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संपादकीय

इतिहास संकलन के लिए कुछ सुझाव

प्रतिष्ठा में

     माननीय नरेंद्र मोदी जी
प्रधानमंत्री, भारत सरकार – नई दिल्ली

महोदय

    हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान अर्थात भारतीयता के प्रति आपकी सेवा, लगन, परिश्रम और निष्ठा सचमुच वंदनीय है। आपके महान सेवा कार्यों को करते हुए ‘उगता भारत’ समाचार पत्र की ओर से हम आपसे अनुरोध करते हैं कि हमें सामूहिक रूप से अपने वैदिक इतिहास और हिंदू योद्धाओं के विषय में निम्नलिखित बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए :–

1 – इतिहास लिखते समय हमें यह तथ्य अपने मन मस्तिष्क में पूर्ण स्पष्टता के साथ रखना चाहिए कि भारत देश आर्यों का आदि देश है । इसकी संस्कृति आर्य वैदिक संस्कृति है और वेद सृष्टि के प्राचीनतम ग्रंथ होने के कारण प्रभु प्रदत आदि संविधान हैं।

2 – भारत की क्षत्रिय परंपरा आर्य योद्धाओं की क्षत्रिय परंपरा है। संपूर्ण संसार में आर्यों की वर्ण व्यवस्था का पालन करने वाला कोई देश है तो वह भारत है । जिस देश में आज तक यह परंपरा अपने सही स्वरूप में उपलब्ध होती है। इसलिए आर्य क्षत्रिय योद्धाओं की सन्तानें ही क्षत्रिय शासक वर्ग रहा है। जो आज भी पूर्ण तल्लीनता के साथ भारत की सेवा कर रहा है ।

3 – आर्यों के देशभक्त क्षत्रिय वर्ण के लोग देश,काल, परिस्थिति के अनुसार विभिन्न नामों / जातियों के नामों से पुकारे गए हैं । उनमें से एक गुर्जर जाति भी है। जिसने हर काल में देशभक्ति का परिचय देते हुए देश की अमूल्य सेवा की है। पुराणों में वर्णित राजा नल की जगविख्यात कहानी में मनसुख गुर्जर का उल्लेख आता है। जिसने उस समय अपनी देश भक्ति और स्वामी भक्ति का अमिट उदाहरण प्रस्तुत किया था। गुर्जर लोग आर्यों की संतानें हैं – यह तथ्य इतिहास में पूर्णतया स्पष्ट होकर स्थापित होना चाहिए। आर्यों और अन्य क्षत्रिय जातियों के विदेशी होने की भ्रांत धारणा का इतिहास से समूल नाश होना चाहिए।

4 – देश , धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए दिए गए गुरुतर दायित्व को बहुत ही उत्तमता के साथ निर्वाह करने के कारण गुर्जर लोगों ने अपने राष्ट्रधर्म का निर्वाह किया है। इन लोगों ने सदा ही भारतवर्ष को अपना देश माना है । जो लोग इन्हें विदेशी मानते हैं उनको उत्तर देने के लिए हमें वृहत्तर भारत के स्वरूप को बहुत ही स्पष्टता के साथ इतिहास में स्थापित करना चाहिए ।क्योंकि जिन तथाकथित देशों में आर्यों के वंश गुर्जर के होने की बात की जाती हैं वे सभी देश कभी न कभी भारत के एक अंग रहे थे। यह बात स्पष्ट करते हुए इतिहास लेखन का कार्य संपन्न होना चाहिए। इससे अनेकों वीर योद्धाओं , देशभक्त व संस्कृति प्रेमी इतिहासनायकों के विषय में हम सत्य का निरूपण कर सकेंगे।

