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पेशावर का पैशाचिक कृत्य, आतंकियों को अच्छे बुरे वर्गों में बाँटने का परिणाम

                 पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर प्रदेश के पेशावर शहर में इस्लामी आतंकवादियों ने वहाँ के सैनिक स्कूल पर हमला करके अध्यापकों और बच्चों समेत १४० लोगों को मौत के घाट उतार दिया । मरने वालों में १३२ उस स्कूल के छात्र ही थे । आतंकवादी जब कक्षाओं में घुस कर छात्रों को गोलियाँ मार रहे थे तो जिन अध्यापकों ने इसका विरोध किया उनको उन्होंने ज़िन्दा ही जला दिया । सेना के जवानों ने सातों आतंकवादियों को मार गिराया , नहीं तो स्कूल के पाँच सौ के लगभग छात्र मारे जाते । मरने वाले १३२ छात्रों के अतिरिक्त १२० छात्र ऐसे हैं जो आतंकवादियों की गोलियाँ से घायल होकर अस्पतालों में पड़े हैं ।

          वैसे तो अब पाकिस्तान में इतने ज़्यादा इस्लामी आतंकवादी गिरोह बने हुये हैं कि इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि इन बच्चों को किस गिरोह ने मारा है । लेकिन रिकार्ड के लिये तहरीक-ए-तालिबान ने इस स्कूल पर हमला करके यह अमानवीय पैशाचिक नृत्य किया है । पाकिस्तानी सेना के एक प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि आतंकवादियों की रणनीति से लगता है कि वे स्कूल में छात्रों को बन्धक बना कर , सरकार से अपनी कुछ माँगे मनवाने की नीयत से नहीं आये थे । उनकी रणनीति में स्कूल के छात्रों को सीधे सीधे मार कर आतंक व्याप्त करना ही था । इस आतंकवादी हमले से आहत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने हस्बेमामूल कहा ही है कि पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखेगा । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस पैशाचिक हमले पर पाकिस्तान के साथ सम्वेदना प्रकट की है और हर सम्भव सहायता देने की पेशकश भी की है । भारत के अनेक स्कूलों में छात्रों ने पेशावर में मारे गये छात्रों की याद में मौन रखा । दुनिया भर के देशों ने इस हमले की निन्दा की है । उसमें अमेरिका भी शामिल है । इस कृत्य की निन्दा की भी जानी चाहिये ।

                          पाकिस्तान में इतने आतंकी समूह हैं कि वहाँ की सरकार को भी शायद यह पता लगाने में वक़्त लगता कि यह हमला किस गिरोह ने किया है । लेकिन तहरीके तालिबान ने अपने उपर ज़िम्मेदारी लेकर सरकार का यह भार जरुर हल्का कर दिया । शिनाख्त कर पाने में आ रही दिक़्क़त का एक कारण है । पिछले दिनों अमेरिका की सरकार ने , जो अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामी आतंकियों से लड़ने का दावा कर रही है , तालिबान को दो समूहों में बाँट लिया था । अच्छे तालिबान और बुरे तालिबान । अच्छे तालिबान वे हैं जो सरकार की योजना और इच्छानुसार काम करते हैं और बुरे तालिबान वे हैं जो अपनी इच्छा और योजना से काम करते हैं । पिछले दिनों जब अमेरिका की सरकार ने बहुत मेहनत करके अफ़ग़ानिस्तान के कुल तालिबानों में से अच्छे तालिबान छाँट लिये थे और उनसे परोक्ष रुप से बातचीत भी प्रारम्भ कर दी थी तो वहाँ के उस समय के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने इसका बहुत बुरा मनाया था और यहाँ तक कह दिया था कि अमेरिका सरकार तालिबान को अपनी योजना के अनुसार इस्तेमाल करती है और उसी के अनुसार उसे अच्छे बुरे का तगमा देती है । यही स्थिति पाकिस्तान सरकार की है । उसने भी पाकिस्तान में काम कर रहे तालिबान का इसी तरीक़े से विभाजन किया है । जो आतंकवादी पाकिस्तान के इशारे पर जम्मू कश्मीर में निर्दोषों की हत्या करते हैं , वे अच्छे तालिबान हैं । उनकी सुरक्षा करना और उनको पालना पोसना पाकिस्तान सरकार अपनी दीनी फर्ज समझती है । लेकिन जो तालिबान पेशावर में स्कूल पर हमला करके निर्दोषों की हत्या करते हैं । वे बुरे तालिबान हैं । उनकी जितनी निन्दा की जाये , उतनी कम है । वैसे केवल रिकार्ड के लिये दर्ज कर लिया जाये , इन सभी तालिबान को जन्म , इनको प्रशिक्षण अमेरिका और पाकिस्तान दोनों ने मिल कर दिया है । प्रशिक्षण देते वक़्त वैचारिक आधार निश्चित किया गया कि इस्लाम ख़तरे में है और ये तालिबान इस्लाम की रक्षा के लिये चलायी जाने वाली तहरीक के मर्दे मुजाहिद हैं । फ़र्क़ केवल इतना ही हुआ कि पहले इन तालिबान को अमेरिका और पाकिस्तान की सरकार बताती थी कि इस्लाम का दुश्मन कौन है । एक बार अमेरिका और पाकिस्तान इस्लाम के दुश्मन की शिनाख्त कर लेते थे तो अपनी इस नई प्रशिक्षित सेना को उस दुश्मन पर छोड़ देते थे । अमेरिका को उन दिनों रुस इस्लाम का दुश्मन लगता था , इसलिये तालिबान वहाँ मोर्चा संभाले हुये थे । लेकिन पाकिस्तान को शुरु दिन से ही हिन्दुस्तान इस्लाम का दुश्मन नज़र आ रहा था , इसलिये उसने इन आतंकी तालिबानों की एक खेप कश्मीर में भेजने के बाद हिन्दुस्तान के दूसरे शहरों में भी अपने आतंकवादी प्रयोग प्रारम्भ कर दिये । दिल्ली में संसद पर और बाद में मुम्बई पर २६/११ को हुआ पाकिस्तान के इसी प्रयोग का फल था ।

