राष्ट्र-चिंतन
*विष्णुगुप्त*
मोदी-योगी की जुगलबंदी से युक्त एक फोटो मात्र ने राजनीति-मीडिया में तहलका मचा दिया। राजनीति में भी इस फोटो की खूब चर्चा हुई, सोशल मीडिया में तो यह फोटो एक तरह से तहलका ही मचा कर रख दिया। दो राजनेताओं के एक साथ एक फोटो इतना बड़ा तहलका मचा देगा, इसकी उम्मीद या इसकी संभावनाएं बहुत ही कम होती है। यह फोटो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का था। फोटो की विशेषता सिर्फ इतनी थी कि नरेन्द्र मोदी अपना हाथ योगी आदित्यनाथ की पीठ पर रख कर चल रहे थे। आमतौर पर ऐसे फोटो देखने को मिलते ही रहते हैं। एक दल के दो राजनीतिज्ञ या फिर अन्य दलों के दो नेता भी इस तरह के फोटो खीचवाते ही रहते हैं। लेकिन यह फोटो कुछ अलग ही है और माना भी गया। यही कारण है कि इस फोटो ने राजनीति और सोशल मीडिया में तहलका मचाने का काम किया। राजनीति में भी इस फोटो के अर्थ खोजे गये और सोशल मीडिया में भी इस फोटो के अर्थ खोजे गये। सभी के अपने-अपने तर्क थे और सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण से इस फोटो के भवार्थ खोजे। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ विरोधी संवर्ग इस फोटो को अपनी आलोचना का आधार बनाने की कोशिश की और अपनी कुदृष्टि फेंकी, अपना विकार फेंका। विरोधी संवर्ग का विकार और कुदृष्टि थी कि यह फोटो मोदी के तानाशाही रवैये को प्रमाणित करता है, एक सन्यांषी के पीठ पर हाथ रख कर चलना असभ्यता की पहचान है, सन्यासी और गेरूआ वस्त्र का अपमान है। विरोधी संवर्ग तो मोदी की आलोचना का कोई अवसर ऐसे भी नहीं छोड़ता है। इसलिए विरोधी संवर्ग की ऐसी आलोचनाएं कोई अस्वाभाविक नहीं बल्कि स्वाभाविक ही मानी जानी चाहिए। योगी की उम्र मोदी से 20 साल से भी ज्यादा छोटी है। योगी सन्यासी हैं पर मोदी भी कभी सन्यासी के तौर पर ढाई साल हिमालय में साधना कर चुके हैं।
अब इस प्रश्न पर विचार करने की जरूरत है कि क्या यह फोटो भारतीय राजनीति को कोई संदेश देने में सफल रहा है, क्या इस फोटो में यूपी चुनाव की कोई रणनीति है, क्या इस फोटो में यूपी चुनाव में भाजपा की जीत का कोई गणित है? क्या इस फोटों में भाजपा विरोधी वैसी पार्टियों की राजनीतिक संभावनाओं को कुचलने जैसी शक्ति निहित है? क्या वैसे दलों और नेताओं की इच्छाओं पर यह फोटो कुठराघात करता है जो नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के बीच अलगाव और राजनीतिक वर्चस्व के युद्ध की आशंका पाल कर रखे थे? क्या इस फोटो से भाजपा के वैसे विधायकों की नाराजगी दूर हो गयी, क्या इस फोटो से वैसे भाजपा कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने का गणित बैठाया गया है जो यागी आदित्यनाथ सरकार के दौरान कोई पद नहीं मिलने और न ही नौकरशाही के भ्रष्ट आचरण के कारण उनके काम नहीं हुए थे? क्या भाजपा इस फोटों के सहारे यूपी में फिर से जीत का करिशमा कर दिखायेगी?
