जनसंख्या वृद्धि रच रही है हमारे विनाश की लीला
संदीप सृजन
वर्तमान में विश्व की जनसंख्या साढ़े सात अरब के आंकड़े को पार कर चुकी हैं । और जिस रफ़्तार से जनसंख्या बढ़ रही हैं वह आने वाले समय में पुरे विश्व में भयावह स्थिती का निर्माण करेगी। कारण जनसंख्या वृद्धि की रफ़्तार के सामने प्राकृतिक संसाधन पुरे विश्व में सिमित है। बेलियात के विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मालथस ने लगभग दो सौ साल पहले यह सिद्धान्त दिया था कि पृथ्वी में पोषण क्षमता सीमित है। अत: प्राकृतिक पारिस्थितिकी के पुनर्भरण की क्षमता के मध्य इसका सन्तुलित उपभोग करने पर ही पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण को लम्बे समय तक टिकाऊ रखा जा सकता है अन्यथा जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि प्रकृति के विनाश का कारण बन सकती है। आज विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग की पूर्ति के लिए जिस तरह प्रकृति के नियमों को दरकिनार कर तीव्र गति के औद्योगिकरण, शहरीकरण व मशीनीकरण के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन हो रहा हैं उसी का परिणाम है कि हमारी सारी नदियां सूखती जा रही हैं। समुद्र प्रदूषित हो रहे हैं। जल, जंगल और जमीन घटते जा रहे हैं। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे का सामना करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे पर विश्वव्यापी बहस छिड़ी हुई है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण आज किसी भी स्थान पर चले जाओ चाहे रेलवे स्टेशन हो, बस स्टैंड हो, बैंक हो चाहे कोर्ट हो हर जगह लाइन में लगना पड़ता है ।इसका मुख्य कारण जनसंख्या का बढ़ना है और संसाधनों की कमी होना है। जिस रफ़्तार से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है वह एक चिंता का विषय बन गया है । अगर समय रहते जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण ना किया गया तो इसके भविष्य में दूरगामी दुष्प्रभाव होंगे।
आज भारत की जनसंख्या 130 करोड़ से भी अधिक है। सांख्यिकी वैज्ञानिक कह रहे हैं हमारी जनसंख्या वृद्धि दर 2.11 है। आबादी की दृष्टि से पूरे विश्व में भारत दूसरे स्थान पर है। प्रथम स्थान पर चीन है I लेकिन वह दिन दूर नहीं जब भारत चीन से भी आगे निकल जाएगा। विश्व की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या भारतीय भू-भाग पर निवास करती है। जनसंख्या का यह प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है लेकिन दूसरी ओर भूमि का भाग स्थिर है। प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता घट रही है। भारत की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है जिसकी आजीविका खेती, चारागाह तथा वनोत्पादन जैसे प्राथमिक व्यवसाय पर निर्भर है। आजादी के बाद सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से खेती की उन्नति के कई प्रयास किए। सिंचाई के साधनों का विकास किया तथा भूमि सुधार के माध्यम से खेती योग्य भूमि में भी विस्तार किया परन्तु इस विकास व विस्तार का अपेक्षित लाभ नहीं मिला। जनसंख्या में प्रति व्यक्ति हिस्सेदारी में भूमि में कमी होती गई। जनसंख्या वृद्धि के कारण ग्रामीण जीवन के जीविकोपार्जन के मूलभूत संसाधन घटते चले जा रहे हैं। जल संकट हमारा सब का अनुभव है। तीन चार दशक से हमने इस संकट की तीव्रता महसूस की हैं और बेहतर जल प्रबधन के लिये गम्भीरता से काम भी हो रहे हैं। लेकिन जनसंख्या के आकड़ों के सामने सब काम कम लगते है। यही स्थिति ऊर्जा तथा अन्य खनिज संसाधनों की है। आगे भी यही स्थिती रही तो आने वाले समय में तो पीने के पानी खत्म हो जाएगा घर बनाने के लिए जगह नहीं रहेगी सारे जंगल नष्ट हो जाएंगे और इस धरती का पूरा संतुलन बिगड़ जाएगा। आज सभी बुद्धिजीवियों, बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को इस विषय पर चिंतन जरूर करना चाहिए।
जनसंख्या वृद्धि को रोकना राष्ट्रहित में है और इसके लिए राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए I छोटे परिवारों को प्रोत्साहन करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए I अधिक संतान वाले लोगों को नौकरी से वंचित किया जाना चाहिए तथा राजनैतिक गतिविधियों में भी रोक लगनी चाहिए। परिवार नियोजन को राष्ट्रीय कार्यक्रम का दर्जा देना चाहिए। जनसंख्या रोकने के लिए आज आधुनिक संचार माध्यमों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। साठ के दशक के अन्तिम वर्षों में परिवार नियोजन के कार्यक्रमों पर जोर देकर दूरगामी योजनाओं का हिस्सा बताया गया था लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में यही कार्यक्रम सरकार के विरोध और आलोचना का सबसे बड़ा माध्यम बनाया गया। विरोध में इतना आक्रामक और जबरदस्त प्रचार चला कि आगे से इस कार्यक्रम और सम्बन्धित विभाग का नाम बदलकर परिवार कल्याण कर दिया गया। परिवार नियोजन के नाम से सर्वज्ञात उस कार्यक्रम के विरोध के कारणों पर विश्वसनीय शोध और तटस्थ विश्लेषण अभी तक उपलब्ध नहीं है। क्यों नहीं है? यह भी उतना ही शोध का विषय है। लेकिन सामान्य और प्रत्यक्ष अनुभव है कि परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता कम नहीं हुई।समाज में उसकी स्वीकार्यता न तब कम थी और न आज कम है। यानी कटघरे में कोई आएगा तो वह सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र ही आएगा। बल्कि आज स्थिति यह है कि समाज के ही बड़े तबके से यह माँग उठने लगी है कि चीन की तरह ही हमें भी कारगर कानून बना कर जनसंख्या प्रबन्धन करना चाहिए। वरना प्राकृतिक संसाधनों में सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन पानी, उर्जा की जरूरत को पूरा करने में भी हम अक्षम होते जा जाएंगे ।राष्ट्र का हर व्यक्ति को यह ज्ञान हो की जनसंख्या वृद्धि देश हित में नहीं, बल्कि देश को विनाश के कगार की ओर ले जाएगी।