…… पेशावर की छाती में उतरा तालिबान का खंजर था
हजरत साहब की आँखों में भी आंसू भर आये होंगे,
और मोहम्मद ने निश्चित ही घंटो नीर बहाए होंगे,
जन्नत के तेरे सभी फ़रिश्ते चुप कैसे रह पाए होंगे ?
अली हुसैन से पूंछो जाकर कैसे सब्र वो लाये होंगे,
जब नन्हें मुन्हें बच्चे उस दहशत में चिल्लाए होंगे,
और जालिमों से बचने को भरसक दौड़ लगाये होंगे,
मंजर खौफनाक था बेहद नौनिहाल सब भाग रहे थे,
सब क्रूर दरिन्दे बेदर्दी से उन पर गोली दाग रहे थे,
उन शैतानों ने बच्चों पर भी खूनी खेल चला दिया,
दहशत देने को शिक्षक तक को जिन्दा जला दिया,
डर के मारे सब बेचारे महफूज हिस्से हड़प रहे थे,
दर्द के मारे कुछ बेचारे उस मंजर में तड़प रहे थे,
कहीं किताबें रंगी हुई थीं कहीं हुए लाल वो बस्ते थे,
सब टेबिल कुर्सी फर्श लाल थी जहाँ बैठ वो हँस्ते थे,
सब दीवारें व दरवाजे तक लाल लहू से सने हुए थे,
नन्हें कदमों के निशान भी लाल रंग के बने हुए थे,
नीली स्याही भरी कलम इक पल में ही लाल हुई थी,
और परीक्षा चौबारे की उन बच्चों की जंजाल हुई थी,
उस विद्या के आँगन में वो लाल लाल जो मंजर था,
वो पेशावर की छाती में उतरा तालिबान का खंजर था,
इस घटना के बाद पाक गर सबक नहीं ले पायेगा,
आतंकवाद की भेंट एक दिन मुल्क चला वो जाएगा,
क्यों कारतूस बारूद असलहे मिलते मानो ठेलों में ?
क्यों खूंखारी आतंकी पालकर बैठे अपनी जेलों में ?
आतंकी मंसूबों को तुम कोई ऐसा सा झटका दो,
दामाद बनें आठों हजार आतंकी फाँसी लटका दो,
हाफिज सईद व लखवी जैसे आतंकी क्यों पाले हो ?
जहरीले नागों को खुद ही गले में तुम क्यों डाले हो ?
दिनो रात जब देखो तब शरीयत शरीयत कहते हैं,
बस शरीयत के नाम से ही ये दहशत भरते रहते हैं,
इस दहशत भरी जिन्दगी का रब तूने क्या नाम दिया ?
क्या शरीयत क्या कट्टरपंथी क्या तूने इस्लाम दिया ?
किसी धार्मिक पुस्तक का ये मर्म नहीं हो सकता है,
बहशीपन अंधा कानून कोई धर्म नहीं हो सकता है,
अरे भारत वाले अब्बू चच्चा तालिबान हो आओ तुम,
बेतुल्लाह तहरीक ताल संग जा बिरयानी खाओ तुम,
जिस दिन सभी नवाजी मिलकर पाक पाक हो जायेंगे,
उस दिन सब कट्टरपँथी आतंकी ख़ाक हो जायेंगे,
उस दिन सारी दुनिया में फिर अमन चैन आ जाएगा,
हर बच्चा हर प्रहरी तब से सुख की नींद सो पायेगा,
तब ही दुनिया भर में सच्चा लोकतंत्र लिख पायेगा,
तब ही सारी दुनिया से ये शोकतंत्र मिट पायेगा,
तब ही दुनिया की गलियों में खुशहाली आ जायेगी,
हिन्द सिन्धु की सारी नदियाँ गीत अमन के गायेंगी
चेतन‘ नितिन खरे
महोबा, बुन्देलखण्ड
+91 9582184195