गौ हत्या और देशहित
सुबोध कुमार
A woman worships a cow as Indian Hindus offer prayers to the River Ganges, holy to them during the Ganga Dussehra festival in Allahabad, India, Sunday, June 8, 2014. Allahabad on the confluence of rivers the Ganges and the Yamuna is one of Hinduism’s holiest centers. (AP Photo/Rajesh Kumar Singh)
वेदों में गायों के पालन करने से होने वाले लाभों और गायों को मारने से होने वाली हानियों की बड़े ही विस्तार से चर्चा की गई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि वेदों ने गौओं के विनाश से होने वाली जिन हानियों की चर्चा की है, वे आज उसी रूप में घटित होती मिलती हैं। वैसे तो वेदों में गौओं के बारे में कई सूक्तों में वर्णन किया गया है, परंतु इसमें अथर्ववेद के बारहवें अध्याय का ब्रह्मगवी सूक्त विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आमतौर पर वेदभाष्यकारों ने ब्रह्मगवी का अर्थ ब्राह्मण की गाय किया है, परंतु वैज्ञानिक ढंग से विचार करने पर इसका अर्थ परमेश्वर द्वारा प्रदत्त गौ तथा वेदवाणी से प्राप्त ज्ञान अधिक सटीक प्रतीत होता है। इस सूक्त के ऋषि हैं कश्यप जिसका अर्थ है वह ऋषि जो ज्ञानयुक्त और निपुण होने से बाह्य और आंतरिक शत्राुओं से अपनी रक्षा करने में समर्थ हो। इस सूक्त का देवता है ब्रह्मगवी अर्थात् परमेश्वर द्वारा प्रदान की हुई गौ एवं वेद वाणी से प्राप्त ज्ञान।
गौ एवं वेद वाणी से परिश्रम और तप द्वारा सृष्टि के नियमों का ज्ञान होता है। इन सृष्टि के नियमों के पालन पर ही ब्रह्माण्ड के समस्त धन और साधनों का प्राप्त होना निर्भर करता है।
सत्य पर आधारित गोपालन और वेदों का ज्ञान समाज को आश्रय और ऐश्वर्य प्रदान करता है।
गौसेवा और वेदों के ज्ञान के संकल्प से सब लोग श्रद्धावान बनते हैं। गौपालन और वेद अध्ययन यज्ञादि सेवा से सम्मान पाने वाले अपनी धारणा शक्ति से गौ और वेदों को सुरक्षित रखते है। गौ और वेद इस लोक की स्थिरता का आधार हैं। श्रद्धा और समर्पित भावना से गो सेवा करने और वेद पढ़ने से लोक और गौ के समीप यज्ञ करने से गौ और लोक अपनी प्रकृति से स्वयं स्वस्थ रहते है।
गौसेवा करने और वेदों का अनुसरण करने वाले श्रेष्ठ स्थान को पाते हैं। गोसेवा और वेद ज्ञान ने ही भारत वर्ष को जगत गुरु के स्थान पर पहुंचाया था।
गौसेवा के लाभों का वर्णन करने के बाद इस सूक्त में वेद वाणी और गौओं की रक्षा न करने वाले लोगों और राष्ट्रों में होने वाली हानियों का वर्णन किया गया है।
उनसे विकास, पौरुष व वीरता और पुण्य प्राप्त कराने वाली लक्ष्मी छिन जाती हैं।
वहां से पराक्रम और तेज, शत्राुओं को पराजित कर पाने की शक्ति, वाणी द्वारा विपक्ष को संतुष्ट करने की क्षमता , शरीर की इंद्रियों का बल अर्थात् स्वास्थ्य , यश और मानव धर्म का पालन छिन जाते हैं।
वहां से ज्ञान और बल, राज्य शासन और प्रजा, देश का गौरव और यश, रोग निरोधक शक्ति और कार्यसाधक धन छिन जाते हैं।
वहां से दीर्घायु और सौंदर्य, ख्याति और यश, प्राण-अपान द्वारा प्राप्त बल और शारीरिक दोषों को दूर करने की क्षमता, दृष्टि शक्ति और श्रवण करने की शक्ति का ह्रास हो जाता है।
वहां से गौदुग्ध और खाद्यान्नों में औषधि रस तथा अन्न खा कर पचाने की क्षमता , भौतिक क्रियाओं का ठीक समय और ठीक स्थान व्यवहार में सत्यता से आवश्यकताओं की पूर्ति का होना नहीं होता।
उस समाज के यश, बल, सामर्थ सब छिन जाते हैं।
उस राष्ट्र में पाप के विष को फैलाने वाली दो किनारों में बहने वाली नदी में आई बाढ़ के समान आपदाएं आती हैं।