                       लेकिन इस्लामी उन्माद की घुट्टी देकर तैयार की गई यह आतंकी सेना बहुत देर तक रोबोट की तरह तो इस्तेमाल हो ही नहीं सकती थी । इस नई इस्लामी तहरीक के कुछ तालिबानों ने ख़ुद भी फ़ैसला करना शुरु कर दिया कि इस्लाम का दुश्मन कौन है ? इस शिनाख्त में उनको अमेरिका ही इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन नज़र आया । वैसे भी यूरोप में अब्राहम की संतानों के आपसी युद्धों का पुराना इतिहास है ।  एक बार इस बात की शिनाख्त हो गई की अमेरिका ही इस्लाम का असली दुश्मन है तो यह शिनाख्त होते भी भला कितनी देर लगती कि अन्दरखाते तो पाकिस्तान की सरकार भी इस्लाम की दुश्मन है , क्योंकि यह अमेरिका के साथ मिली हुई है । तब इस्लामी तहरीक की इस नई तालिबानी सेना की कुछ टुकड़ियों ने इन्हीं के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल जिया । पेशावर में हुआ आतंकी हमला इसी का परिणाम है ।

                पाकिस्तान में फ़िलहाल प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान नवाज़ शरीफ़ इस हमले से काफ़ी ग़ुस्से में हैं । होना भी चाहिये । ऐसा जघन्य काम निश्चय ही सजाये मौत माँगता है । वैसे सेना का दावा है कि उन्होंने आक्रमण करने वाले सातों आतंकियों को मार दिया है । लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका कि उन आतंकियों ने स्वयं ही अपने आप को उड़ाया या सेना ने उनको मारा । क्योंकि सातों आतंकी अपने इर्द गिर्द विस्फोटक पदार्थ बाँधे हुये थे । लेकिन वही  प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है । क्या पाकिस्तान सरकार दाऊद जैसे आतंकवादियों को पनाह देकर और उन्हें सुरक्षा प्रदान कर , दूसरे आतंकियों से लड़ पायेगी ? पाकिस्तान अभी तक आतंकवाद को स्टेट पॉलिसी के तौर पर अफ़ग़ानिस्तान और हिन्दुस्तान पर आक्रमण के रुप में प्रयोग कर रहा है । उसने न तो अभी तक इसे नकारा है और न ही छोड़ा है ।

वह जब तक आतंक को स्टेट पॉलिसी के तौर पर इस्तेमाल करता रहेगा तब तक उसके लिये अपने देश के भीतर आतंकवादियों से लड़ना आसान नहीं होगा । क्योंकि आतंकवादी अच्छा या बुरा नहीं होता , वह केवल आतंकवादी ही होता है । पेशावर की घटना के बाद भी यदि पाकिस्तान सरकार इसको अच्छी तरह समझ ले तो हो सकता है आगे से किसी दूसरे शहर को पेशावर बनने से रोका जा सके ।

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