कटक । ( विशेष संवाददाता) कोठारी बंधुओं के बलिदान पर प्रकाश डालते हुए अपने विशेष वक्तव्य में श्री राजेश कुमार अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने बलिदान से पहले ही सर पर कफन बांध लिया था। उन्होंने कहा कि बलिदान के दिन वह स्वयं भी कोठारी बंधुओं के साथ थे। देश पर बलिदान पुणे का उनका उत्साह देखते ही बनता था जिस समय वह स्वयं बलिदानी भावना से प्रेरित होकर कारसेवा में सम्मिलित होने के लिए जा रहे थे तब उनकी बातों को सुनकर यही कहा जा सकता था कि वह युवा हैं और युवा जोश के वशीभूत होकर ऐसी बातें कह सकते हैं । परंतु बलिदान देने के पश्चात पता चला कि शायद वह पहले से ही देश व धर्म पर बलिदान होने का मनोभाव पैदा कर चुके थे।
उन्होंने एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि जब वह सरयू में स्नान करने के पश्चात बाबरी ढांचे की ओर बढ़ रहे थे तो रास्ते में एक दर्जी की दुकान पर वह अपने पट्टीका पर कुछ काम करवा रहे थे। मैं उस दुकान से पहले एक गली में खड़ा हुआ था मैंने उत्सुकतावश उनसे पूछा कि क्या करवा रहे हो ?- तो उन्होंने कहा कि हमने अपनी पट्टिका पर कफन शब्द लिखवा लिया है। अब हम इसे एक कफ़न के रूप में ओढ़कर आगे बढ़ेंगे।
उन्होंने बड़े भावुक शब्दों में कहा कि कोठारी बंधुओं ने जो कुछ कहा उसे कर दिखाया और वह कफन ओढ़ कर ही आगे बढ़े। इसके बाद जो कुछ उन्होंने किया ,वह हम सबके सामने हैं।
श्री अग्रवाल ने कहा कि कोठारी बंधुओं के पिता ने किस प्रकार उस दुःख को सहा, उसकी बस कल्पना ही की जा सकती है। उन्होंने बड़े धैर्य और संयम के साथ न केवल अपनी पत्नी का धैर्य बंधाया बल्कि अपने आप भी मौन रहकर उस दुख को सहन किया । इसके उपरांत भी कभी उन्होंने यह नहीं कहा कि उनके बच्चों ने देश धर्म पर बलिदान देकर कुछ गलत किया। उन्हें हमेशा इस बात पर गर्व रहा कि उनके दोनों बेटों ने देश धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान दिया।
उन्होंने कहा कि कोठारी बंधुओं की माता ने भी अपने दोनों बच्चों के बलिदान को अपने लिए गर्व और गौरव का विषय समझा। उन्हें जीवन भर इस बात का इंतजार रहा कि श्री राम जन्मभूमि के बारे में चल रहा केस किसी प्रकार राम मंदिर निर्माण के पक्ष में आए तो उन्हें इस बात की आत्मिक प्रसन्नता होगी कि उनके बेटों का बलिदान सफल और सार्थक हो गया।
श्री अग्रवाल ने कहा कि जिस समय राम मंदिर संबंधी केस का निर्णय आया तो उस समय तक कोठारी बंधुओं के माता-पिता इस संसार से चले गए थे। जब मैं और बहन पूर्णिमा उस निर्णय को सुन रहे थे तो उस दिन हमारे पाँव जमीन पर नहीं थे। बहुत खुशी हुई थी और लगा था कि आज दोनों भाइयों सहित माता-पिता की आत्मा भी प्रसन्नता का अनुभव कर रही होगी।
उन्होंने कहा कि श्री राम एक संस्कृति का नाम है और उस संस्कृति की रक्षा करना हम सब का काम है। अपने इस काम के एक धर्म के रूप में निर्वाह करने की शिक्षा कोठारी बंधुओं का बलिदान आने वाली पीढ़ियों को देता रहेगा।