यह कैसी उन्नति?
बनाता है योजना क्यों, आज भी विनाश की?
बात करता शांति की, तैयारी है जंग की।
चिंता कभी हुई नही, भूखे नंगे अंग की।
गोली पर तू खर्च करता, भाई झपट रहे रोटी पर।
शरमाता नही, हंसता कहता, मैं हूं उन्नत की चोटी पर।
टोही उपग्रह और मिजाइल, किसके लिए लगाता है?
बच नही पाएगा वो भी, जो भी इन्हें बनाता है।
क्या कभी ये सोचकर देखा? निकट है काल की रेखा?
महल और चौबारे तेरे, दिन पर दिन ऊंचे होते।
मुझे आह सुनाई देती है, जो नींव के नीचे हैं राते।
हर वस्तु में करी मिलावट, पाप के बीज रहे बोते।
मृत्यु की गोदी में जाने, कितने लाल रोज सोते।
पुल, भवन और बांध सडक़ें, टूटते दिन रात क्यों?
नवविवाहिता का बता दें, फोड़ता सुहाग क्यों?
डाक्टर देता दवाई, रोगी उठकर बोलेगा।
पास बैठी मां निरखती, मेरा लाल आंखें खोलेगा।