शहरी भारत का कायाकल्प करने तथा हर परिवार को अपना घर और बेहतर जीवनशैली मुहैय्या कराने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 जून बृहस्पतिवार को 4 लाख करोड़ रुपये की लागत से 2022 तक सबको आवास योजना, बहुचर्चित 100 शहरों की स्मार्ट सिटी परियोजना, 500 शहरों में शहरी सुधार और पुनरुद्धार के लिए अटल मिशन (अमृत प्रोजेक्ट) नाम की तीन बड़ी योजनाओं का दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में प्रमोचन अर्थात शुरुआत कर देश के गरीबों के सपनों को नई उड़ान देने की कोशिश की है।स्मार्ट सिटी और अटल मिशन अर्थात अमृत प्रोटेक्ट योजना तो सिर्फ शहरों के कायाकल्प करने अर्थात स्मार्टनेस के लिए है, परन्तु सबको आवास योजना देश के कमजोर, निर्धन और निम्न आय वर्गों के परिवारों के लिए है, जिसके तहत वर्ष 2022 तक सबको आवास उपलब्ध कराये जायेंगे और इस पर सात वर्ष में तीन लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। योजना के तहत देश के सभी 4011 शहरों और कस्बों में 2 करोड़ सस्ते मकान बनाये जायेंगे। ये झुग्गियों में रहने वालों व आर्थिक रूप से कमजोर तबको (ईडब्ल्यूएस) के लिए होंगे। राज्यों को शहरी गरीबों के लिये मकान के निर्माण पर 6.5 प्रतिशत ब्याज अनुदान अर्थात सबसिडी दी जाएगी। जिसमें ईडब्ल्यूएस को आवास कर्ज पर सरकार 15 वर्ष के लिए ब्याज पर 6.5 फीसदी सबसिडी देगी। जिससे प्रत्येक को करीब 2.3 लाख रुपये का लाभ होगा।स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अन्तर्गत 100 नगरों में चौबीसों घंटे बिजली-पानी, विश्वस्तरीय परिवहन व्यवस्था, बेहतर शिक्षा एवं मनोरंजन सुविधायें, ई-गवर्नेंस, पर्यावरण-सम्मत माहौल एवं अन्य सहूलियतें मुहैय्या कराये जाने का सपना है।स्वयं प्रधानमंत्री ने स्मार्ट सिटी की परिभाषा करते हुए प्रमोचन के अवसर पर कहा कि ये वैसे शहर होंगे जहाँ इसके पहले कि नागरिक कुछ चाहें, उससे पूर्व ही वह उन्हें उपलब्ध करा दिया जायेगा। अटल शहरी पुनरुद्धार एवं रूपांतरण मिशन का उद्देश्य अर्थात मकसद एक लाख से अधिक आबादी वाले 500 शहरों में बुनियादी आधारभूत ढाँचा तैयार करना है, ताकि आगे चलकर ये शहर भी स्वत: स्मार्ट सिटी में बदल जायें। स्पष्टत: सरकार ने ऊँचा सपना देखा है, इसीलिए उसके सामने चुनौतियाँ भी ऊँची ही हैं। ध्यातव्य है कि इन योजनाओं के प्रमोचन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने आवास योजना के लोगो का भी अनावरण किया। इन महत्वाकांक्षी योजनाओं के प्रति प्रधानमन्त्री की अभिरुचि व संजीदगी का पत्ता इस बात से चलता है कि इन सभी योजनाओं को तैयार करने में स्वयं प्रधानमंत्री भी शामिल रहे हैं और योजना के लोगो की डिजाइन को अन्तिम रूप देने में मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर रुचि ली थी। ये तीनों योजनायें राज्यों, संघ शासित प्रदेशों व शहरी निकायों के साथ एक वर्ष तक चले गहन विचार-विमर्श के बाद तैयार की गई हैं।इन योजनाओं में केन्द्र 4 लाख करोड़ का केंद्रीय अनुदान देगा। शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार तीनों योजनाओं के बारे में शहरी विकास, आवास व शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय प्रधानमंत्री को नियमित प्रेजेंटेशन देते थे और मोदी उन्हें योजनाओं को अधिकाधिक परिणामदायी बनाने के निर्देश देते थे।
