नई दिल्ली। (राकेश कुमार यादव) डॉक्टर प्रेमा खुल्लर की पुस्तकों के लोकार्पण के अवसर पर ‘कोरोना कालीन प्रकाशन’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ श्याम सिंह ‘शशि’ ने अपने मार्गदर्शन में कहा कि उत्कृष्ट साहित्य वही होता है जो लोक कल्याण की भावना से प्रेरित होता है उस पर निराशा की कोई संभावना नहीं होती। उन्होंने कहा कि साहित्यकार बड़ी दूरदर्शिता के साथ अपना लेखन कार्य करता है, क्योंकि उसके दृष्टिकोण में ‘आज’ नहीं बल्कि मानवता का आने वाला ‘कल’ भी छुपा होता है। साहित्यकार का प्रयास होता है कि मानव समाज के लिए न केवल आज बल्कि आने वाला कल भी सुंदर हो। साहित्य की इसी विशिष्टता को ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ कहते हैं जो किसी भी लेखक के मनोभाव और लेखन में साक्षात प्रकट होती है।
इससे पूर्व अपने बीज भाषण में डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि डॉ श्याम सिंह ‘शशि’ द्वारा रामराज्य पर उत्कृष्ट पुस्तक का प्रकाशन कराया गया। जो इस समय चर्चा का विषय बन चुकी है। इसी प्रकार डॉ प्रेम खुल्लर की पांचों पुस्तकें भी उनके उत्कृष्ट साहित्य लेखन को प्रकट करती हैं। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं कई पुस्तकों का लेखन इस काल में कर चुका हूँ। डॉक्टर आर्य ने कहा कि सफलता एक अलग चीज है जबकि जीवन की सार्थकता का बोध होना एक अलग चीज है। सफलता जहां अहंकार पैदा करती है, वहीं सार्थकता जीवन को सरस बनाए रखती है। किसी भी साहित्यकार के लिए सहजता, सरसता और सरलता जैसे सुंदर मनोभाव बने रहना बहुत आवश्यक है।
सभा की अध्यक्षता कर रहीं डॉ मधु चतुर्वेदी ने इस अवसर पर अपनी सुंदर कविता प्रस्तुत की और उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि कविता क्रांति का आवाहन करती है वह न केवल वर्तमान को प्रस्तुत करती है बल्कि भविष्य की उज्जवल संभावना को भी प्रकट करती है। उन्होंने कहा कि डॉ प्रेमा खुल्लर की सभी पुस्तकें बहुत सहज भाव से सरल और सहज ढंग से लिखी गई हैं, जो कि उनकी सहज सरल लेखन शैली को प्रकट करती हैं। उन्होंने कहा कि बहुत बड़ी बात को सहज सरल ढंग से कहना किसी भी लेखक की विशेषता होती है। कोरोना काल में भी लेखकों या कवियों ने अपनी लेखन से शैली के द्वारा लोगों का उत्कृष्ट मार्गदर्शन किया। साहित्य लेखन के कार्य में लगे लोगों के जीवन का यह एक उज्जवल पक्ष है।
डॉक्टर शिवशंकर अवस्थी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उत्कृष्ट साहित्य लोगों को जीवन बोध कराता है । इसके अतिरिक्त राष्ट्रबोध, आत्मबोध और संस्कृति बोध भी साहित्य के माध्यम से ही संभव है। डॉ कानन शर्मा ने कहा कि साहित्य संप्रदाय व जाति निरपेक्ष होता है, उसके दृष्टिकोण में केवल मानवता होती है। डॉक्टर आशा त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रत्येक प्रकार की संकीर्णता और नकारात्मकता को अच्छे साहित्य के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है। श्री दयानंद वत्स ने कहा कि शिक्षा को चाटुकारिता से मुक्त कराया जाना समय की आवश्यकता है।
डॉक्टर हरिसिंह पाल ने इस अवसर पर कहा कि साहित्य के द्वारा जी हम अपने देश के वास्तविक इतिहास और संस्कृति को समझ सकते हैं। जो लोग इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं वे बधाई के पात्र हैं। जबकि डॉ अरविंद अग्रवाल ने कहा कि राष्ट्रवादी शुद्ध चिंतन को प्रकट किया जाना किसी भी साहित्यकार के लिए परम आवश्यक है। इसी प्रकार के विचार व्यक्त करते हुए डॉ राधेश्याम मिश्र ने अपनी एक सुंदर कविता को भी प्रस्तुत किया।
देश की युवा शक्ति की ओर से अपने विचार व्यक्त करते हुए कुमारी संस्कृति ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ रोहिणी संस्कृत के लिए विशेष कार्य कर रही है। जिसकी अपनी एक बहुत ही सुव्यवस्थित योजना है। जिसके अंतर्गत वह साहित्य और विशेष रूप से संस्कृत को विश्व के लिए उपयोगी बनाने पर काम कर रही है। इस अवसर पर श्रीमती ऋचा और उनके साथ साथ अभिलाषा ने भी विशेष सहभागिता दिखाई । मंच संचालन का कार्य अभिलाषा द्वारा सफलता से किया गया।
Categories