उस राष्ट्र में सब प्रकार के पाप, कष्टदायी आक्रमण और सबका हनन करने वाली मृत्यु और रोग फैलते हैं।
उस राष्ट्र में सभी लोग क्रूर हो जाते हैं और लोगों की हत्याएं होने लगती है।
गौओं और ब्राह्मणों को हानि पहुंचाने वाला राजा मृत्यु की बेड़ियों में बंध जाता है।
इतना बताने के बाद इस सूक्त में गौहत्या
के दुष्परिणामों की चर्चा की गई है।
गौहत्या सैंकड़ों प्रकार से बुद्धि को क्षति पहुंचाता है, जिसके परिणामस्वरूप ज्ञानी लोग भी गौहत्या के विरुद्ध निष्क्रिय हो जाते हैं।
भय के कारण भागती हुई गौ वज्र के समान हिंसक होती है, निष्कासित या घर से निकाल दी गई गौ विश्व के मनुष्यों का नाश करने वाली अग्नि के समान होती है।
गौ अपने को असुरक्षित स्थिति में समझने पर खुरों को भूमि पर रगड़ कर पैना करने लगती है और सुरक्षा की सहायता के लिए चारों ओर गूंजने वाला शब्द करती है।
घातक द्वारा चोट खाई गौ निर्बलावस्था में ‘हिं’ ऐसा धीमा शब्द करती है, अपनी पूंछ इधर उधर फैंकती है, अपने कान फड़फड़ाती है, गोरक्षक देवतास्वरूप जनों को उग्र बनाती है।
वेदों में गोहत्या , मानव हत्या के लिए मृत्यु दण्ड का विधान किया गया है। कुछेक मंत्रों में केवल मांसाहार से होने वाली हानियों की चर्चा की गई है, परंतु वहां भी मांसाहार का अभिप्राय गौमांसाहार ही है। ब्रह्मगवी सूक्त में आगे कहा है
गौरक्षक लोग गौ के हत्यारे को विष देकर मार डालें। जब तक हत्यारे के अरोप सिद्ध नहीं हो जाता और विष का प्रबंध नहीं होता, उस गौहत्यारे को एक अंधेरी कोठरी में बंद रखना चाहिए।
गौ की हत्या करने पर मृत ब्रह्मगवी हत्या करने वाले का पीछा करती है और पुनर्जन्म लेने पर उस गौहत्या करने वाले के प्राणों को नष्ट कर देती है। वह समाज के भविष्य को भी नष्ट कर डालती है।
गौओं के काटने और उनके मांस को बांटने पर, घातक के कुलों में और गोरक्षा करनेवालों मे वैर उत्पन्न हो जाता है (इस प्रकार समाज में वैर उत्पन्न हो जाता है)। इस वैर का दुष्परिणाम गौहत्या करने वालों के पौत्रों तक को भोगना पड़ता है।
मांस के व्यापार से समाज में हिंसा का वातावरण बनता है। गौओं के दूध की कमी और कृषि कर्म की कठिनाइयों के कारण राष्ट्र की ऋद्धि व समृद्धि क्षीण हो जाती है।
मांस का व्यापार सामाजिक अशांति की पापवृत्ति को प्रकट करता है और गौमांस का प्रयोग हृदय की कठोरता को प्रकट करता है।
मांस पकाने का प्रयास विष रूप है और इसका प्रयोग कष्टप्रद रोगादि ज्वर के समान है। बौद्ध ग्रंथ “सूतनिपात” के अनुसार माता पिता , भाई तथा अन्य सम्बंधियों के समान गौएं हमारी श्रेष्ठ सखा हैं। पूर्वकाल में केवल तीन ही रोग थे – इच्छा, भूख और क्रमिक ह्रास। परंतु पशुघात मांसाहार के कारण अठानवे रोग पैदा हो गए।
मांस को पकाना पाप है। गौमांस का प्रयोग जीवन को दुरूस्वनों जैसा दुखदायी बना देता है।
मांस का प्रयोग यक्ष्मा जैसे अनुवांशिक रोगों के प्रकोप से भावी संतानों की जड़ काट देता है।
मांस सेवन करने वालों में अज्ञता, मूढ़मति, मोटी अकल होती हैं। पकते मांस की गंध से शोक व निराशा पैदा होती है।
मांसाहार के प्रोत्साहन से शारीरिक तेज नष्ट हो जाता है और समाज में रोग बढ़ते हैं।
मांस के सेवन से क्रोध वृत्ति और हिंसक भावना बढ़ते हैं।
मांस के सेवन से दरिद्रता पैदा होती है जिससे कष्ट बढ़ते है।
गौजाति का स्वामी परमेश्वर है। गौरक्षा करने वाले को हानि पहुंचाने वाले का स्वयं नाश हो जाता है।
गौहत्या से अदृष्य दुष्परिणाम होते हैं जिन्हें एक कृत्या या संहारक रूप में देखा जाता है।
