हम अपने आपको ‘आर्य’ क्यों लिखें ?
🙏(ओ३म्)🙏
हिंदू बने रहनेसे क्या हानी है ,
**और आर्य बनने में क्या लाभ है??*
यदि आर्य बनोगे तो तुम्हें वेद पढ़ने का अधिकार मिलेगा , चाहे ब्राह्मण हो , क्षत्रिय हो, वैश्य हो, शूद्र हो, सभी को वेद पढ़ने का अधिकार है, स्त्रियों को भी वेद पढ़ने का अधिकार है। क्योंकि वेद में कहा है यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्य:। ब्रह्मराजन्याभ्यां शुद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय।। यजुर्वेद अध्याय/ २६/मंत्र/२/
अर्थात परमेश्वर कहता है कि (यथा) जैसे मैं (जनेभ्य:) सब मनुष्यों के लिए (इमाम्) इस, (कल्याणीम्) कल्याण अर्थात संसार तथा मुक्ति का सुख देने हारी(वाचम्) ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, चारों वेदों की वाणी का (आवदानि) उपदेश करता हूं वैसे तुम भी किया करो।
(ब्रह्म ) ब्राह्मण
(राजन्याभ्यां) क्षत्रिय (अर्य्याय) वैश्य, (शूद्राय) शूद्र और (स्वाय) अपने भृत्य स्त्रियादि(अरणाय) और अतिशुद्रादि के लिए भी वेदों का प्रकाश क्या है अर्थात सब मनुष्य वेदों को पढ़- पढ़ा और सुन सुना कर विज्ञान को बढ़ाके, अच्छी बातों का ग्रहण और बुरी बातों का त्याग करके दुखों से छूटकर आनंद को प्राप्त हो।
कन्याओं को वेद पढ़ने का अधिकार:-
ब्रह्मचर्य्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम्।। अथर्ववेद अनु०३/प्रपाठक २४/ कांड/११/मंत्र १८)
अर्थात जैसे लड़के ब्रह्मचर्य सेवन से पूर्ण विद्या और सु शिक्षा को प्राप्त होकर युवती, विदुषी, अपने अनुकूल प्रिय सदृश स्त्रियों के साथ विवाह करते हैं,
वैसे (कन्या) कुमारी (ब्रह्मचर्य्येण) ब्रह्मचर्य सेवन से वेदादि शास्त्रों को पढ़, पूर्ण विद्या और उत्तम शिक्षा को प्राप्त युवती होके, पूर्ण युवावस्था में अपने सदृश, प्रिय, विद्वान (युवानम्) और पूर्ण युवावस्थायुक्त पुरुष को (विन्दते) प्राप्त होवे। इसलिए स्त्रियों को भी ब्रह्मचर्य और विद्या का ग्रहण करना चाहिए
स्रोतसूत्रादि में (इमं मंत्रम् पत्नी पठेत् )। अर्थात स्त्री यज्ञ में इस मंत्र को पढ़ें। ऐसा लिखा है, विवाह में अनेक
मंत्र (वर वा) कन्या के बोलने के होते हैं। यदि यह वेदादि शास्त्रों को ना पढ़ी होवे , तो यज्ञ में स्वर सहित मंत्रों का उच्चारण और संस्कृत भाषण कैसे कर सकें? भारतवर्ष की स्त्रियों में भूषणरूप गार्गी आदि वेदादि शास्त्रों को पढ़कर पूर्ण विदुषी हुई थीं_यह शतपथ ब्राह्मण में स्पष्ट लिखा है। भला! जो पुरुष विद्वान और स्त्री अविदुषी और स्त्री विदुषी और पुरुष अविद्वान हो तो नित्य प्रति दिन देवासुर संग्राम घर में मचा रहे, फिर सुख कहां? इसलिए जो स्त्री ना पढें तो कन्याओं के पाठशाला में अध्यापिका क्योंकर हो सकें,
तथा राजकार्य न्यायधीशत्वादि; गृहाश्रम का कार्य जो पति को स्त्री और स्त्री को पति प्रसन्न करना; घर के सब का स्त्री के आधीन रहना, इत्यादि काम बिना विद्या के अच्छे प्रकार कभी ठीक नहीं हो सकते।
देखो! आर्यवर्त्त के राज पुरुषों की स्त्रियां धनुर्वेद अर्थात युद्ध विद्या भी अच्छी प्रकार जानती थीं, क्योंकि जो ना जानती होती, तो कैकेयी आदि दशरत आदि के साथ युद्ध में क्यों कर जा सकती और युद्ध कर सकती? इसलिए ब्राह्मणीस्त्री को सब विद्या, क्षत्रियास्त्री को सभी विद्या और युद्ध तथा राजविद्याविशेष , वैश्यास्त्री