दरअसल इन योजनाओं के कार्यान्वयन के प्रति प्रधानमंत्री की यह सोच रही है जो उन्होंने प्रमोचन के अवसर पर व्यक्त करते हुए कहा कि देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या या तो शहरों में रहती है अथवा जीवन-यापन के लिए शहरों पर निर्भर है। गाँव से लोग शहर में रोजी-रोजगार के लिए आते हैं। यहाँ लोगों को बेहतर सुविधाओं की जरूरत है। हमारा इन शहरों में जीवन की गुणवत्ता को बेहतर करने का लक्ष्य है और यदि आम लोगों को केन्द्र में रखकर हम काम करेंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी।इन योजनाओं की आवश्यकता के कारणों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यदि हम 25-30 वर्ष पहले शहरीकरण के महत्व को पहचान लेते तो अच्छा होता। लेकिन पहले जो नहीं हुआ उसे लेकर चुपचाप नहीं बैठ सकते। पुराने अनुभवों के आधार पर निराश होकर बैठने की जरूरत नहीं है। हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यदि कोई विधिक समस्या आती है हम उसका हल ढूंढेंगे। यदि आर्थिक मुद्दे सामने आते हैं तो उसे दूर करेंगे।ये योजनायें इस मामले में भी अनूठी हैं कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि अपनी सिटी को स्मार्ट बनाने के लिए राज्य या केन्द्र सरकार नहीं, बल्कि नगर निगम और आम लोग मिलकर निर्णय लेंगे तथा राज्य सरकारों और आवास बोर्डों के पास खुद सस्ते घर बनाने का विकल्प होगा और इसके लिए वे केन्द्र सरकार की सहायता ले सकते हैं। परिणामत: स्मार्ट सिटी को लेकर एक शहर से दूसरे शहर में प्रतिस्पर्धा होगी और जो आगे निकल जाएगा वहीं स्मार्ट सिटी होगा। सबको घर योजना के सम्बन्ध में प्रमोचन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक बार जब गरीब का खुद का घर हो जाता है तो फिर उसके इरादे बदलते हैं, वह सपने संजोने लगता है और उसे पूरा करने का प्रयास शुरू कर देता है। उसके सपने को उड़ान मिल जाती है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस सपने को पूरा करने के लिए हाल ही में मोदी कैबिनेट ने सभी के लिए घर योजनान्तर्गत शहरी गरीबों तथा कम आय वर्ग के लोगों के लिए मकानों का निर्माण करने की योजना को मंजूरी दी है। इसके मद्देनजऱ कैबिनेट ने सरदार पटेल नेशनल हाउसिंग मिशन के तहत 2022 तक सबका अपना घर के वादे को पूरा करने के लिए हॉउसिंग फॉर ऑल योजना को मंजूरी दी है। योजना के तहत वर्ष 2022 तक देश के हर परिवार को उसका अपना घर देने की कार्ययोजना बनाई गई है जिसके लिए करीब 13 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। तीन चरणों में कुल 500 शहरों में इस परियोजना को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा। प्रथम चरण के तहत मार्च 2017 तक 100 शहर शामिल किए जायेंगे जबकि सभी के लिए आवास के तहत द्वितीय चरण में मार्च 2019 तक 200 और शहरों को शामिल किया जायेगा। तृतीय और अंतिम चरण में मार्च 2022 तक सभी बाकी बचे शहरों को शामिल किया जायेगा। कैबिनेट के निर्णय के अनुसार केन्द्र सरकार झुग्गी बस्तियों