आज पर्यंत पृथ्वी के समस्त जीव धारियों में इंसान सर्वाधिक विकसित मस्तिष्क तर्क भाषा कौशल से युक्त जीव है लेकिन अचरज का विषय है जहां पशु पक्षी पैदा होते ही तैरना उड़ना घोंसला बनाना शिकार करना सीख जाते हैं पशु पक्षियों के इस ज्ञान को स्वाभाविक ज्ञान कहते हैं। यह जन्म से ही मिलता है यह ना घटता है ना बढ़ता है। वही इंसान का बच्चा बिना सिखाये कुछ नहीं सीख सकता। मां बाप शिक्षक अभिभावक बच्चे को बोलना बैठना भोजन करना परिधान पहनना पढ़ना लिखना सब कुछ सिखाते हैं तब जाकर बच्चा सीख पाता है या यू कहे बच्चा मां बाप बड़े भाई बहनों को देखकर सब कुछ सीखता है ऐसे ज्ञान को नैमित्तिक ज्ञान कहते हैं। अर्थात जो किसी माध्यम से हमें मिलता है लेकिन सोचिए कोई बच्चा जन्म से ही मां-बाप इंसानी हस्तक्षेप से मुक्त हो जाए उसका लालन-पालन जंगली अवस्था में जंगली जानवरों के बीच हो तो क्या वह सामान्य मनुष्य के समान बौद्धिक सामाजिक उन्नति कर सकता है?
ऐसे बच्चे अबोध शिशु अवस्था से ही जिनका लालन-पालन जंगली जीव करते हैं जंगल में होता उनको फेरल चाइल्ड कहा जाता है। दुनिया में फेरल चाइल्ड के बहुत कम मामले घटित हुए हैं जहां किसी इंसानी बच्चे का लालन-पालन भेड़ियों या बंदरों के समूह ने किया होगा । ऐसा ही एक सत्य घटना है अपने भारतवर्ष की ।यह केस आज भी फेरल चाइल्ड के मामले में सबसे प्रमुख माना जाता है ।
घटना इस प्रकार है—- “वर्ष 1867 की गर्मियों में अंग्रेज अधिकारियों शिकारियों का एक दल तब के संयुक्त प्रांत और आज के उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के जंगलों में घूम रहा था। एकाएक अंग्रेजों की नजर जंगल में तेजी से दौड़ते हुए जंगली भेड़िया के समूह पर पड़ी । अंग्रेज दल ने पाया कि भेड़ियों के इस समूह के बीच एक 6 से 7 वर्ष की आयु का इंसानी बच्चा भेड़ियों के ही समान आवाज निकालते हुए दोनों हाथों को जमीन पर टिकाते हुए भेड़ियों के समान ही दौड़ रहा है”।
अंग्रेज दल भेड़ियों के उस समूह का पीछा करता है । अंत में अंग्रेज शाम होते-होते भेड़ियों की मांद में छुपे हुए इंसानी बच्चे को पकड़ लेते हैं मादा भेड़िए का शिकार कर जो उसकी सुरक्षा के लिए मांद में छुपी होती है। वह इंसानी बच्चा बेहद डरा सहमा हुआ था भेड़िया की तरह ही चीख रहा था। अनुमानों से यह सिद्ध हुआ उस बच्चे को बहुत छोटी नवजात उम्र में ही उसकी इंसानी मां कि करवट से किसी शिकारी भेड़िए ने उठा लिया था देवयोग से भेड़ियों ने उसे अपना शिकार नहीं बनाया वह बच्चा जंगली भेडियो के बीच ही बड़ा हुआ। अंग्रेज उस बच्चे को साथ लेकर उसे अगले दिन आगरा के एक औरफ़न हाउस अर्थात अनाथ आश्रम में दाखिल करते हैं उसे इंसानि तौर तरीका सिखाने के लिए जिस दिन उसका दाखिला उस अनाथ हाउस में कराया जाता है वह शनिवार का दिन था तो उसे नाम दिया गया दीना शनिचर। अंग्रेजों ने आयु संबंधित तमाम परीक्षण उस पर किए उसकी आयु 6 से लेकर 10 वर्ष के बीच निर्धारित की लेकिन अंग्रेजों के पसीने छूट गया जंगली जानवरों के बीच बचपन से ही पले बढ़े उस बच्चे को इंसानों की तरह भोजन कला सिखाने अर्थात पका हुआ भोजन खिलाने में दीना शनिचर आश्रम में दाखिल होने के 5 वर्ष पश्चात भी जंगली भेडियो की तरह कच्चा माँस खाता था कच्चा मांस खाकर उसके दांत विशेष नुकीले हो गए थे कपड़ा पहनते ही वह बीमार हो जाता था अंग्रेजों को 6 वर्ष लग गए उसे कपड़ा पहनने तथा खड़ा होकर इंसानों की तरह चलना सिखाने में वह भी पूरी तरह से नहीं। जीवन पर्यंत इंसानों की तरह उनकी भाषा बोलना उसे समझना तो दूर की कोडी रही दीना शनिचर के लिए।