चुराई गौ से लाभ नहीं होता।
गौरक्षकों और वेदज्ञों के जीवन को हानि पहुंचाने वालों में श्मशान की शवाग्नि घुस कर उनको नष्ट कर देती है।
गौ और वेद ज्ञान का ह्रास समाज की जड़ों को नष्ट कर देता है।
गौहत्या से माता-पिता और बन्धु जनों से पारिवारिक सम्बंध भावनाओं से रहित हो जाते हैं।
विवाह का महत्त्व क्षीण हो जाता है। परिणामस्वरूप, संतान का आचरण ठीक न होने के कारण भविष्य में उत्तम समाज का निर्माण नहीं हो पाएगा।
समाज में व्यक्तिगत घर और सम्पत्ति के साधन नष्ट होने लगते हैं। पालन-पोषण के साधन क्षीण हो जाते हैं। अनाथ बच्चे और बिना घर-बार के लोग दिखाई देते हैं।
जब विद्वान, गौ और वेद ज्ञान समाज से छिन जाता है , तब (देश की रक्षा करते हुए मारे जाने वाले) क्षत्रियों का दाह संस्कार करने वाला भी कोई नहीं रहता, उनके शरीर को खाने के लिए गिद्ध ही इकट्ठे होते हैं।
यह निश्चित है कि शीघ्र ही उनके निधन पर खुले केशों वाली, हाथ से छाती पीटती हुई स्त्रिायाँ विलाप करती हुई होती हैं।
शीघ्र ही उन क्षत्रिय राजाओं के देश में एक दूसरे से लड़ने और चिल्लाने वाले भेड़ियों से भरा समाज बन जाता है। निश्चय ही उन राजाओं के महलों में जंगली जानवर निवास करने लग जाते हैं।
शीघ्र ही उस प्रदेश में प्रजा केवल अपने अतीत के क्षत्रिय राजाओं का इतिहास याद करने लगती है।
उस इतिहास को ध्यान करके सब ओर मार-काट होने लगती है।
अंत में ब्रह्मगवी अर्थात् गौमाता और ब्रह्मज्ञानी वैदिक ज्ञान का क्षय करने वाले तत्वों पर विजय पाते हैं।
हे गौमाता, तुम सब विद्वानों का हित करने वाली कही जाती हो। तुम्हारे आशीर्वाद से मिलने वाले प्रसाद की उपेक्षा करना अथवा न ग्रहण करना इतना ही हानिकारक है जितना अपने किनारों को तोड़ कर नदी में आई विध्वंसकारी बाढ़।
यह सब को समान रूप से जला कर भस्म कर देने वाले दैवीय वज्र के समान है।
गौ और वेद ज्ञान के रक्षकों, तुम विविध रूप से सक्षम होकर शीघ्रता से अपना दायित्व निभाओ।
गौवंश को हानि पहुंचाने वाले समाज से उनका वर्चस्व , सब योजनाओं के सिद्ध होने के सफल होने और इच्छाओं की पूर्ति और आशीर्वाद छिन जाते हैं।
गौ और वैदिक संस्कृति को हानि पहुंचाने वाले तत्वों को भविष्य में विजयी गौ और वेद पालकों के अधीन हो जाना पड़ता है।
गौ और वेदों का प्रकाश करने वाले ब्रह्मचारियों की प्रतिष्ठा होती है।
गौ और वेद ज्ञान के प्रति हिंसा करने वालों को यथावत दण्ड मिले।
गौ और वेद विरोधी दुराचारियों को न्याय और शासन व्यवस्था जला कर भस्म कर दे।
गौ और वेदों के प्रति हिंसा करने वालों को काट डाल, चीर डाल , फाड़ डाल और भस्म कर दे। अर्थात् धर्मात्मा लोग अधर्मियों का नाश करने में सर्वदा उद्यत रहें।
राजा को चाहिए कि वेद व्यवस्था के अनुसार गौ और वेदज्ञान के घातक दोषियों को बहुत दूर कारावास (कालापानी) में रखें।
गौ और वेद ज्ञान के अनुयायी जनों की हिंसा करने वाले पापियों देवताओं की अराधना न करने और हिंसा करने वाले जनों को शासन को प्रचण्ड दण्ड दे।
नीति निपुण धर्मज्ञ राजा वेद मार्ग पर चल कर वेद विमुख अत्याचारी लोगों को विविध प्रकार के प्रचण्ड दण्ड देवे।
मांसाहार पृथ्वी को जला डालता है। पर्यावरण में वायुमंडल और वर्षा का जल भयंकर रूप धारण कर लेते हैं।
सूर्य का तापमान प्रचंड हो जाता है जो निश्चय ही पृथ्वी को जला देता है।
इस प्रकार ब्रह्मगवी सूक्त गौ तथा वेदज्ञान के पालन के लाभ और उनके विनाश ताथा मांसाहार की हानियों का विस्तार से वर्णन करता है।
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