सोहन के पिता का देहांत उस समय ही हो गया था जब वह माँ के गर्भ में था । माँ ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला – पोसा।जल्दी ही वह जवान हो गया था। पिता का साया ना होने के कारण उसके कदम भटक गए और राहजनी करने लगा।
एक दिन एक व्यक्ति अपने बेटे की बारात को विदा कराके लौट रहा था जो कि घोड़ी पर सवार था। उसके पास काफी जेवर और रुपया पैसा था। डाकू सोहन ने उसे रास्ते में रोक लिया और धन -जेवर , रुपया- पैसा उसे देने के लिए कहा। दूल्हे के पिता ने सोचा कि जब तक यह बंदूक चलाए तब तक वह भाग खड़ा हो , लेकिन घोड़ी वही अड़ गई। डाकू सोहन ने उसे मारकर उसका रुपया – पैसा, धन -जेवर सब ले लिया।
डाकू सोहन ने उस रुपया -पैसा , धन- जेवर से बढ़िया मकान दुकान बनाए । अब उसने भी अपनी शादी कर ली। शादी के बाद उसके यहां भी एक बेटा पैदा हुआ। बेटा के पैदा होते ही उसकी मां का देहांत हो गया। तब उसने उस बेटे को पाला – पोसा उसकी शादी की।
शादी करते ही बेटा भी बीमार हो गया और इतना बीमार हुआ कि सोहन का धन दौलत रुपया पैसा सब खत्म हो गया। तब उसने अपनी पुत्रवधू को उसके मायके से बुलाकर अपने बेटे से अंतिम मुलाकात कराना उचित समझा।
पुत्र वधू ने अपने पति से आकर रोते हुए कहा कि आप यदि चले गए तो मेरा क्या होगा ? सोहन अब बुड्ढा हो चला था। वह बाहर से बेटा बहू के संवाद को सुन रहा था।
बेटे ने बड़े सहज भाव से कहा कि पिछले जन्म में तू घोड़ी थी। मैं तेरा सवार था और मेरा बाप एक डकैत था। जिसने मुझे लूटा था। मैंने तुझे ऐड लगाई थी ताकि मैं भाग जाऊंगा, लेकिन तूने मुझे धोखा दिया था। आज मैं अपना सब रुपया पैसा अपने बाप से लेकर जा रहा हूं। तुझे अपने किए का फल भोगना ही होगा।
सोहन ने जब यह संवाद सुना तो उसकी आंखें खुल गईं। अगले दिन बेटा का क्रिया कर्म करने के पश्चात गांव वालों को सारी सच्ची घटना बताकर स्वयं भी वनों की ओर चला गया। उसे पता चल गया कि किए हुए कर्म का फल निश्चित ही मिलता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत