कम्युनिस्ट इतिहासकार भारत के इतिहास का दोबारा लेखन क्यों नहीं होने देते
अफ़्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में इतिहास के पुनर्लेखन की मांग का पश्चिमी वामपंथी समर्थन करते हैं, ताकि विदेशी विजेताओं, मिशनरियों के लिखे इतिहास में सुधार कर देसी और सताए गए लोगों की दृष्टि से इतिहास लिखा जाए। लेकिन भारत में सदियों से सताए गए हिंदुओं की दृष्टि से इतिहास लिखने के प्रयास को ‘भगवाकरण’ कहकर वामपंथी मज़ाक उड़ाते हैं। वे यहां इस्लामी शासन की प्रशंसा करने के लिए इतिहास की पोथियों में थोक भाव से झूठ लिखने से नहीं हिचकते।
जो वामपंथी देश की सीमाओं को नही मानते हैं वो घर मे मोटे मोटे ताले लगा कर घूमते हैं, उद्योगपतियों के खिलाफ नारे लगवाने वाले वामपंथी नेता पत्रकार कंपनियों के करोड़ो के शेयर लेकर बैठे होते हैं।
घाटे के बाद घर, बार फैक्ट्री बिकने का , फैक्टरी में वामपंथी समाजवादी मजदूर नेताओ के द्वारा बेमतलब हड़ताल होने का, फैक्ट्री जलाए जाने का सारा जोखिम उद्योगपति अपने सर लेते हैं। फैक्ट्री में किसी भी दुर्घटना के कारण होने वाले जान माल के नुकसान का जोखिम उद्योगपति का होता है।
मजदूर को कोई लेना देना नही है कि कच्चे माल की कीमत बढ़ रही है या घट रही हैं। टैक्स बढ़ रहा है या घट रहा है। BS4 आया है या BS6 उसको किसी से मतलब नहीं है। कौन सा नया कानून आया कौन सा बदला उससे मतलब नही है।
2012 में गुड़गाव में मारुति के प्लांट में दंगा होता है और उद्योगपति के प्रतिनिधि ह्यूमन रिसोर्स अवनीश कुमार देव को मारने पीटने के बाद जिंदा जला दिया जाता है।
बंगाल में एक जमाने के उद्योग धंधों का गढ़ हुआ करता था, जूट की फैक्टरियां और बहुत सारे अन्य उद्योग धंधे थे। फिर वामपंथ का भूत चढ़ा सब पर और बंगाल में उद्योग धंधों के नाम पर चील कव्वे उड़ने लगे।
वँहा का मजदूर बंगाल से निकल कर जंहा जंहा उद्योगधन्धे है वँहा जा कर काम कर रहा है। पूरे देश मे बंगाली मजदूर क्यों है क्योंकि बंगाल में पिछले 100 साल में वामपंथ और समाजवाद का भूत लोगो के सर पर चढ़ कर बहुत जोर से नाचा।
बंगाल के सारे वामपंथी नेताओं को जिन्होंने उद्योगपतियों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया और बंगाल से उद्योग धंधों को खत्म करने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया।
यदि मजदूर उद्योगधन्धे चलाता तो आज बंगाल के वामपंथी मजदूरों के गढ़ में सबसे ज्यादा उद्योग धंधे होते , लेकिन धरातल की हक़ीक़त ममता बनर्जी और अन्य वामदलों को पता हैं। सरकार आज अपने उद्योग धंधे बेच रही है तो वो सिर्फ इसीलिए क्योंकि मजदूर काम नहीं करना चाह रहा है।
नक्सल वामपंथी विचारधारा के ही मानस पुत्र है। जो आदिवासी इनको नजदीक से जानते है वो बताते है कि नक्सली अपने क्षेत्र में वसूली की अर्थव्यवस्था चलाते है। हज़ारो करोड़ो की उगाही है इनकी छतीसगढ झारखंड बिहार के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में।
तालिबान के नृशंस हत्याकांड भी शर्मा जाए ऐसे कांड होते है वामपंथी नक्सलियों के । बंगाल की घटना शायद कुछ लोगों को याद हो जिसमें दो भाइयों को काटा गया और उनके खून से सना चावल उनकी माँ को खिलाया गया। यह सिर्फ एक घटना है , हज़ारों ऐसी घटनाएं हुई है नक्सल प्रभावित जगहों पर जंहा ISIS और तालिबान वालो की भी रूह कांप जाए।
जब वामपंथ इतना खतरनाक है मजदूरों के लिए तो क्यों भारत मे वामपंथ इतना प्रसिध्द है?? पूरे भारत मे छोड़िये पूरे विश्व में वामपंथ का कोई भी सकारात्मक योगदान नही है फिर भी कॉलेज यूनिवर्सिटी में पढ़े लड़के , पत्रकार , अभिनेता व बुद्दिजीवी क्यों पागल है इसके पीछे?
एक समय के प्रसिद्ध वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत मर्सिडीज कार में चलते थे और विदेशी सिगरेट पीते थे। सीताराम येचुरी अपने बेटे का इलाज कारपोरेट हॉस्पिटल मेदान्ता गुड़गांव में करवाते हैं परन्तु दूसरों को बंगाल के सरकारी हस्पताल में तिल तिल मरने की सलाह देते हैं। टुकड़े टुकड़े वाले गरीब माँ के बेटे कन्हैया कुमार एप्पल का आई फोन प्रयोग करके हवाई जहाज की बिजनेस क्लास में बैठ कर क्रान्ति का ट्वीट करते हैं।
बोलने की आजादी तो इतनी है कि रूस में स्टालिन और चीन में माओ से उनके सबसे नजदीकी लोग भी बुरी तरह डरते थे।
जिन हिन्दुओ को ये गाली देते हैं उनमें तो शास्त्रार्थ की परम्परा रही है। जिस ऊंचे नीचे भेदभाव की ये बात करते हैं उसके विरुद्ध सबसे अधिक आवाज हिन्दुओं में उच्च जाति के सुधारकों ने उठाई है।
आज भी कोरोना में सबसे खराब प्रबंधन केरल में है परन्तु मीडिया उत्तर प्रदेश पर शोर मचाएगा क्योंकि मीडिया में वामपंथी है।