देश के प्रति समर्पित एक योद्धा के रूप में जाने जाने वाले जनरल बिपिन रावत आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके जाने की खबर से देश का हर वह व्यक्ति आहत है जो उनके जैसे व्यक्तित्व को देश की धरोहर समझकर उन पर गर्व करता था। उनकी असामयिक और अप्रत्याशित मृत्यु ने हम सबको झकझोर कर रख दिया है। एक महायोद्धा के लिए नियति ने क्या विधान किया हुआ था ? यह कल तक किसी को पता नहीं था।
माना कि उड़ानों में हादसे अक्सर हो ही जाते हैं, पर यह भी सच है कि हादसे होते भी उन्हीं के साथ हैं जिनकी उड़ानें ऊंची होती हैं। जिनकी उड़ान के साथ पूरा देश ही ऊंची उड़ान भर सकता हो, उनके साथ हादसे हादसे होकर भी हादसे नहीं होते बल्कि वह हादसे भी उनकी अमरता की कहानी का एक सोपान बन कर रह जाते हैं। जिन्हें युग युगों तक लोग याद रख कर अपने नायक को विनम्र श्रद्धांजलि देते रहते हैं। कृष्ण के साथ उनका जेल की सलाखों में पैदा होना कोई हादसा नहीं था, बल्कि उनकी अमरता का एक सोपान था। राम के साथ सीता का अपहरण हो जाना कोई हादसा नहीं था बल्कि उनकी अमरता का एक सोपान था। युधिष्ठिर के साथ महाभारत का युद्ध होना भी कोई हादसा नहीं था बल्कि उनकी अमरता का एक सोपान ही था। ऐसे कितने ही महानायक इस संसार में आए हैं जिनके साथ हादसे हादसे ना होकर उनकी अमरता के सोपान बन गए।
निश्चित रूप से जनरल विपिन रावत के साथ भी ऐसा ही हुआ है वह इस समय भारतीय गौरव का प्रतीक बन चुके थे। उनका साहस ,उनका पराक्रम, उनका ओज और उनका तेज सब कुछ भारत के लिए समर्पित हो गया था और भारत के साथ इस प्रकार एकाकार हो गया था कि इन सबको एक दूसरे से अलग करना असंभव हो गया था । बिपिन रावत के नाम से शत्रु के दिन का चैन और रात की नींद भाग जाती थी। जब कोई भी देशभक्त इतिहासकार जनरल बिपिन रावत कैसे विराट व्यक्तित्व पर चिंतन करते हुए कुछ लिखे पढ़ेगा तो निश्चित रूप से उसकी लेखनी जिन गौरवपूर्ण शब्दों को पृष्ठों पर उकेरेगी तो वे संपूर्ण भारत के गौरव की कहानी को बयान करने वाले शब्द होंगे। वे सारे शब्द ही स्वर्णिम होंगे। उनको कोई मोल नहीं होगा। कोई तोल नहीं होगा ।तब पता चलेगा कि जनरल बिपिन रावत भारत की मिट्टी के साथ जुड़े हुए एक महायोद्धा के रूप में किस प्रकार भारत के कण-कण में समाहित होकर होकर अमरत्व को प्राप्त हो गये हैं?