(अर्थात वैश्य की पत्नी) व्यवहारविद्या और शूद्रास्त्री को पाकादि (भोजन बनाना,) सेवा की विद्या अवश्य पढ़नी चाहिए। जैसे पुरुषों को भी व्याकरण, धर्म और अपने व्यवहार की विद्या कम से कम अवश्य पढ़ लेनी चाहिए। वैसे ही स्त्रियों को भी व्याकरण, धर्म, वैद्यक ,गणित,शिल्प विद्या अवश्य ही सीख लेनी चाहिए।
क्योंकि इनके सीखे बिना सत्य असत्य का निर्णय; पत्यादि से अनुकूल वर्तमान, यथा योग्य संतानोत्पत्ति, उनका पालन, वर्द्धन और सुशिक्षा करना, घर के सब कार्यों को जैसे चाहिए वैसा करना- कराना, वैद्यकविद्या से औषधिवत् को अन्न पान बना और बनवाना नहीं कर सकती।
जिससे घर में रोग कभी न आवे और सब लोग सदा आनंदित रहें , शिल्प विद्या के जाने बिना घर का बनवाना वस्त्र आभूषण आदि का बनाना-बनवाना,
गणित विद्या के बिना सब का हिसाब समझना समझाना ,
वेदादि शास्त्र विद्या के जाने बिना ईश्वर और धर्म को नहीं जान सकते, और इनको जाने बिना अधर्म से कभी नहीं बच सकते। इसीलिए वे ही धन्य और कृतकृत्य हैं कि जो
अपनी संतानों को ब्रह्मचर्य, उत्तम शिक्षा और विद्या से शरीर और आत्मा के पूर्ण बल को बढ़ावें । जिससे वे संतान मातृ, पितृ , पति, सासु , श्वसुर, राजा, प्रजा, पड़ोसी, इष्ट मित्र और संतानादि से यथा योग्य धर्म से वर्तें यही कोश अक्षय है । इसको जितना व्यय करें, उतना ही बढ़ता जाए। अन्य सब कोश व्यय करने से घट जाते हैं और दायभागी भी निज भाग ले लेते हैं और विद्याकोश को चोर भी नहीं चुरा सकता और इसका हिस्सेदार- दायभागी कोई भी नहीं हो सकता।
कन्यानां सम्प्रदानं च कुमाराणां च रक्षणम् ; मनुस्मृति अध्याय/ ७/श्लोक/१५२/) अर्थात राजा को योग्य है कि सब कन्या और लड़कों को उक्त समय से उक्त समय तक ब्रम्हचर्य में रखकर विद्वान कराना। जो कोई इस आज्ञा को ना माने तो उसके माता-पिता को दंड देना। अर्थात राजा की आज्ञा से आठ वर्ष के पश्चात लड़का वा लड़की किसी के घर में ना रहने पावें, किंतु आचार्यकुलम में रहैं । जब तक समावर्त्तन का समय ना आवे, तब तक विवाह ना होने पावे।
वैदिक संस्कृति में आर्य संस्कृति में आर्य बनाने में चाहे कोई शूद्र हो या किसी भी वर्ण का हो प्रत्येक व्यक्ति को वा स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार है वेद पढ़ने का अधिकार है।)
किंतु इसके विपरीत हिंदू बनने में हानि ही हानि है।:-
क्योंकि शंकराचार्य ने वेदांत दर्शनशंकरभाष्य/२/३/४/) लिखा है कि:- स्त्रीशूद्रौ नाधीयातामिति श्रूते: अर्थात स्त्री और शूद्र को वेद पढ़ना मना है स्त्री और शूद्र वेद ना पढें।
यदि किसी ने धोखे से वेद पढ़ भी लिए तो
उसको :-
अथास्य वेद
मुपश्रण्वतस्त्रपुजतुभ्यां श्रोत्र प्रतिपूरणम्। उच्चारणे जिह्वाच्छेदो धारणे शरीर भेद:।।
वेदांत दर्शन शंकर भाष्य अध्याय/ १/पाद/३/अ०/१०/सूत्र/ ३८/) अर्थात वेद सुनने वाले शूद्र के कान में लाख और शीशा तपा कर डालना चाहिए उच्चारण करें तो जीह्वा काट लेनी चाहिए और यदि अर्थ धारण कर ले तो शूद्र का शरीर फाड, डालना चाहिए नष्ट कर देना जान।
हिंदू बनाने में चाहे कितने भी शिक्षित क्यों ना हो जाओ तब भी नीचे कुल में ही गिने जाओगे अर्थात शूद्र का बेटा शुद्र ही रहेगा चाहे कितना भी शिक्षित हो जाए।
ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण ही रहेगा चाहे अनपढ़ ही क्यों ना हो।
वैश्य का बेटा वैश्य ही रहेगा , चाहे उसके अंदर ब्राह्मण के गुण क्यों ना हो।
क्षत्रिय का बेटा क्षत्रिय ही रहेगा चाहे उसके अंदर ब्राह्मण के गुण क्यों ना हो।
हिंदू बनाने में जाति प्रथा का बोझ झेलना पड़ेगा।