उस आश्रम में दीना सनीचर 35 वर्ष की आयु तक रहा इस दौरान उसने किसी भी इंसान को अपना मित्र नहीं बनाया केवल उसकी मित्रता हुई तो एक आश्रम के कुत्ते के साथ जिसके साथ वह खेलता था। विडंबना तो देखिए इतने वर्षों में उसने कुछ भी ऐसा नहीं सीखा जिसके कारण है विकसित व मानसिक तौर पर स्वस्थ इंसान तो दूर अल्पविकसित मानसिक स्थिति वाला इंसान भी कहलाए हां लेकिन एक बुरी आदत उसने जरूर सीख ली थी आश्रम के किसी कर्मी से दीना शनिचर ने धूम्रपान करना सीख लिया उसी के कारण ट्यूबरक्लोसिस से उसकी दुखद मौत हुई 35 वर्ष की आयु में ही।
जंगली भेडियो के बीच पले बढ़े दिना शनिचर केस से बहुत से अंग्रेज पश्चिम के जीव वैज्ञानिकों मानव व्यवहार वैज्ञानिकों ने शोध किया इंसान कैसे सीखता है समझता है कैसे व्यवहार करता है इस विषय पर समझने में मदद मिली। इतना ही नहीं इस सत्य घटना पर आधारित भारत में जन्मे पले बढ़े अंग्रेज साहित्यकार पत्रकार नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध लेखक ‘रुडयार्ड किपलिंग’ ने “दी जंगल बुक” लिखी उस बुक को लिखने की प्रेरणा व उस बुक का मुख्य पात्र ‘मोगली’ असल जिंदगी का दिनां सनीचर ही था।
19वीं शताब्दी के महान दार्शनिक समाज सुधारक देव ऋषि दयानंद सरस्वती ने अपने द्वारा रचित “सत्यार्थ प्रकाश” ग्रंथ ,चारों वेदों की भूमिका पर लिखे गए ग्रंथ ऋग्वेदआदिभाष्यभूमिका में युक्ति तर्क से वेदनित्य विषय में यह भली-भांति सिद्ध कर दिया था कि इंसान का स्वाभविक ज्ञान बहुत कम है इंसान का ज्ञान नैमित्तिक है अर्थात सृष्टि के आदि में परमात्मा ने वेदों का ज्ञान चार ऋषि-मुनियों की आत्मा में प्रकाशित किया अर्थात ईश्वर ही सबसे पहला उपदेशक शिक्षक है ईश्वर यदि वेद ज्ञान मनुष्य को ना देता तो मनुष्य जंगली अवस्था में ही घूमता फिरता कुछ भी बौद्धिक वैज्ञानिक अध्यात्मिक उन्नति ना कर पाता।
महर्षि दयानंद ने यह दलीलें उन नास्तिकों के कुतर्कों के निराकरण के लिए दी जो यह कहा करते थे कि कोई ईश्वर नहीं है कोई ईश्वर का ज्ञान मनुष्य के लिए नहीं है मनुष्य ने अपनी बौद्धिक उन्नति कर वेद धर्म ईश्वर को रच लिया है गढ़ लिया है। अर्थात आदिम देव भाषा संस्कृत कौशल तर्क युक्ति शब्द अर्थ संबंध ईश्वर द्वारा प्रतिपादित ना होकर मनुष्य द्वारा निर्मित है।
आजकल के नवबोध कम्युनिस्ट भी कुछ ऐसी ही दलीलें देते हैं तोड़ मरोड़ कर।
उनके लिए केवल इतना ही है कि वह दीना शनि चर के केस को स्टडी करें यदि बाबा साहब अंबेडकर को कोई पाठशाला में वर्णमाला का ककहरा ना सिखाता तो बाबा साहब इतने ऊंचे विद्वान कैसे बनते? कैसे समाज सुधार के इतने बड़े कार्य कर पाते और बाबा साहब के गुरु को जिसने पढ़ना सिखाया उसका भी कोई गुरु है फिर उसका गुरु और उसका भी गुरु अंत में हम उस अवस्था में पहुंचते हैं जहां सभी का मूल गुरु ईश्वर है। ऐसा प्रथम उपदेशक को जो काल से नहीं कटता शरीर धारी गुरु काल से कट जाते हैं। इसलिए पतंजलि मुनि ने योग दर्शन में कहां है गुरुओं के भी गुरु परमपिता परमेश्वर के लिए।
पूर्वेषाम् अपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्॥१.२६॥
महान कवि भजन उपदेशक स्वर्गीय सत्यपाल पथिक ने महर्षि पतंजलि के योगसूत्र को अपने भजन में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है।
कौन कहे तेरी महिमा।
कौन कहै तेरी माया ।।
अज, अमर ,अविनाशी, कण-कण में व्यापक है।
सबसे पहला उपदेशक है और अध्यापक है।।
आर्य सागर खारी✍✍✍