8 दिसंबर की शाम के समय शाम जब उनके जाने की तस्वीर आने लगी तो देश का हर व्यक्ति दु:खी हो उठा। क्योंकि हर देशवासी उनकी देशभक्ति और देश के प्रति समर्पण के भाव से परिचित था। उनकी देशभक्ति के कारण ही जब केंद्र की मोदी सरकार ने उन्हें सीडीएस के पद पर बैठाया तो सभी देशवासियों ने सरकार के उस निर्णय का हृदय से सम्मान किया था । उनके बारे में यह कहना बिल्कुल सही है कि गढ़वाल के एक सामान्य गांव से निकलकर रायसीना के सबसे ऊंचे सैन्य ओहदे तक पहुंचे जनरल रावत उस विभूति पुरुष की तरह जाने जाएंगे, जिन्होंने भारत की सेनाओं को सशक्त करने, समन्वित करने और देश की रक्षा के कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाने को जीवन दे दिया। महाभारत के युद्ध के पहले दिन जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया तो उसमें उन्होंने ईश्वर की विभूतियों का भी उल्लेख किया। विभूतियों का अर्थ किसी वस्तु या व्यक्ति की विलक्षण शक्तियों या गुणों से होता है। परमपिता परमेश्वर शत्रु सन्तापक हैं। राक्षसों का संहार करने वाले हैं । इसलिए संसार के जिन – जिन लोगों के भीतर उनकी यह विभूति होती है या विलक्षण शक्ति काम करते हुए दिखाई देती है वह ईश्वर का ही रूप बन जाते हैं।
जनरल बिपिन रावत के नाम से ही शत्रु संतप्त हो उठता था। उनकी शत्रु विनाशक शक्ति पूरे भारत के भीतर जोश और ओज भरती थी। इसलिए उन्हें ईश्वर की एक विभूति के रूप में स्वीकार करना या मान्यता देना या इसी रूप में उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करना हम सबका राष्ट्रीय दायित्व है। किसी भी योद्धा को चाहे मौत कितने ही आराम से क्यों न छीन ले जाए पर उसे हम आराम से छोड़ नहीं सकते। क्योंकि उसने हमारे लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया था। इसलिए हम उसे एक विभूति के रूप में ही विदा करेंगे और विभूति के रूप में ही याद भी रखेंगे। जिससे मौत पराजित हो जाए और हमारा योद्धा हर युग और हर काल में अपराजित बना रहे।
उनकी जीवन यात्रा शून्य से आरंभ हुई और जब महाशून्य में विलीन हुई तो अपनी ऊंची उड़ान की एक अमर कहानी लिख चुकी थी। इतनी ऊंची उड़ान कि जहां हर किसी का जाना संभव नहीं। इतने ऊंचे हौसले कि जिन्हें नापना हर किसी के वश की बात नहीं। इतना ऊंचा मनोबल कि जिसके सामने शत्रु भी भागता हुआ दिखाई दे और इतना ऊंचा आत्मबल कि जिसके
कारण सारा देश ही आत्मबल की दिव्य अनुभूति से भर उठे।
ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी जनरल रावत को कोई कैसे कह सकेगा कि वह नहीं रहे ?
नैशनल डिफेंस अकादमी से अपनी सैन्य यात्रा का शुभारंभ करने वाले जनरल रावत चलते रहे – चलते रहे। वैदिक संस्कृति के चरैवेति चरैवेति के जीवनादर्श को उन्होंने स्वीकार किया और कभी फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह एक अभूतपूर्व यात्रा के पथिक बने । गोरखा राइफल्स के इस जवान ने चाहे कितने ही बड़े पद पर क्यों न काम किया हो पर विनम्रता और शालीनता को कभी छोड़ा नहीं। जिससे उनके सहकर्मी उनके प्रति समर्पित होकर काम करने के लिए प्रेरित हुए। जनरल रावत सीमाओं पर पहुंचे तो जवानों का साहस बढ़ाया, गांव पहुंचे तो लोगों के बेटे हो गए, दिल्ली से पाकिस्तान के सरपरस्तों को सीधा सा जवाब दिया- सीधी भाषा में बताया कि हिंदुस्तान पर उठी हर आंख निकाल ली जाएगी। ….और यही कारण है कि आज हिंदुस्तान की हर आंख नम है …… हमारी आंखों में शेर की सी हूक भरने वाला चला गया।
स्वॉर्ड ऑफ ऑनर से लेकर परम विशिष्ट सेवा मेडल तक, 11 गोरखा राइफल्स से देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तक, गढ़वाल के गांव से लेकर कश्मीर के ऊंचे पहाड़ों तक, जनरल रावत ने जितना विशाल जीवन जिया वो हर सैन्यकर्मी के लिए एक प्रेरणा बनकर शाश्वत रहेगा। कश्मीर के उरी में कर्नल बिपिन रावत, सोपोर में रावत साहब और दिल्ली में जनरल रावत बने बिपिन रावत अब एक अनन्त यात्रा पर चले गए हैं। लेकिन ना रैंक गई, ना जनरल रावत का फौजी होना…कश्मीर के एक समारोह में उन्होंने कहा था- फौजी और उनकी रैंक कभी रिटायर नहीं होते।
उनके ये शब्द आज याद आते हैं तो मन करता है कि आज अपने महानायक को बता दिया जाए कि – जनरल रावत !आप भी हमारे दिलों से कभी रिटायर नहीं हो सकते। क्योंकि आपने हमें गर्व और गौरव के बोध से अभिभूत किया। आपने हमें जीना सिखाया और मां भारती का सम्मान बढाकर अपना जीवन धन्य किया । हम कृतज्ञ हैं और कृतज्ञतावश आपको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत