कैसे कहूं -‘मेरा भारत महान’
देश की वास्तविकता को बयान करती तस्वीर हमारे सामने आई है। मोदी सरकार ने सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़े पेश किये हैं, इससे स्पष्ट हुआ है कि भारत की जनसंख्या का 75 प्रतिशत भाग अभी तक ऐसा है जो पांच हजार रूपये तक की मासिक आय से ही गुजारा कर रहा है। ऐसे लोगों की संख्या मात्र आठ प्रतिशत है जो दस हजार से अधिक की मासिक आय रखते हैं। देश के लोगों की दयनीय दशा को स्पष्ट करने वाली रिपोर्ट को देखकर रोंगटे खड़े होते हैं। आज भी देश में ऐसे लोगों की संख्या 31 प्रतिशत से अधिक है जो या तो छप्पर के घर में रहते हैं या जिनके पास एक कच्चा कोठा ही है, या वह भी नही है। इसे देखकर मैं कैसे कहूं कि मेरा भारत महान है।
देश जब आजाद हुआ था तो उस समय सपना लिया गया था कि आजादी के बाद सारे देश में खुशहाली आ जाएगी और हर व्यक्ति को उस खुशहाली का लाभ मिलेगा। उस समय हर व्यक्ति की आंखों में इस सपने की चमक को साफ पढ़ा जा सकता था। हर व्यक्ति को ऐसा लगता था कि देश से अब लुटेरे शासकों का समय बीत गया, अब तो अपने हाथों में अपनी बागडोर होगी, खजाने पर अपना अधिकार होगा, देश के आर्थिक संसाधनों का सदुपयोग कर हर व्यक्ति उनसे लाभान्वित होगा, पर यह सपना केवल सपना बनकर रह गया। हम कहां लुटे और गरीब की छाती पर हमने कब कितने भारी-भारी पत्थर अपने बनकर रख दिये यह हमें पता ही नही चला। आज जो रिपोर्ट हमारे सामने आई है, वह बता रही है कि हमारी दिशा और दशा दोनों भटकाव का शिकार हो गयीं।
देश में बेरोजगारी हटाने और गरीबी हटाने की बातें की गयीं, पर यह दोनों देश में रात दिन बढ़ती ही चली गयीं। यह कितना दु:खद तथ्य है कि देश में ऐसे लोग केवल आठ प्रतिशत हैं जो दस हजार से अधिक की मासिक आय रखते हैं? हमने 8 प्रतिशत लोगों के हितों पर 92 प्रतिशत लोगों के हितों को कुर्बान कर दिया। बड़ी तेजी से देश में विकास होता दिखाई दिया, पर यह कितने लोगों का विकास हो रहा था-मात्र आठ प्रतिशत लोगों का। बड़े-बड़े शहर हमने बसाए, या उनका विकास किया, पर वहां भी गरीबों की झुग्गी झोंपडिय़ां बड़ी संख्या में बढ़ती चली गयी। एक ऐसा वर्ग तेजी से देश में पनपा जो भारतीयों से घृणा करता है और अपने आपको इंडियन कहलाने में खुशी महसूस करता है। इस प्रकार की परिस्थितियों में बेरोजगारी हटाओ और गरीबी हटाओ जैसे नारे केवल नारे बनकर रह गये, उनका लाभ लोगों को नही मिला।
इस देश में ऐसी अनेकों योजनाएं हैं जो सरकार की ओर से कागजों में बनती हैं और कागजों में ही पूरी हो जाती हैं। व्यवस्था ने अपने लिए ऐसी व्यवस्था कर ली है कि ये योजनाएं केवल उसके लिए लाभकारी हों। पैसा चलता है ऊपर से, और ऊपर के लोगों तक ही बंटकर रह जाता है। नीचे उन लोगों के पास तक यह पैसा जाता ही नही, जिनके नाम पर इस पैसे का आवंटन किया जाता है। अधिकारी, नेता, उद्योगपति मिलकर इस पैसे का बंटवारा कर लेते हैं। इस प्रकार शोषण, उत्पीडऩ, दलन और दमन की बही प्रक्रिया अपने और भी अधिक घृणित स्वरूप में हमारे सामने आकर खड़ी हो गयी है, जो कभी विदेशी शासकों के काल में हुआ करती थी, परंतु उस समय के लिए यह कहकर तो लोग संतोष कर लिया करते थे कि यह विदेशी शासन है, जब अपना शासन होगा तो उस समय ऐसी स्थिति नही होगी। समय ने लोगों की इस धारणा को झूठा साबित कर दिया। शोषण और उत्पीडऩ के इस घृणित खेल में लगे हुए लोगों ने स्पष्ट कर दिया कि हम विदेशी शासकों के उत्तराधिकारी हैं जो भारत को किसी भी स्थिति में भारत नही बनने देंगे।
अभी समय है, हमारे संभलने का, हमारे सुधरने का। यदि समय रहते हम नही सुधरे तो समय हमको सुधार देगा। गरीब और अमीर के बीच बढ़ती दूरी जब गरीब को आंदोलित करेगी और उसकी भूख मिटाए नही मिटेगी तो वह अमीर को छोड़ेगा नही। अमीर को चाहिए कि वह अपनी जमीर को जगाए और गरीब के नसीब के साथ किसी प्रकार की अति करने से बाज रहे। यह सच है कि दुनिया के इतिहास को बदलने का काम गरीब ही करता है, गरीब ही देश की व्यवस्था को बदलता है, और गरीब ही लोगों की ‘गरीब सोच’ को बदलता है।

लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है