निश्चित तौर पर यह फोटो एक चुनावी रणनीति का हिस्सा है। यह फोटो नरेन्द्र मोदी के दिमाग की उपज है। यह फोटो कदापि तौर पर परिस्थिति जन्य नहीं है। एक रणनीति के तहत इस फोटो को खींचवाया गया है।स्थान भी राजभवन को चुना गया। इस फोटो का नरेन्द्र मोदी की कसौटी पर सीधा संदेश है कि हम यूपी में साथ-साथ हैं, अलग नही हैं। अलग-अलग देखने वाले और ताल देकर अलग-अलग करने का सपना देखने वाले समझ लें। साथ ही साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी संदेश दे दिया गया है कि नाराजगी दूर कर लीजिये। साथ-साथ मिलकर चुनाव जीतना है।
इधर कुछ समय से नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के बीच मनमुटाव और वर्चस्व की खबरें आम हो रही थी। राजनीति में भी यही बात फैलायी गयी थी कि योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी के रास्ते अलग-अलग हैं, इनके बीच मनमुटाव चरम पर है, इनके बीच पार्टी पर वर्चस्व की आग लगी हुई है। नरेन्द्र मोदी अब योगी आदित्यनाथ के सामने बौने साबित हो रहे हैं, इसलिए कि आरएसएस का हाथ योगी आदित्यनाथ के सिर पर है, आरएसएस अब यह नहीं चाहता कि नरेन्द्र मोदी की तानाशाही छबि और भी बढे, नरेन्द्र मोदी का पार्टी पर दबदबा और बढे। यह भी अफवाह फैलायी गयी थी कि नरेन्द्र मोदी के सामने आरएसएस बौना साबित हो गया है, नरेन्द्र मोदी की सरकार में आरएसएस की एक नहीं चल रही है। आरएसएस अब मोदी से छूटकारा पाना चाहता है, मोदी से छूटकारा पाने के लिए आरएसएस को एक बड़ी शख्सियत की जरूर है। आरएसएस की खोज इस निमित योगी आदित्यनाथ तक पहुंच कर समाप्त हो जाती है।
नरेन्द्र मोदी आम तौर पर मुख्यमंत्रियों के जन्मदिवस पर बधाइयां देते रहे हैं। अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों को ही नहीं बल्कि विपक्ष के मुख्यमंत्रियों को भी जन्म दिवस की बधाइयां देना नहीं भूलते हैं। पिछले पाच जून को योगी आदित्यनाथ का जन्म दिवस था पर नरेन्द्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ को जन्म दिवस की बधाइयां नहीं दी थी। उस समय यह प्रश्न काफी तेजी से उठा था। पर जन्म दिवस पर बधाइयां नहीं देने का कारण में वर्चस्व या फिर घृणा जैसी कोई बात नहीं थी। उस समय कोरोना की लहर तेज थी और देश भर में कोरोना से मुत्यु भी भयंकर हो रही थी। इसी कारण नरेन्द्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ के जन्म दिवस पर बधाइयां नहीं दी थी। अगर वे योगी को बधाइया दे देते तो फिर विपक्ष दूसरा आरोप यह जड़ देता कि नरेन्द्र मोदी असभ्य है, असंवेदनशील हैं। कोरोना से मृत्यु के प्राप्त नागरिकों के लिए इनके पास समय नहीं है और अपने मुख्यमंत्री को जन्म दिवस की बधाइयां देने और मनाने में लगे हैं। भारत जैसे देश में जहां पर राजनीति की हर क्रिया पर तेज प्रतिक्रिया होती है वहां पर राजनेताओं को संयम बरतने की जरूरत होती है, काफी सोच समझ कर कदम उठाने होते हैं। नरेन्द्र मोदी इस जरूरत को समझने वाले राजनीतिज्ञ तो जरूर हैं।
