डॉ. विवेक आर्य
पंजाब में स्वयं को वाल्मीकि कहने वाले कुछ लोगों ने रावण की पूजा करना आरम्भ किया है। ये लोग अपने आपको अब द्रविड़ और अनार्य कहना पसंद करते है। इन्होंने अपने नाम के आगे दैत्य, दानव, अछूत और राक्षस जैसे उपनाम भी लगाना आरम्भ किया हैं। ये लोग स्वयं को हिन्दू नहीं अपितु आदि धर्म समाज के रूप में सम्बोधित करेंगे। ये कोई हिन्दू धर्म से सम्बंधित कर्मकांड नहीं करेंगे। पूरे पंजाब में रावण सेना की गतिविधियां बढ़ाई जाएँगी। ऐसा इनका विचार है।
पंजाब में दलित समाज ऋषि वाल्मीकि और गुरु रविदास को अपना गुरु मानता है। ऋषि वाल्मीकि रामायण के रचियता और श्री राम के गुरु थे। उन्ही के द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण में राम मर्यादापुरुषोत्तम और सर्वगुण संपन्न है। जबकि उन्हीं की रामायण में रावण एक दुराचारी, अत्याचारी, विवाहिता स्त्री सीता का अपहरणकर्ता हैं। गुरु रविदास भी अपने दोहों में श्री राम की स्तुति करते हैं। कमाल यह है कि इन्हीं दोनों को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने वाले इन्हीं के उपदेशों की अवहेलना कर अपना उल्लू सीधा करने के लिए सत्य को सिरे से नकार रहे हैं।
अब रावण का भी इतिहास पढि़ए। रावण कोई द्रविड़ देश का अनार्य राजा नहीं था। लंकापति रावण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था। वह वेदों की शिक्षा को भूलकर गलत रास्ते पर चल पड़ा था। जिसकी सजा श्री रामचंद्र जी ने उसे दी। फिर किस आधार पर रावण को कुछ नवबौद्ध, अम्बेडकरवादी अपना पूर्वज बताते हैं? कोई आधार नहीं। केवल कोरी कल्पना मात्र है।
दक्षिण भारत कोई द्रविड़ देश जैसा कोई भिन्न प्रदेश नहीं था। यह श्री राम के पूर्वज राजा इक्ष्वाकु का क्षेत्र था। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड का प्रमाण देखिये। श्री राम बाली से कहते हैं –
इक्ष्वाकूणामीयं भूमि स:शैल वन कानना। मृग पक्षी मनुष्याणां निग्रहानु ग्रहेष्वपि।।
श्री राम कह रहे है कि वन पर्वतों सहित यह भूमि इक्ष्वाकु राजाओं की अर्थात हमारी है। अत: यहां के वन्य पशु, पक्षियों और मनुष्यों को दंड देने का उन पर अनुग्रह करने में हम समर्थ है।
बाली, सुग्रीव से लेकर रावण भी आर्य थे। इसका प्रमाण पढि़ए-
आज्ञापयतदा राजा सुग्रीव: प्लवगेश्वर:। औध्वर्य देहीकमार्यस्य क्रियतामानुकूलत:।।
अर्थात यहां सुग्रीव बाली के अंतिम संस्कार के लिए आदेश दे रहा है। कहता है इस आर्य का अंतिम संस्कार आर्योचित रीति से किया जाये। रावण राम के साथ युद्ध में घायल हो अचेत हो गया तो उसका सारथी उसे युद्धक्षेत्र से बाहर ले गया। होश आने पर रावण उसे दुत्कारते हुए कहता है कि
त्वयाद्य: हि ममानार्य चिरकाल मुपार्जितम। यशोवीर्य च तेजश्च प्रत्ययश्च विनाशिता:।।
अर्थात हे अनार्य! तूने चिरकाल से उपार्जित मेरे यश, वीर्य, तेज और स्वाभिमान को नष्ट कर दिया। यहाँ रावण क्रोध से भरकर अनार्य शब्द का प्रयोग कर रहा है। इससे यही सिद्ध हुआ कि वह अपने आपको श्रेष्ठ अर्थात आर्य मानता था।
हालांकि सत्य यह है कि रावण अपने कर्मों से आर्य कुल में उत्पन्न होने के पश्चात भी अनार्य हो चुका था। रावण एक विलासी और अत्याचारी राजा बन चुका था। अनेक देश – विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। फिर भी वह स्वयं को आर्य कहलाना ही पसंद करता था। ऐसे में उसकी पूजा करने का दावा करने वाले लोगों को विचार करना चाहिए कि यदि रावण ही स्वयं को आर्य मान रहा है तो उसका अनुयायी होने का दावा करने वाले लोग स्वयं को अनार्य क्यों कह रहे हैं?