कोच साम्राज्य की भव्यता की प्रति राजबाड़ी
हेमंत कुमार पाण्डेय
चौंकाने या सम्मोहित करने के अलावा ऐतिहासिक राजनिवासों की यह विशेषता होती है कि वे आप को अतीत में ले जाकर खुद से आपकी जान-पहचान करवाते हैं. ऐसा ही कुछ पश्चिम बंगाल के कूचबिहार में स्थित राजबाड़ी की गोद में आकर आप महसूस कर सकते हैं. ब्रिटेन स्थित बकिंघम पैलेस की डिजाइन वाली यह दो मंजिला इमारत 1887 में बनकर तैयार हुई थी और इसका निर्माण कोच महाराजा नृपेंद्र नारायण सिंह करवाया था. हालांकि, जब इसका निर्माण किया गया उस वक्त यह तीन मंजिला थी. लेकिन, 1897 के विनाशकारी भूकंप की वजह से इसे भारी नुकसान पहुंचा था. इस भूकंप के बाद हुए पुनर्निर्माण में राजबाड़ी को दो मंजिल तक ही सीमित कर दिया गया.
कोच साम्राज्य की स्थापना साल 1510 में महाराजा विश्व सिंह ने की थी. इसके 440 साल बाद यानी 1950 में इस साम्राज्य का अंत आजाद भारत में विलय के साथ हुआ. इस विलयपत्र पर हस्ताक्षर इसके 24वें और अंतिम महाराजा जगद्दीपेंद्र नारायण ने किए थे. साल 1970 में उनकी मृत्यु के 12 साल बाद इस पैलेस को भारतीय सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया. वहीं, एएसआई ने इसे साल 2002 में संग्रहालय का रूप देकर लोगों को यहां का इतिहास और करीब से जानने का मौका दिया. इस संग्रहालय में आने वाले लोग सात कमरों से गुजरते हुए कोच राजवंश के साथ-साथ उत्तर बंगाल की कई विरासतों के बारे में नजदीकी परिचय हासिल कर सकते हैं.
इटली के पुनर्जागरण काल के दौरान (1350 ईसवी से 1600 ईसवी तक) यूरोप में जिस वास्तुकला का विस्तार हुआ, यह इमारत उसी का प्रतिनिधित्व करती है. यह कुल 4,768 वर्गमीटर में फैली हुई है. इस इमारत की विशालता का अंदाज इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि यह पूर्व से पश्चिम में 120 मीटर और उत्तर से दक्षिण में 90 मीटर के दायरे में निर्मित है. वहीं, राजबाड़ी को मुख्य बाजार से इसके प्रांगण में स्थित सीधी सड़क जोड़ती है. इस सड़क के दोनों ओर पार्क बनाया गया है. यह पार्क इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है. इस पार्क से गुजरते हुए सबसे पहले नजर इसके पोर्च पर पड़ती है. इस पोर्च का डिजाइन इटली के रोम स्थित सेंट पीटर्स चर्च की तरह तैयार किया गया है.
इस पोर्च से आगे मुख्य भवन में जाने के लिए दरबार हॉल बना हुआ है. इस दरबार हॉल में कूच राजवंश की कई यादों से आप रूबरू होते हैं. बताया जाता है कि महाराज इसी विशाल कमरे में अपने अधिकारियों के साथ बैठकर प्रशासनिक कामों को अंजाम देते थे. इस हॉल के मध्य में फर्श पर पित्रादुरा कला में राजचिह्न बनाया गया है. इसमें संस्कृत में लिखा गया है, ‘यतो धर्म्म स्ततो जय:’ यानी जहां धर्म वहां जय’. पित्रादुरा कला का भारत में आगमन ईरान से हुआ था. इसमें संगमरमर के पत्थर पर शिल्पकारी कर उसे अलग-अलग रत्नों से सजाया जाता है.
दरबार हॉल में राजसी चिह्न के ठीक ऊपर भवन का विशाल और आकर्षक गुंबद दिखाई देता है. इस गुंबद को स्तरीय विधि यानी एक के ऊपर दूसरे स्तर के जरिए शीर्ष तक उठाया गया है. साथ ही, अलग-अलग किस्म के बल्बों इसकी सजावट की गई है.
राजबाड़ी का गुंबद
बाकी राजवंशों की तरह कूचबिहार के महाराजाओं को भी शिकार का शौक था. अंतिम महाराजा जगद्दीपेंद्र नारायण विख्यात शिकारी थे. बताया जाता है कि उनके शासनकाल (1936-70) में जयपुर और नेपाल सहित अन्य क्षेत्रों के राजा-महाराजा और अन्य शीर्ष अधिकारी शिकार के लिए सर्दियों के मौसम में कूचबिहार आते थे. शिकार के अलावा भी कोच महाराज का संबंध जयपुर से था. उनकी बहन गायत्री देवी का विवाह जयपुर के महाराजा मान सिंह के साथ हुआ था. हालांकि कोच वंश इसके खिलाफ थे. इसकी वजह मान सिंह का पहले से विवाहित होना था.
कोच राजवंश के महाराजाओं और अन्य सदस्यों का वक्त मनोरंजन के अन्य साधनों जैसे, खेलों में भी बीतता था. इसके लिए भूतल के एक कमरे में बिलियर्ड रूम बनाया गया था. इस कक्ष में बड़ी ही सलीकेदार साज सज्जा और लाइटिंग है. साथ ही, कई राजा और रानियों की पेंटिंग भी इस कक्ष की शोभा को बढ़ाती हैं.
बिलियर्ड रूम से बाहर निकलने के बाद भूतल पर ही उत्तर बंगाल की अलग-अलग जनजातियों की सभ्यता-संस्कृति और उनकी पहचान को दो कमरों में सहेजने की कोशिश की गई है. इन जनजातियों में टोटो, लेप्चा, मेच, राभा, भूटिया और गोरखा शामिल हैं. यहां आदिवासियों के आवास, वेश-भूषा और देवी-देवताओं की जानकारी दी गई है. साथ ही, उनके दैनिक इस्तेमाल की चीजों को भी संभालकर रखा गया है.
भूतल से पहली मंजिल पर जाने के लिए डिजाइनदार लकड़ी की सीढ़ी बनाई गई है. करीब 135 साल बाद भी इसकी मजबूती और सुंदरता बरकरार दिखती है। इसी महल में कूच वंश के महाराजाओं और अन्य अधिकारियों के रक्षा उपकरण और हथियारकूच राजवंश के खानपान से जुड़े सामान रखे हैं।