एक विलक्षण जल स्थापत्य विद्याधर वाव
तरुण शुक्ला
विद्याधर वाव वडोदरा शहर के बाहरी हिस्से में गोत्री के पास सेवासी गांव में स्थित एक विशाल जल स्थापत्य के रूप में है। यह वाव वडोदरा शहर में ही है, फिर भी वडोदरा के लोग ही इससे अनजान हैं। गुजरात के अन्य लोगो की तो बात ही कहाँ करे? करीब 475 साल पुरानी यह वाव अभी उसके अस्तित्व का जंग समय के साथ लड़ रही है।
गुजरात में वाव, कुंडवाव संस्कृति बहुत पुरानी है, सोलंकी राजाओ से लेकर मराठा राज तक जल स्रोत के रूप में राजा महाराजा, सेठ साहूकार, यहाँ तक कि मालसामान का परिवहन करने वाले बंजारों ने भी राहगिरों और नगरजनो की जल आपूर्ति के लिए छोटी बड़ी वाव बनवाई। राजमार्गों के पास बनी वावों में राहगीरों के आराम की सुख सुविधा के साधन भी बनाए जाते थे। ऐसी कई वाव आज भी पुराने राजमार्गों पर मिलती हैं, जबकि काफी वाव समय की भेंट भी चढ़ गई हैं।
पुराने समय में राजमाताएं और रानियां अपने पति के स्मरण में वाव बनवाती थीं, जिसमें राजमाता उदयमती द्वारा पति सोलंकी राजा भीमदेव की स्मृति में 1075 में बनाई गई पाटण की रानी की वाव और रानी रुडाबाई द्वारा पति राजा वीरसिंह की स्मृति में 1499 में बनाई गई अडालज की वाव प्रमुख है। बंजारे अपने कारवाँ के लिए और अन्य लोगो के जल उपयोग हेतु वाव बनवाते, जिसे बंजारी वाव कहा जाता था। समाज के कई नामी अनामी धनिक और प्रजा के लिए सोचने वाले लोगो ने भी काफी वाव बनवाई थी। लोग जल स्थापत्य बनाना पुण्यकर्म मानते थे। सेवासी से सिंगरोट जाने वाले रास्ते पर खड़ी विद्याधर वाव सात मंजिल वाली काफी विशाल है, और अपने समय मे पूरे विस्तार को पेय और अन्य हेतु जल प्रदाता रही होगी। इस वाव की विशालता नीचे उतर कर कुए में से सात मंजिले देखो तब पता चलती है। यह वाव धार्मिक गुरु विद्याधर की स्मृति में राजा हरिदास द्वारा 1543 में बनाई गई थी। इस बात का जिक्र वहाँ के दो स्तंभ के बीच की पाट में उकेरे गए लेख में है। विद्याधर वाव का प्रवेश द्वार काफी आकर्षक है। दोनों ओर सिंह और हाथी के स्थापत्य बने हुए हैं। वाव की दीवारों में विस्मयकारी विचित्र भौमितिक आकृतियां उकेरी गई है, जिससे इस वाव के साथ तंत्र का जुड़ा होने की संभावना मालूम पड़ती है। सात मंजिल वाली इस वाव में एक हवन कुंड स्थित है। वहाँ पर आसपास की दोनों दीवारों में देवी स्थानक है। गुजरात की काफी वाव में देव-देवी स्थानक स्थापित किये गए है , जिसकी वजह से वह सब वाव बची हुई और थोड़ी बहुत साफ रह सकी है। वाव में एक जगह सांकेतिक रूप से शिवलिंग और उसके आसपास आठ नाग उकेरे गए है। भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र , गणपति का प्रतीक भी है। वाव की दीवार पर दो जगह मछली और कछुआ भी उकेरे हुए है।
वडोदरा शहर में उस जमाने में ढेर सारी वावें थीं, जिसमे राजमहल कंपाउंड स्थित नवलखी वाव सबसे पुरानी है। राजमहल स्थित होने से आम आदमी के लिए उसे देखना मुमकिन नही है। वडोदरा की अन्य वाव जैसे, खांडेराव मार्केट की वाव, कोयली गांव की वाव, तंदलजा वाव, हेकमपुरा वाव, सयाजी वाव, गोरवा वाव, केलनपुर वाव, उर्मि स्कूल वाव या तो जर्जरित हैं, या फिर अपने अस्तित्व की लड़ाई हार चुकी हैं। कड़क बाजार की वाव को नष्ट कर मकान दुकान बन गए हैं।सेवासी से आगे सिंगरोट गांव के पास में एक वाव अभी भी है, जब कि जिल्ले की डभोई और आसोज गांव की वाव भी अभी तक है। विद्याधर वाव की भी एक दीवार थोड़ी सी झुक गयी है, और कुछ स्तंभ भी जर्जरित हुए हैं।
अपनी धरोहर रूपी स्थापत्यों को संभालना चाहिए, उसे देखकर उस जमाने के लोगो की सोच को सम्मान देना चाहिए , क्योंकि यह सब धरोहर जो अभी तक तो टिकी है, कल रहेगी या नही कोई नही जानता। इन सब का दस्तावेजीकरण कर के अपनी आगे की पीढियों को इसकी जानकारी मिले, इसका प्रबंध हमें ही करना होगा।
साभार