5 – गुर्जरों के बारे में पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा लिखते हैं कि गुर्जर नामक एक राजवंश था। इसके अतिरिक्त विंसेंट स्मिथ, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी,, मिस्टर क्रुक, डॉक्टर भंडारकर , मिस्टर कनिंघम, कर्नल जेम्स टॉड, सर जेम्स कैंपबेल जैसे विद्वानों और इतिहासकारों की इस बात को मान्यता मिलनी चाहिए कि गुर्जर विदेशी नहीं थे। गुर्जर समाज के लोगों के लिए भारत सर्वप्रथम वंदनीय और पूजनीय रहा है । ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ये लोग विदेशी होने के कारण किसी दूसरे देश से प्यार प्रदर्शित करते रहे हों।

6 – गुर्जर लोगों ने अपने क्षत्रिय पौरुष का प्रदर्शन करते हुए आबू पर्वत के चारों ओर के विस्तृत प्रदेश को अपने नाम से आबाद किया। यह प्रदेश गुर्जर प्रदेश के नाम से इतिहास में जाना गया। आबू के चारों ओर ऐसे कुलों का समूह बसता था जिनका रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा ,भाषा, रीति रिवाज एक ही थे और वे सारे के सारे आर्य संस्कृति से ओतप्रोत थे। उनके प्रतिहार ,परमार ,चालूक्य, (सोलंकी) चौहान आदि वंशों के शासक ,वीर विजेता अपनी विजयों के साथ अपनी मातृभूमि गुर्जर देश का या गुर्जरात्रा का का नाम चारों ओर के भूखंडों में ले गए, यह तथ्य प्रमुखता से स्पष्ट होना चाहिए।

7 – आबू पर्वत पर हुए यज्ञ और प्रतिहार वंश के द्वारा देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपने आपको प्रस्तुत करने की महत्वपूर्ण घटना को इतिहास से लुप्त कर दिया गया है। जबकि मुस्लिम विद्वानों ने ही यह लिखा है कि भारत की वीर गुर्जर जाति ने देश की 300 वर्ष तक अप्रतिम सेवा की और इस्लाम के आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने से रोकने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की । इतिहास को हर्षवर्धन को अंतिम हिंदू सम्राट कहे जाने की भ्रांत धारणा के साथ रोककर खड़ा करना मूर्खता है। जबकि गुर्जर प्रतिहार वंश के सम्राटों की लंबी परंपरा को सही रूप में इतिहास में स्थान दिए जाने की नितांत आवश्यकता है। जिनमें नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय, सम्राट मिहिर भोज जैसे महान प्रतापी शासकों के नाम उल्लेखनीय हैं । इन्हीं शासकों के समय में भारतवर्ष में सबसे पहले घर वापसी और शुद्धि आंदोलन को प्रबलता के साथ चलाया गया ।
इस प्रकार की घटनाएं इससे पहले इतिहास में कहीं नहीं मिलती।

8 – देश के इतिहास में गुर्जर वंश के शासकों ने प्रतिहार वंश के शासन के पश्चात भी महत्वपूर्ण घटनाओं को अंजाम दिया। सल्तनत काल में भी गुर्जर वीर योद्धाओं ने यत्र तत्र अपने छोटे-छोटे राज्य खड़े करने का अथक प्रयास किया। वास्तव में उनके यह प्रयास निहित स्वार्थों में नहीं बल्कि राष्ट्र की सेवा के दृष्टिकोण से किए जा रहे थे। तुर्क काल के पश्चात मुगल काल में भी प्रतिहार वंश और गुर्जर वंश के अन्य शासकों के वंशज महत्वपूर्ण कार्य करते रहे। इनमें दुल्ला भट्टी जिनके नाम पर आज तक लाहिड़ी मनाई जाती है और उनसे पहले राव लूणकरण भाटी जैसे अनेकों वीर योद्धाओं के नाम उल्लेखनीय हैं ,जिन पर विशेष अनुसंधान करने की आवश्यकता है।

