जीवन का ध्येय
जीवन जटिल आयु सीमित है, इसका भी कर ध्यान तू।
यथा शक्ति नित करता चल, इस सृष्टि का त्राण तू।
विकास और शांति को बना ले, इस जीवन का ध्येय।
ईश्वर का प्रतिनिधि होने का, तभी मिलेगा श्रेय।
ईष्र्या प्रतिशोध की अग्नि, कर शांत क्षमा के नीर से।
भोग में नही, त्याग में सुख है, बच हिंसा के तीर से।
सत्य अहिंसा न्याय सरलता, हों जीवन के आधार।
बनें कर्मशील रहें गतिशील, करें प्रेमपूर्ण व्यवहार।
रख ऐसे सद्भाव हृदय में, क्या कभी प्रभु टेर कर देखा?
निकट है काल की रेखा।
यत्र तत्र मेरी दृष्टि में, ऐसे नजारे आते हैं।
नये नगर उबारे जाते हैं, बाजार संवारे जाते हैं।
हिंसा और विध्वंस से क्यों, फिर ये ही उजाड़े जाते हैं?
हाय मनुष्य के हाथों ही, क्यों मनुष्य बिगाड़े जाते हैं?
पर्वतों का सीना काट-काट, बड़ी झील बनाई जाती है।
ऊंचे से ऊंचा बांध बना, विद्युत भी बनाई जाती है।