने में यह पुस्तक सफल हो सकती है।
समाज के लिए उपयोगी और विचारणीय गंभीर चिंतन को प्रस्तुत करने के लिए विद्वान लेखक बधाई के पात्र हैं।
इस पुस्तक का मूल्य ₹400 है। पुस्तक कुल 215 पृष्ठों में पूर्ण की गई है। बहुत ही अच्छा कागज प्रयोग किया गया है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार , धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर हैं। पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141-2310785 व 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है।
–डॉ राकेश कुमार आर्य