9 – प्रतिहार , परमार , चालुक्य ,चौहान , तंवर , गहलौत आदि वंशों को पूर्ण गुर्जर तथा गहरवार , चंदेल आदि वंशों को ( गुर्जर पिता व अन्य जातियों की माताओं से उत्पन्न ) अर्द्ध गुर्जर मानने वाले प्रसिद्ध इतिहासकार श्री आर.डी. बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘प्रीहिस्ट्रीक, एनशिएंट एंड हिंदू इंडिया’ के ‘दी ओरिजिन ऑफ दी राजपूतस एंड द राइज ऑफ़ जी गुर्जर एंपायर’ – नामक अध्याय में गुर्जर प्रतिहार सम्राटों द्वारा देश व धर्म की रक्षा में अरब आक्रमण के विरुद्ध किए गए संघर्षों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘गुर्जर प्रतिहारों ने जो नवीन हिंदुओं अर्थात राजपूतों के नेता थे , उत्तर भारत को मुसलमानों द्वारा विजय करके बर्बाद किए जाने से बचाया तथा इसी प्रकार सारी जनसंख्या को मुसलमान बनने से बचा लिया।’
इस प्रकार के विद्वानों के मतों से गुर्जर वंश को क्षत्रिय परंपरा की एक प्रमुख शाखा या उसका उत्तराधिकारी होने का गौरव इतिहास में दिया जाना चाहिए।

10 – सम्राट मिहिर भोज का राज्य उत्तर-पश्चिम में सतुलज, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में पाल साम्राज्य कि पश्चिमी सीमा, दक्षिण-पूर्व में बुन्देलखण्ड और वत्स की सीमा, दक्षिण-पश्चिम में सौराष्ट्र, तथा पश्चिम में राजस्थान के अधिकांश भाग में फैला हुआ था। 300 वर्ष के शासनकाल में उन अनेक वीर योद्धाओं और गुर्जर शासकों के द्वारा किए गए राष्ट्र सेवा के अप्रतिम योगदान पर विशेष अनुसंधान की आवश्यकता है जिन्होंने किसी न किसी रूप में देश के लिए अपना या तो अप्रतिम बलिदान दिया या फिर देशभक्ति के महान कार्य किए। उन ऐतिहासिक स्थलों, भवनों, दुर्गा आदि का संरक्षण करने और इतिहास में उनका सही स्थान निर्धारित करने की भी आवश्यकता है जो आज किसी न किसी रूप में देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमें उपलब्ध होते हैं।
सोमनाथ के विश्व प्रसिद्ध मंदिर से भी गुर्जर वंश का गहरा संबंध रहा है। जिसका जीर्णोद्धार सम्राट वत्सराज ने करवाया था । उसके पश्चात भी जब इस मंदिर को तोड़ा गया तो राजा भीमदेव ने विदेशी आक्रमणकारी महमूद गजनवी को पराजित कर उससे लूट के माल को वापस लिया था। इतिहास के इस सत्य को वर्तमान इतिहास में स्थान नहीं दिया गया है, जो कि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।

11 – हमें गुर्जरों के इतिहास में भरौच, भीनमाल राजस्थान के गुर्जर वंश, कन्नौज के गुर्जर वंश ,परमारों के धारा नगरी के गुर्जर राजवंश, चौहान राजवंश और लंढौरा राज, दादरी के राव और इसी प्रकार हस्तिनापुर परीक्षितगढ़ में नागड़ी राजवंश के राजाओं के ऐतिहासिक कार्यों पर भी विशेष अनुसंधान करने की आवश्यकता है। जिन गुर्जर शासकों, क्रांतिकारियों, इतिहासनायकों के कारण देश की आजादी या तो सुरक्षित रही या फिर जिनके कारण तुर्कों, मुगलों और अंग्रेजों का पतन हुआ, उन पर भी अनुसंधान किया जाना आवश्यक है। जिससे उन्हें इतिहास में समुचित स्थान प्रदान किया जा सके।
क्योंकि यह सत्य है कि गुर्जर शासकों, इतिहास नायकों और क्रांतिकारियों ने देश की संस्कृति की रक्षा करने और आजादी को लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

