भारत में जातिवाद को कैसे किया जा सकता है खत्म ?

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

सर्वोच्च न्यायालय ने इधर जातीय भेदभाव के आधार पर होनेवाली हिंसा के बारे में कुछ बुनियादें बातें कह डाली हैं। जजों ने 1991 में तीन लोगों के हत्यारों की सजा पर मोहर लगाते हुए पूछा है कि इतने कानूनों के बावजूद देश में से जातीय घृणा का उन्मूलन क्यों नहीं हो रहा है? अदालत की अपनी सीमाएं हैं। वह सिर्फ कानून लागू करवा सकती है। वह खुद कोई कानून बना नहीं सकती। वह कोई समाजसेवी संस्था भी नहीं है कि वह जातिवाद के विरुद्ध कोई अभियान चला सके। यह काम हमारी संसद और हमारे नेताओं को करना चाहिए लेकिन वे तो बेचारे दया के पात्र बने रहते हैं। उनका मुख्य काम है— वोट और नोट का कटोरा फैलाये रखना। उनमें इतना नैतिक बल कहां है कि उनके अनुरोध पर लोग अपने जातिवाद से मुक्त हो जाएं? उनकी दुकान चल ही रही है जातिवाद के दम पर ! डाॅ. लोहिया ने जात-तोड़ो आंदोलन चलाया था लेकिन उनकी माला जपनेवाले नेता ही आज जातिवाद के दम पर थिरक रहे हैं। जातीय जन-गणना के शव को दफनाए हुए 90 साल हो गए लेकिन वे अब उसे फिर से जिंदा करने की मांग कर रहे हैं। ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ आंदोलन की वजह से मनमोहनसिंह सरकार ने जातीय-गणना बीच में ही रुकवा दी थी लेकिन भारत में जातिवाद को जिंदा रखनेवाले ‘जातीय आरक्षण’ को खत्म करने की आवाज आज कोई भी दल या नेता नहीं लगा रहा है। इस देश में सरकारी नौकरी और शिक्षा में जब तक जातीय आधार पर भीख बांटी जाएगी, जातिवाद का विष-वृक्ष हरा ही रहेगा। मुट्ठीभर अनुसूचितों और पिछड़ों के मुंह में चूसनी लटकाकर देश के करोड़ों वंचितों और गरीबों को सड़ते रहने के लिए हम मजबूर करते रहेंगे। इस समय देश में जातिवाद के विरुद्ध जबर्दस्त सामाजिक अभियान की जरुरत है। सबसे पहले जातिगत आरक्षण खत्म किया जाए। दूसरा, जातिगत उपनाम हटाए जाएं। तीसरा, किसी भी संस्था और संगठन जैसे अस्पताल, स्कूल, धर्मशाला, शहर या मोहल्ले आदि के नाम जातियों के आधार पर न रखे जाएं। चौथा, अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया जाए। पांचवां, आम चुनावों में किसी खास चुनाव-क्षेत्र से किसी खास उम्मीदवार को खड़ा करने की बजाय पार्टियां अपनी सामूहिक सूचियां जारी करें और अपने जीते हुए उम्मीदवारों को बाद में अलग-अलग चुनाव-क्षेत्र की जिम्मेदारी दे दें। इससे चुनावों में चलनेवाला जातिवाद अपने आप खत्म हो जाएगा। मतदाता अपना वोट देते समय उम्मीदवार की जाति नहीं, पार्टी की विचाारधारा और नीति को महत्व देंगे। इसके कारण हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही, जातीय आधार पर थोक वोट कबाड़नेवाले अपराधियों, ठगों, अकर्मण्य और आलसी लोगों से भारतीय राजनीति का कुछ न कुछ छुटकारा होगा।
इंदौर,

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