नदी में कुआं
राजस्थान के जोधपुर डिवीजन के अंतर्गत जालौर जिले से 70 किमी0 दूर कोमता गाँव हैं । जालौर जिले का मूल नाम जाबालिपुरा था जो रामायण कालीन ऋषि जाबालि के नाम पर था। रामायण काल से लेकर रियासत काल तक अनेक राजाओं ने इस पर शासन किया । सबसे उल्लेखनीय शासन गुर्जर प्रतिहार वंश का रहा जिन्होंने भीनमाल को अपनी राजधानी बनाया । जालौर के गुर्जर प्रतिहार वंश के गुर्जर नरेश मान ने 10 वीं शताब्दी में अपने शासनकाल में एक लोक कल्याणकारी योजना निकाली अपने अधीन प्रत्येक गांव में एक कुआं राज व्यवस्था की ओर से खुदवाया। कोमता गांव में भी कुएँ का निर्माण करवाया गया था । यह कुँआ गाँव के बीचोंबीच था । कई दशक पूर्व गाँव के किनारे बहने वाली नदी के विकराल रूप लेने से पूरा गाँव नदी से तबाह होकर नदी में बह गया था । तबाही ऐसी थी कि गाँव के सभी घरों को उखाडऩे के साथ तीस फीट मिट्टी भी साथ ले गई और गाँव के अवशेष तक मिटा दिये । उस तबाही के मंजर को अपनी आँखों से भुक्तभोगी नहीं साक्षी भाव से देख रहा गुर्जर प्रतिहार कालीन यह कुँआ जस का तस आज भी खडा़ है । उसके बाद भी आज दिन तक दर्जनों बार नदियाँ आई लेकिन आज भी वह कुँआ सीना ताने वैसे ही खडा़ हैं । पाँच-छः साल पूर्व इस कुएँ से सौ मीटर दूर लाखों रूपये स्वीकृत कर एक पुल का निर्माण किया गया था लेकिन तीन साल पहले आई नदी उसे भी समूल नष्ट कर आगे बढ़ गई ! लेकिन यह कुँआ आज भी प्राचीन मजबूत लोगों की मजबूती का प्रमाण दे रहा हैं मजबूत नियत इमानदारी की गवाही दे रहा है । वैज्ञानिक युग में नित नये अविष्कारों के साथ मजबूत सीमेंट व सरिये के विज्ञापन तो हम हमेशा देखते हैं लेकिन पांच-दस साल से ज्यादा किसी ईमारत को वो मजबूती नहीं दे पाते हैं। कोमता गाँव की नदी में खडा़ यह कुँआ आज भी सदियों पुराने ईंटों, चूने व कारीगरों की वाहवाही कर बता रहा है कि आज की बिल्डर मशीनरी व इंजीनियर आर्किटेक्ट की फौज हमारे पुराने कारीगरों के सामने फेल है । प्रजावत्सल राजाओं की इमानदारी राज्य कर्मचारियों की राजनिष्ठा का तो कोई तोड़ ही नहीं।
आज सविधान से निर्मित मंत्रियों अधिकारियों अधीक्षण अभियंताओं की कारगुजारी का तो आपको पता ही है। सेतु सड़क स्मारक के बनने से पहले उनके तोड़ने का टेंडर जारी हो जाता है सेफ्टी ऑडिट के मुताबिक।
आर्य सागर खारी ✍✍✍