हिंदू बनने पर तुम्हें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र को एक साथ बैठने का भी अधिकार नहीं और एक साथ भोजन करने का अधिकार भी नहीं मिलेगा।
हिंदू बनने पर तुम्हें अनपढ़ ब्राह्मण के बेटे को भी ब्राह्मण मानना पड़ेगा। हिंदुओं में वर्ण परिवर्तित नहीं होता।
किंतु वैदिक संस्कृति में मनुष्य में जाति प्रथा है ही नहीं
सिर्फ वैदिक संस्कृति में मनुष्य में वर्ण व्यवस्था है ,
वैदिक संस्कृति में यदि ब्राह्मण का बेटा अशिक्षित है तो वह ब्राह्मण नहीं कहलाएगा।
यदि शूद्र का बेटा वेदों का विद्वान बन गया है तो वह ब्राह्मण कहलाएगा।
वैदिक संस्कृति में शिक्षित होने पर वर्ण परिवर्तित हो जाता है वर्ण व्यवस्था शिक्षा के आधार पर है ।
क्योंकि मनुस्मृति में कहा है:-शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् । क्षत्रियाज्जातमेवन्तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च ।। मनुस्मृति अध्याय/१०/श्लोक/६५/) अर्थात जो शूद्र कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के सदृश गुण, कर्म स्वभाव वाला हो, तो वह शुद्र भी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, हो जाता है।
वैसे ही ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य,के कुल में उत्पन्न हुए शुद्र के सदृश गुण कर्म स्वभाव वाला हो, तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भी शुद्र हो जाता है।
वैसे ही क्षत्रिय, वैश्य के कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण वा शूद्र के गुणों के सदृश गुण वाले होने से, ब्राह्मण और शूद्र भी हो जाते हैं । अर्थात चारों वर्णों में जिस जिस वर्ण के सदृश जो जो पुरुष वा स्त्री हो, वह वह उसी वर्ण में गिने जावे।
धर्मचर्य्यया जघन्यो वर्ण: पूर्वं पूर्वं वर्णमापद्यते जातिपरिवृत्तौ ।।१।।
अधर्मचर्य्यया पूर्वो वर्णो जघन्यं जघन्यं वर्णमापद्यते जातिपरिवृत्तौ।।२।।
यह आपस्तम्ब का सूत्र है:-(प्रश्न/२/प॰५/क॰/११/सूत्र /१०/११/) अर्थात धर्माचरण करने से निकृष्ट वर्ण भी अपने से उत्तम- उत्तम वर्ण को प्राप्त होता है और वह उसी वर्ण में गिना जावे कि जिस-जिस के वह योग्य होवे।(१)
वैसे ही अधर्माचरण करने से पूर्व-पूर्व अर्थात उत्तम-उत्तम वर्ण वाला मनुष्य भी अपने से नीचे वाले वर्ण को प्राप्त होता है और वह उसी वर्ण में गिना जावे जिसके वह योग्य हो।
वैदिक संस्कृति में आर्य संस्कृति में जैसे पुरुष जिस-जिस वर्ण के योग्य होता है, वैसे ही स्त्रियों की भी व्यवस्था समझनी चाहिए जो पुरुषों के लिए नियम है वही स्त्रियों के लिए भी नियम है।
इससे क्या सिद्ध हुआ कि इस प्रकार होने से सब वर्ण अपने अपने गुण कर्म स्वभावयुक्त होकर शुद्धता के साथ रहते हैं, अर्थात ब्राह्मण कुल में कोई क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के सदृश ना रहे और क्षत्रिय वैश्य तथा शुद्र वर्ण भी शुद्ध रहते हैं । वर्णसंकरता प्राप्त ना होगी इससे किसी वर्ण की निंदा व अयोग्यता भी ना होगी ।
वैदिक संस्कृति में आर्य संस्कृति में पिता के अनुसार सदैव के लिए वर्ण नहीं चलता पिता का वर्ण सिर्फ बालक की शिक्षा पूरी होने तक ही चलता है, जब बालक शिक्षित हो जाता है तब गुरु उसके गुण, कर्म, स्वभाव ,अनुसार उसको वर्ण प्रदान करता है।
अनेक महापुरुषों का वर्ण परिवर्तन भी हुआ है उदाहरणार्थ देखिए :-
