क्या संविधान से खिलवाड़ करना कांग्रेस का मौलिक अधिकार है?
जब कांग्रेस, इनकी समर्थक पार्टियां और इनके शुभचिंतक वर्तमान मोदी सरकार पर भारतीय संविधान का मजाक उड़ाने की बात सुनकर हंसी आती है। सत्ता से बाहर होते ही कांग्रेस और इसके समर्थक दलों को संविधान की याद आ रही है, जबकि सत्ता में रहते अपनी सहयोगी पार्टियों के समर्थन से संविधान को मात्र एक झुनझुना बनाकर कांग्रेस ने इस्तेमाल किया।
कांग्रेस शुरू से ही देश के संविधान से खिलवाड़ को अपना मौलिक अधिकार समझती रही हैं। कांग्रेस ने तो पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जमाने से ही संविधान का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया था, जो आज तक रुका नहीं है। देश में हुए प्रथम चुनाव में ही लोकतंत्र का मजाक उड़ाया। जब उत्तर प्रदेश के रामपुर से लगभग 6000 वोटों से हारे मौलाना आज़ाद को विजयी घोषित करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत को आदेश दिया था। और पंत ने साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर हारे मौलाना आज़ाद को विजयी घोषित करवा दिया था।
आइए, संविधान दिवस पर देखते हैं ऐसे पांच उदाहरण, जिनसे पता चलता है कि कैसे कांग्रेस हमेशा देश के पवित्र संविधान को ताक पर रखती रही है।
टेलीफोन पर रिपोर्ट लिखवा लगाया राष्ट्रपति शासन
31 जुलाई, 1959 को तत्कालीन नेहरू सरकार ने संविधान की मर्यादाओं को छिन्न-भिन्न करते हुए निर्दलियों के सहयोग से केरल में बनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उन्हें इतनी जल्दी थी कि उन्होंने राज्यपाल की रिपोर्ट के एयर सर्विस से दिल्ली आने तक का भी इंतजार नहीं किया। टेलिफोन पर ही रिपोर्ट लिखवाकर, उसी के आधार पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवा दिया।
संविधान या इंदिरा संविधान
नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी तो प्रधानमंत्री रहते हुए संविधान के साथ ऐसी मनमानी करती रहीं कि एक समय इसे ‘Constitution of India’ की जगह ‘Constitution of Indira’ कहा जाने लगा था। 25 और 26 जून, 1975 की मध्यरात्रि को देश पर आपातकाल थोपकर इंदिरा गांधी ने देशवासियों को किस दहशत के साये में जीने को मजबूर किया था, यह हमेशा भारतीय इतिहास के काले पन्ने में दर्ज रहेगा।
न्यायपालिका से आपातकाल की समीक्षा का अधिकार छीना
जेपी मूवमेंट से इंदिरा की सत्ता पहले ही खतरे में आ चुकी थी, ऊपर से 12 जून 1975 को उनके चुनाव को गलत बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे रद्द कर दिया। इसके महज 13 दिन बाद ही उन्होंने न सिर्फ आपातकाल थोपा, बल्कि संविधान में ऐसे संशोधनों का दौर शुरू कर दिया, जो लोकतंत्र की आत्मा पर लगातार चोट कर रहा था। 38वें संशोधन के साथ न्यायपालिका से आपातकाल की समीक्षा का अधिकार छीन लिया था, तो 39वां संशोधन पीएम की अपनी कुर्सी बचाने के लिए कराया।
मौलिक अधिकार छीनने के लिए संशोधन
संविधान, जो लोकतंत्र की आत्मा है, इंदिरा गांधी उसे कुचलने पर आमादा हो चली थीं। उन्होंने 41वें संशोधन के साथ कई नए प्रावधान कराए ही, 42वें संशोधन से उन्होंने देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार छीनने तक का कदम उठा लिया। यह एक ऐसा संशोधन था, जिसने हमारी न्यायपालिका की भूमिका तक को सीमित करने का काम किया था। हम सब जानते हैं नागरिक के रूप में हमारे अधिकारों की रक्षा हमारी न्यायपालिका की प्रमुख जिम्मेदारी है। ये आपातकाल के बाद आई जनता पार्टी की सरकार थी, जिसने इंदिरा के मनमाने प्रावधानों को रद्द कर संविधान की गरिमा को बचाए रखने का फर्ज निभाया।
