कोठी की मुस्कान में
किंतु नकली थी दवाई, व्यर्थ रहे प्रयास सब।
विस्मय में हैं डाक्टर, रोगी ने तोड़ा सांस जब।
हाय मेरा लाल कहकर, मां बिलखती जोर से।
अंत:करण भी कराह उठा, उस दुखिया के शोर से।
किंतु नही पसीजा हृदय, तू बहरा और अंधा है।
उन्नत मानव का दम भरता, करता काला धंधा है।
जीवन का तूने लक्ष्य बनाया, कार और कोठी को।
नेक कमाई करनी थी, तू लगा छीनने रोटी को।
छीन झोंपड़ी की मुस्कानें, कोठी तेरी मुस्कराई।
अरे! गरीबों के लहू से, अम्पाला तूने दौड़ाई।
झोंपड़ी का दिया बुझा दीप, तेरी कोठी में झिलमिल है।
उधर तोड़ते भूख से दम, इधर विहस्की की महफिल है।
मुझे रक्तिम दाग दिखाई दें, तेरे सुंदर परिधानों में।
तेरी काली करतूतों से, जो पहुंच गये शमशानों में।
जन्म दिवस रहा मना वत्स का, रंगरलियां स्वर तालों पर।