तू मौत का ढंग तो जानता है, पर जीवन की पहचान नही।
हिंसा का बन व्याघ्र गया, जो कहता अपने को मानव

यदि यही है उन्नत मानव, तो कैसा होगा दानव?
करता अट्टाहास जीत पर, खून बहाकर भाई का।

कितनी भक्ति की भगवान की, क्या किया काम भलाई का?
शांत शुद्घ अंत:करण से, क्या कभी यह सोचकर देखा?
निकट है काल की रेखा।

अरे आज के उन्नत मानव, सुन छोटी सी बात।
रोक सके तो रोक जहां से, निकट प्रलय की रात।

धू-धू करते कल कारखाने, हैं तेरी प्रगति के प्रतीक।
पर्यावरण प्रदूषण से, नही स्वास्थ्य किसी का ठीक।

वायु और जल थल में करता, जब तू परमाणु विस्फोट।
ईश्वर जाने कितने प्राणी, मर जाते दम घोट

किंतु तुझे अफसोस नही, इसे हंस कहता अपनी जीत।
यदि यही है जय तेरी तो, कैसी होगी पराजय मीत?

नाम लेकर सृजन का तू, कर रहा विध्वंस क्यों?
तेरे हाथों मिट रहा है, तेरा ही वे वंश क्यों?

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