100 से अधिक बार लगाया राष्ट्रपति शासन
कांग्रेसी शासन मनमाने तरीके से राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए भी कुख्यात रहा है। आंकड़े बताते हैं कि आजादी के बाद अलग-अलग राज्यों में अब तक सौ से अधिक बार राष्ट्रपति शासन कांग्रेस या उसके सहयोग से बनी सरकारों के दौरान लगे हैं। इमरजेंसी वाली इंदिरा इस मामले में भी सबसे आगे रही थीं, जिनके शासनकाल के दौरान कुल 49 बार राष्ट्रपति शासन लगाए गए थे।
जगदंबिका पाल को कांग्रेस ने अनैतिक रास्ते से सौंपी सत्ता
वर्ष 1998 में कांग्रेस ने षडयंत्र करके पहले तो उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार गिरा दी। इसके बाद कांग्रेस के आदेश पर तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने लोकतांत्रिक कांग्रेस के नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। हालांकि कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सदन के भीतर गुप्त मतदान में भाजपा के कल्याण सिंह जीत भी गए।
1989 में बोम्मई को बहुमत साबित करने नहीं दिया गया
कर्नाटक में 1989 में एस आर बोम्मई को बहुमत साबित करने नहीं दिया गया था और कांग्रेस ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। जिसके बाद 1994 में सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायाधीशों की पीठ ने बोम्मई के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा था- कांग्रेस जब-तब लोकतंत्र की हत्या करती है। जाहिर है यह एक ऐतिहासिक निर्णय था जिसने कांग्रेस को पूरी तरह से नंगा कर दिया था।
हरियाणा में देवीलाल के खिलाफ काग्रेस का षडयंत्र
जीडी तापसे 1980 के दशक में हरियाणा के राज्यपाल थे। उन्होंने कांग्रेस के निर्देश पर हरियाणा में देवीलाल सरकार का एक तरह से अपहरण कर लिया था। उस समय कांग्रेस को 35 सीटें थीं और लोकदल-भाजपा गठबंधन को 37 सीट। चौधरी देवीलाल ने 6 निर्दलीय, 3 कांग्रेस (जे) और जनता पार्टी के 1 विधायक का समर्थन जुटा लिया था। लेकिन राजभवन में ही राज्यपाल ने षडयंत्र रचा और भजनलाल को राज्य में सरकार बनाने का निमंत्रण भेज दिया।
राजनीतिज्ञों की तरह व्यवहार कर रहे थे राज्यपाल बूटा सिंह
वर्ष 2005 में बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने 22 मई, 2005 की आधी रात को राज्य में विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने का हवाला देते हुए विधानसभा भंग कर दी थी। आरजेडी के पास 91 विधायक थे, जबकि एनडीए के पास 92 अपने विधायक और 10 निर्दलीय विधायकों का समर्थन था। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बूटा सिंह के फैसले को असंवैधिक करार दिया था।
कांग्रेस की शह पर राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने रची थी साजिश!
झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने वर्ष 2005 के झारखंड चुनावों के बाद त्रिशंकु विधानसभा में शिबू सोरेन की सरकार बनवाई। लेकिन इसके बाद सदन में वे बहुमत साबित करने में असफल रहे। उन्हें नौ दिनों की मुख्यमंत्री पद भी गंवाना पड़ा। बाद में अर्जुन मुंडा की सरकार बनी।
कांग्रेस के षडयंत्र से एक सीट वाले मधु कोड़ा बने मुख्यमंत्री
वर्ष 2006 में झारखंड की भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने षडयंत्र किया। पहले निर्दलीय मधु कोड़ा को सरकार से समर्थन वापसी के लिए उकसाया और इसके बाद कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।