12 – पटेल, पट्टेलेवा, पाटिल ,भाटी, भट्ट, भाटिया आदि शब्दों के परस्पर समन्वय पर अनुसंधान कर इन जातियों या वंशों, कुल गोत्रों के लोगों के परस्पर रक्त संबंध का पता कर इनमें जातीय एकता स्थापित कर इन्हें राष्ट्रीय एकता के प्रति समर्पित करने के प्रति भी विशेष कार्य करने की आवश्यकता है । जातीय आधार पर एक होकर काम करना लोग अधिक पसंद करते हैं। इस दृष्टिकोण से सभी कुल गोत्रों के मूल स्रोत पर प्रकाश डाल कर लिखे जाने वाले ग्रंथ से इन सभी के भीतर जातीय एकता और अभिमान का भाव उत्पन्न होगा, जिसका लाभ राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए लिया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त सभी क्षत्रिय जातियों के गोत्र और वंश परंपराओं के परस्पर मिलन पर भी शोध कार्य कराकर सभी के बीच जातीय समन्वय स्थापित कराने का भी कार्य किया जाना चाहिए।

13 – भारत के बाहर जॉर्जिया गुजरांवाला जैसे अनेकों स्थान हमें मिलते हैं, जिनसे गुर्जर वंश का गहरा संबंध दिखाई देता है । इन सबको भी संभावित ग्रंथ में स्थान देकर गुर्जर वंश की व्यापकता को प्रकट किया जाना समय की आवश्यकता है। कश्मीर सहित जिन जिन स्थानों पर किन्हीं भी कारणों से गुर्जर वंश के लोग किसी समय विशेष पर धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम हो गए उन्हें देश की मुख्यधारा में लाने के लिए फिर से उनकी घर वापसी सुनिश्चित कराना भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए उनके प्राचीन गौरवमई इतिहास को उन्हें उन्हें स्मृत कराना आवश्यक है।

14 – स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विजय सिंह पथिक, कोतवाल धन सिंह गुर्जर , रामप्यारी गूर्जरी जैसे जिन वीर वीरांगनाओं ने देश के लिए बलिदान दिया या ऐतिहासिक कार्य कर अपने जीवन को धन्य किया उन सबको एक सुनियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत इतिहास से दूर फेंक दिया गया । आज इन सभी महान योद्धाओं के साथ-साथ उन योद्धाओं पर भी अनुसंधान किया जाना आवश्यक है जिनके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हुए उन्हें इस इतिहास में स्थान नहीं दिया गया है। इसके लिए देश के अंचलिक इतिहास की जानकारी कराया जाना आवश्यक है । गुर्जर बहुल क्षेत्रों में जा जाकर लोगों से उनके आंचलिक इतिहास की जानकारी ली जाकर उसे एक इतिहास ग्रन्थ में पिरोया जाना उचित होगा।

15 – गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, पृथ्वीराज चौहान, धन सिंह कोतवाल, विजय सिंह पथिक और इन जैसे अन्य प्रतापी शासकों की योद्धाओं या स्वतंत्रता सेनानियों क्रांतिकारियों की आदमकद प्रतिमाएं सरकारों के द्वारा स्थापित कराई जाएं। जिससे लोगों को अपने इतिहास नायकों से प्रेरणा मिल सके।

16 – यह कि देश के आंचलिक इतिहास को समेटने के लिए और उसे इतिहास में समुचित स्थान देने के लिए जातियों का इतिहास सर्वप्रथम संकलित कराया जाए। क्योंकि जातीय इतिहास को कुछ अधिक गौरवशाली ढंग से लोग अपने पास सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं।

17 – यह कि हिंदुओं के सांस्कृतिक , राजनीतिक और वैज्ञानिक महापुरुषों को गौरवशाली स्थान प्रदान करने के लिए विभिन्न स्थानों पर देश में ऐसे भव्य मंदिर स्थापित कराए जाएं जिनमें अपने सभी इतिहासनायकों के चित्र और उनके ऐतिहासिक कार्य उल्लिखित हों।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति
दिनांक 25 नवंबर 2021

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