कटक। (विशेष संवाददाता) वीर सावरकर फाउंडेशन की ओर से कोठारी बंधुओं को मरणोपरांत दिए जाने वाले मदन लाल धींगरा पुरस्कार को प्राप्त करने यहां पहुंचे कोठारी बंधुओं की बहन श्रीमती पूर्णिमा कोठारी ने कहा कि उनके भाई राम कुमार कोठारी व शरद कुमार कोठारी में अयोध्या जाकर कारसेवा करने की होड़ मच गई थी। यह नियम बनाया गया था कि एक परिवार से एक व्यक्ति ही कारसेवा के लिए जा सकता है, परंतु इस प्रकार के नियमों को दरकिनार करते हुए देशसेवा और धर्म सेवा से प्रेरित होकर दोनों भाई यह जिद करने लगे थे कि वहां जाकर मैं कारसेवा करूंगा। तब बड़े भाई राम कुमार कोठारी ने कहा था कि वह स्वयं ‘राम’ हैं इसलिए राम के काम के लिए अयोध्या जाने का उनका विशेष अधिकार है।
बड़े भावुक शब्दों में रुंधे गले से उन्होंने आगे कहा कि तब बड़े भाई के ये शब्द सुनकर छोटे भाई ने कहा था कि जहां राम हैं लक्ष्मण भी वहीं होगा। इसलिए राम के साथ उनका जाने का भी अधिकार है।इस पर आयोजक मंडल नि:शब्द हो गया था और उन दोनों को ही अयोध्या जाने की अनुमति प्राप्त हो गई। श्रीमती कोठारी ने कहा कि रास्ते में अनेकों बाधाएं आईं, लगभग ढाई सौ किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ा, परंतु प्रत्येक प्रकार की बाधा और समस्या को झेलते हुए वह अयोध्या पहुंच गए थे।
उन्होंने कहा कि मेरे बड़े भाई राम कुमार कोठारी मेरी मां से अक्सर कहा करते थे कि जैसे किसी क्रांतिकारी की मां को लोग देखकर यह कहा करते हैं कि यह क्रांतिकारी की मां है वैसे ही एक दिन आएगा जब आपको भी यह कहा जाएगा कि यह रामकुमार कोठारी की मां हैं। उन्होंने नम आंखों से कहा कि भाई ने वही कर दिखाया, जिसको वह कहा करते थे।
श्रीमती पूर्णिमा कोठारी ने अत्यंत भावुक शब्दों में कहा कि उनके माता-पिता जितनी देर भी जीवित रहे उतने देर वह उस घटना पर गर्व करते रहे। उन्हें इस बात पर हमेशा गौरव की अनुभूति होती रही कि उनके बेटे देश धर्म की रक्षा के लिए काम आए।
उन्होंने कहा कि वह एक बहन हैं, और बहन के नाते वह भली प्रकार जानती हैं कि दो जवान भाइयों के बलिदान के बाद कितना कष्ट होता है ? परंतु इसके उपरांत भी मैं यह जानकर अपने आपको बहुत ही गौरवान्वित अनुभव करती हूं कि मैं दो बलिदानी भाइयों की बहन हूँ। मैं उनकी बलिदानी भावना का सम्मान करते हुए उनके बलिदान को नमस्कार करती हूँ और इस बात पर हर्ष व्यक्त करती हूं कि वीर सावरकर फाउंडेशन जैसी संस्थाएं उनके बलिदान को उचित सम्मान दे रही हैं।
उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए बहुत ही खुशी का और आत्मिक प्रसन्नता का विषय है कि बाबरी मस्जिद पर सबसे पहले भगवा ध्वज फहराने वाले मेरे ही बड़े भाई थे। उन्होंने ऐसा करके भारत में गुलामी के प्रतीक को तो समाप्त किया ही साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की परंपरा को जीवंत करते हुए अपने बलिदान का मार्ग भी प्रशस्त किया। जिस पर वह बहुत ही प्रसन्नता के साथ आगे बढ़ते चले गए । उन्होंने जो कुछ किया उस पर कोई अफसोस व्यक्त नहीं किया , बल्कि आत्मिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बलिदान को बहुत सहज भाव से स्वीकार कर लिया। यह अक्टूबर 1990 की बात है। जब कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे और उनका लक्ष्य गुलामी के प्रतीक मस्जिद के उस ढांचे को गिराकर भारतीय इतिहास पर लगे कलंक को मिटाना था।
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