में प्रत्येक मकान के निर्माण पर एक लाख रुपए की मदद देगी। इस योजना में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ साझेदारी के जरिये भी मकान बनाने का विकल्प होगा। हालाँकि इस पूरी योजना अर्थात मोदी के इस सपने के कार्यान्वयन में और पूरा होने में कई प्रकार के रोड़े, बाधायें और परेशानियाँ हैं। इसके तहत दो करोड़ मकान बनाने के लिए तीन खरब रुपए खर्च होंगे। इसके लिए धन उपलब्ध कराने के साथ ही इतने मकानों के लिए जमीन की आवश्यकता होगी।सरकार की मंशा शहरों में स्लम्स के बाशिन्दों को किफायती आवास देने का है। यह सब्सिडी से होगा। मगर क्या इसका पूरा खर्च केन्द्र उठाएगा? या फिर राज्यों को भी जिम्मेदारी लेनी होगी? और जमीन वैसे भी राज्य सूची का विषय है। अर्थात राज्यों की उत्साहपूर्ण भागीदारी इस योजना की सफलता की अनिवार्य शर्त होगी। इसके अतिरिक्त आवास योजना के पूरा होने में बाजारवाद एक अन्य प्रकार से बड़ा रोड़ा बनकर फिर भी सामने आयेगा । क्योंकि यह सर्वविदित है कि पूरे देश में घर निर्माण क्षेत्र में निजी मकान निर्माणकर्ताओं का बोलबाला है। ये निजी मकान निर्माणकर्ता मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में सस्ते घर का निर्माण करना ही नहीं चाहते। वहीं रियल एस्टेट के लिए रेगुलेटर न होने का लाभ भी बिल्डर उठाते हैं और वे घरों की कीमतें अपनी मर्जी से तय करते हैं। दूसरी ओर सरकार की जितनी भी निर्माण संस्थायें हैं, वे घर बनाने का काम छोड़ चुकी हैं। और अगर करती भी हैं तो इनकी कार्य-शैली के कारण समय-समय पर ज्यादातर निर्माण संस्थाओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहते हैं। अत: इनसे कुछ उम्मीद करनी बेमानी है ।
मोदी के सपने की राह में एक और बड़ा रोड़ा है और वह है कीमतों का तय न होना। दरअसल, रियल एस्?टेट मार्केट में सस्?ते घर की कोई तय परिभाषा नहीं है। एक अन्य रोड़ा के रूप में बैंक और सरकारी कर्मियों की भ्रष्टाचार व घूसखोरी के जंगल में भी गरीब आदमी उलझेगा। सस्?ते घर के निर्माण के लिए सस्?ती कीमत पर जमीन मुहैया होनी चाहिए और इसके लिए स्?वीकृति की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी किया जाना चाहिए। यदि मोदी सरकार अपने इस महत्वाकांक्षी सपने को यथार्थ के पैमाने पर उतारना चाहती है तो उसे इस क्षेत्र की कमियों को दूर कर आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। तभी सस्ते घर का सभी का सपना, हक़ और अधिकार पूरा और प्राप्त होगा।स्मार्ट सिटी योजना पर भी कई प्रश्न उठे हैं। सरकारों ने अपने संसाधनों का वहाँ अत्यधिक संकेंद्रित कर दिया तो यह शिकायत उभर सकती है कि कुछ शहरों को स्मार्ट बनाने की कीमत दूसरे शहर और कस्बोन को उठानी पड़ रही है अथवा उठा रहे हैं। फिर स्मार्ट शहरों में वहाँ के गरीब,अल्प आय वर्ग के लोगों को तमाम महँगी सुविधायें कैसे शहरी नवीनीकरण योजना का ही बदला रूप है।तो संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की वह योजना जिन कारणों से असफल साबित हुई, क्या मोदी सरकार ने उनका हल ढूँढ लिया है? परन्तु ऐसा होने के प्रति भरोसा और मजबूत होता, अगर उन पर अमल की समग्र कार्ययोजना भी सरकार सामने रखती।