नरेंद्र भूषण, शर्म करो शर्म करो

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लेख बड़ा है लेकिन लाखों नागरिकों की समस्या भी तो बडी है।

आर्थिक संसाधन बजट भी हो मानव संसाधन भी हो फिर भी फिर भी सरकार का कोई प्राधिकरण लोक स्वास्थ्य हित में उस बजट को खर्च ना कर पाए तो आप क्या कहेंगे?

कहना क्या इसे नौकरशाही की कामचोरी मक्कारी निर्लज्जता असंवेदनशीलता कहेंगे। यह तमाम बातें लागू होती है ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण पर और उसके अब तक के सबसे कामचोर बहानेबाज मुख्य कार्यपालक अधिकारी नरेंद्र भूषण पर।

हमारी आरटीआई से हासिल जानकारी इसका सबूत है आपको हैरत होगी प्राधिकरण ने मुझे सूचना के अधिकार कानून के मामले मे ब्लैक लिस्ट कर रखा है मेरे आवेदन पर सूचना आंशिक तौर पर घुमा फिरा कर दी जाती है। ऐसे में यह सूचना मुझे अपने पिता जी श्रीमान सदाराम सिंह खारी जी के नाम से लेनी पड़ी ऑनलाइन जाकर।

ग्रेटर नोएडा के लाखों शहरी व ग्रामीण नागरिक इसे ऐसे समझे।

वर्ष 2020-21 के ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के स्वास्थ्य विभाग का सेक्टर और 100 से अधिक गांव में मच्छरों के खात्मे के लिए एंटीलारवासाइड स्प्रे , फागिंग का बजट था 1 करोड़ 10 लाख रुपए खर्च किया गया केवल 13 लाख ₹50 हजार। वर्ष 2019- 20 का भी इतना ही बजट था पर खर्च किया गया फिर केवल 40 लाख रुपए। इतना ही नहीं 2018-19 का बजट था डेढ़ करोड़ रूपए खर्च किया गया केवल 16 लाख ₹54000 रुपए अर्थात इन तीनों सालों में 100 से अधिक गांवों में 1 दर्जन से अधिक रिहायशी शहरी सेक्ट्रो के लिए जो धनराशि खर्च की जानी थी मच्छरों से मुक्ति दिलाने के लिए बजट के अनुसार उसका केवल 10 फ़ीसदी ही खर्च किया गया।

अब कोरोना महामारी पर आते हैं यह जनाब जिन आईएएस अधिकारी का नाम हमने ऊपर लिया है यह गौतम बुध नगर जिले के कोविड-19 प्रभारी भी रहे हैं साथ ही है जिले के तीनों नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना प्राधिकरण के भी प्रभारी रहे। इनके खुद के प्राधिकरण जिसके यह शीर्ष अधिकारी हैं ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में सैनिटाइजेशन के लिए सेक्टर व गांव का बजट बनाया गया 3 करोड़ 70 लाख रुपए लेकिन सैनिटाइजेशन वर्क पर केवल 70 लाख रुपए ही यह कामचोर प्राधिकरण खर्च करता है। 3 करोड रुपए यूं ही रह गए। ऐसा केवल अपने भारतवर्ष में ही होता है जहां ऐसे कामचोर निष्क्रिय अधिकारी शीर्ष पदों को हासिल कर लेते हैं किसी अन्य देश सिंगापुर हांगकांग जापान में यह चपरासी बनने की भी योग्यता नहीं रखते। अब जो धनराशि खर्च की गई है उसमें भी जो केमिकल दवाई इस्तेमाल की गई है वह भी एकदम घटिया किस्म की थी यहां दोहरे स्तर की समस्या है भ्रष्टाचार और कामचोरी । चलो मान लिया कोरोना तो वैश्विक महामारी थी लेकिन इनकी काम चोरी के कारण लोगों को जो दुख पीड़ा हुई डेंगू से जिन परिवारों में मौतें हुई हैं उनकी मौत का जिम्मेदार मानते हुए इन पर आपराधिक अभियोग चलना चाहिए। इन अधिकारियों की संपत्ति जप्त होनी चाहिए इनकी पदोन्नति पर रोक लगनी चाहिए यदि इन्हें बर्खास्त नहीं कर सकते। लेकिन काश ऐसा हो पाता भारत में ऐसा कोई भी तंत्र व्यवस्था नहीं है यहां ना मजबूत जनलोकपाल है ना ही भ्रष्ट व कामचोर अधिकारियों के लिए तत्काल दंड की व्यवस्था सुनिश्चित करने वाला निर्णायक तंत्र नहीं है सीएमओ व पीएमओ को लिखा है लेकिन इतना जरूर किया है जब देश का किसान अपने मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठा सकता है तो हम पीड़ित नागरिक स्वास्थ्य से जुड़े इस मुद्दे को विश्व स्वास्थ्य संगठन में क्यों नहीं उठा सकते हैं मैंने विश्व स्वास्थ्य संगठन को मेल की है कि भविष्य में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को मच्छर जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए किसी भी प्रकार का तकनीकी आर्थिक सहयोग ना दें क्योंकि यह कामचोर प्राधिकरण है यह बजट पर कुंडली मारकर बैठ जाता है आखिर हम 21वीं सदी में जी रहे हैं ग्लोबल नागरिक हैं। इन को कोई दंड दे ना दे भगवान जरूर दंड देगा ईश्वर न्यायकारी है वह सब का न्याय करेगा चाहे राजनेता हो या अधिकारी।

उत्पीड़न के लिए हम खुद भी जिम्मेदार है बस सहते रहते हैं जन आंदोलन नहीं करते पूरी इमानदारी निष्कामता से। स्थानीय नेता विपक्ष तो ऐसे मुद्दों पर ध्यान ही नहीं देता उसे स्थानीय मुद्दे मुद्दे ही नजर नहीं आते सबको राष्ट्रीय नेता बनना है सोशल मीडिया पर व्यर्थ की बकवास जारी रहती है। हमारा यह अनुभव है आम आदमी को राष्ट्रीय मुद्दों से पहले उसके आसपास की स्थानीय मुद्दे गंभीर तौर पर अधिक निकट से प्रभावित करते हैं।

जेवर, दादरी विधायक की तो पूछिए मत दोनों अथॉरिटी से पूछते ही नहीं है उस से जवाब तलब भी नहीं करते ऐसे नकारा अधिकारियों की शिकायत सदन में तो कर ही सकते हैं क्योंकि वह जनप्रतिनिधि हैं लाखों शहरी ग्रामीण जनता के।

अब ज्यादा नहीं कहते अंत में हम धन्यवाद करते हैं दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार मनीष तिवारी जी का जिन्होंने हमारे आरटीआई खुलासे को खबर के रूप में प्रकाशित किया।

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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