(१) महर्षि सत्यकामजाबाल जो जवाला नाम की एक निम्न जाति की सेविका के पुत्र थे , उन्हें अपने गोत्र, कुल, वर्ण का ही पता नहीं था जो ऋषि पदवी को प्राप्त हुए इन्होंने जाबालोउपनिषद भी लिखा इनका वाल्मीकि रामायण में भी नाम आता है।
(२)कवष, ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित यह एक शुद्र के पुत्र थे ब्राह्मण वर्ण में आकर के ऋषि पदवी पाकर इन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ लिखा इसी नाम के उपनिषद के रचयिता भी थे।
(महर्षि व्यास ब्रह्म सूत्रों का रचयिता,महाभारत, एक मल्हा की लड़की के पुत्र थे जो ब्राह्मण वर्ण में आकर के ऋषि पदवी को प्राप्त हुए।
(५) महर्षि पराशर एक चांडाल स्त्री के पुत्र थे जो ब्राह्मण वर्ण में आकर के पराशर स्मृति के लेखक हुए।
(६) वशिष्ठ महर्षि एक निम्न जाति की स्त्री के पुत्र थे यह ब्राह्मण वर्ण में आकर के ऋषि पदवी को प्राप्त हुए और अयोध्या के कुल गुरु बने वा राम ,भरत ,शत्रुघ्न, लक्ष्मण के गुरु बने।
(७) महर्षि विश्वामित्र यह एक क्षत्रिय के पुत्र थे यह ब्राह्मण वर्ण में आकर के ऋषि पदवी को प्राप्त हुए और राम के गुरु बने।ऐसे वैदिक संस्कृति में अनेकों उदाहरण है।
मनुस्मृति में है कहा है, किजो उच्चवर्ण का हो करके संध्या उपासना नहीं करता वेदों का स्वाध्याय नहीं करता उसको द्विज वर्ण से शुद्र वर्ण में डाल देना चाहिए।
योनधीत्य द्विजो वेद मन्यत्र कुरुते श्रमम् ।
स जीवन्नेव शूद्रत्वमाशुगच्छति सान्ववय:।। मनु स्मृति अध्याय/२/श्लोक/१६८/) अर्थात यदि कोई द्विज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, वेदों का अध्ययन त्याग कर और अन्यत्र ही परिश्रम करता है तो वह इसी जीवन में पुत्र पौत्रों सहित शुद्रत्व को प्राप्त हो जाता है।)
हिंदू बनने पर घोर रूढ़िवादीता का सामना करना पड़ेगा एक दूसरे के साथ बराबर बैठ कर भोजन भी नहीं कर सकते , एक दूसरे का बनाया भोजन स्वीकार नहीं कर सकते, आपस में शादी विवाह जाति बंधन तोड़ कर नहीं कर सकते, एक दूसरे को स्पर्श भी नहीं कर सकते कहीं दूषित ना हो जाए यह भावना बनी रहेगी,)
किंतु वैदिक संस्कृति में
सहभोज करने का अधिकार है , चारों वर्णों एक साथबैठकर एक पंक्ति में भोजन कर सकते हैं , हां इतना अवश्य है कि किसी का जूठा भोजन नहीं करना चाहिए।
हिंदू की पहचान यदि हिंदू बनोगे तो यह सब करना होगा:हिंदू किसे कहते हैं:-
१:-जो मूर्तिपूजक है।
२:-मूर्तिपूजा करने से विवेकहीन हैं।
३ :-जो तर्कहीन हैं।
४:- जो अवतारवाद को मानने वाला हैं।
५:- जो पुराणों को मानता हैं।
६ :-जो किसी को भी देवता समझ लेता हैं ।
७:- जो किसी पाखंडी को भी बिना परीक्षा अपना गुरु बना लेता हैं।
८:- जो अपने शत्रुओं की मजारों की भी पूजा करता हैं।
९:- जो सत्य को कभी स्वीकार करने को तैयार ही नहीं हैं।
१०:- जिसके, मन में वचन में और कर्म में कभी एक बात होती ही नहीं हैं।
११:- जो गुलामी को अधिक पसंद करता है।
१२:-जिसको समझाना कठिन , और बहकाना सरल हो , उसी को हिन्दू कहते हैं । )
वैदिक संस्कृति में आओगे तो
आर्य बनोगे तो यह करना होगा जिससे तुम्हें लाभ भी होगा:-
(१)वेद का ज्ञान करना कराना होगा।
(२)ओम का ध्यान करना होगा।
(३)यज्ञ का अनुष्ठान करना कराना होगा।
(४)राष्ट्रीय हित बलिदान के लिए सदैव तत्पर (५)रहना होगा।
अपनी संतानों को संस्कारवान बनाना होगा।
(तो आइए कौन-कौन अपनी प्राचीन वैदिक संस्कृति में आना चाहता है कौन अपने पूर्वजों की है संस्कृति को अपनाना चाहता है)
(ओमेंद्रार्य मुरादाबाद)