सबसे बडी वजह पार्टी का अनुशासन और योगी आदित्यनाथ सरकार की कार्यशैली भी रही है जिससे नाराजगी और अफवाह फैलती रही है। योगी आदित्यनाथ सरकार की कार्यशैली बहुत ही शख्त रही है। पिछले कई सरकारों की अपेक्षा योगी आदित्यनाथ की सरकार बेहतर रही है। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर योगी आदित्यनाथ की सरकार की उपलब्धियां बेमिसाल रही हैं। जिस उत्तर प्रदेश को लूट, मार, हत्या और डकैत का राज्य घोषित कर दिया गया था उसी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की शख्त कानून व्यवस्था से अपराधी डर से थरथर कांपने लगे हैं। अपराधी अपनी जमानत तोड़वा-तोड़वा कर खुद जेल जा रहे हैं। ऐसा इसलिए अपराधी कर रहे हैं कि उन्हें जेल से बाहर रहने के दौरान पुलिस एनकांउंटर में मारे जाने का भय सता रहा है। यूपी पुलिस ने सैकड़ों अपराधियों का एनकांउटर किया। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ ने नौकरशाही को डर-भय विहीन और दबाव विहीन निर्णय लेने के लिए छूट दी हैं, स्वतंत्रता दी है। इस कारण विधायकों और कार्यकर्ताओं को भी परेशानी हुई थी। खासकर नौकरशाही के प्रति विधायकों का आक्रोश जरूर था।
जब कोई पार्टी बड़ी होती है, सरकार में होती है और पार्टी को यह लगता है कि उसके कार्यकर्ताओं और सांसदो-विधायकों में आक्रोश है तो फिर उसका प्रबंधन भी करती है। प्रधानमंत्री भी यही चाहते हैं कि उनकी पार्टी में अनुशासन बना रहे और आक्रोश भी नियंत्रण में रहे। यूपी में भाजपा विधायकों के आक्रोश पर भाजपा के संगठन मंत्री बीएल संतोष ने लखनउ में मंत्रणा की थी, विधायकों और कार्यकर्ताओं में आक्रोश को जांचा परखा था। बीएल संतोष ने नाराज विधायकों और कार्यकर्ताओ को मनाया भी था और योगी को नाराज विधायकों और कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित करने के लिए कहा था। यह भाजपा की सामान्य प्रक्रिया थी। पर मीडिया और विपक्षी दलों में यह अफवाह फैला दी गयी कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह मिलकर योगी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटवाना चाहते हैं। इसीलिए बीएल संतोष लखनउ से विधायकों और कार्यकर्ताओं की भावनाओं पर एक रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री को सौंपी है। इसके बाद दिल्ली में योगी और मोदी के बीच मुलाकात के बाद यह साफ हो गया था कि ऐसी कोई बात या रणनीति नहीं थी। यह पार्टी की सामान्य प्रक्रिया थी।
योगी निश्चित तौर पर शक्तिशाली बनें हैं। वे भाजपा के हार्डलाइनर है। योगी भाजपा के अन्य मुख्यमंत्रियों के लिए प्रेरक भी बन गये हैं। योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार से मुस्लिम गंुडागर्दी पर लगाम लगायी है, राजनीति में सक्रिय मुस्लिम नेताओं जैसे आजम खान, मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी और सीएए के विरोधियों पर अंकुश लगायी है, कार्रवाई की है, उन्हें कानून का पाठ पढ़ाया है उससे योगी की भाजपा में छबि मजबूत हुई है। मोदी जहां पर उदार होकर काम करते हैं वहां पर भाजपा के नेता और कार्यकर्ता यह कहने के लिए बाध्य होते हैं कि योगी होते तो फिर ऐसा नहीं होता। कहने का अर्थ है कि योगी को अभी से ही नरेन्द्र मोदी का विकल्प भी देखा जाने लगा है।
भाजपा और नरेन्द्र मोदी किसी भी परिस्थिति में उत्तर प्रदेश में फिर से सरकार बनाना चाहते हैं। इसके लिए पार्टी के अंदर एकजुटता दिखाने की जरूरत है। योगी की सरकार फिर से वापस न हो यह नरेन्द्र मोदी के हित में भी अच्छा नहीं होगा। उत्तर प्रदेश ही तय करता है कि देश में किसकी सरकार बनेगी। उत्तर प्रदेश मे सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद वाराणसी लोकसभा सीट से सांसद है। इसलिए योगी-मोदी की जुगलबंदी भाजपा के लिए जरूरी है।
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