खुले में नमाज मुसलमानों के शक्ति प्रदर्शन का एक तरीका है

  • आपने देखा होगा जैसे ही पाकिस्तान ने भारत से क्रिकेट मैच जीता उनके खिलाड़ियों ने पिच पर नमाज पढ़ी और बाद में पाकिस्तान के टीवी पैनलिस्ट और एक्सपर्टस ने इस नमाज मूवमेंट को ये कहकर ग्लोरिफाई किया कि हमने हिंदुओं यानी काफिरों के सामने नमाज पढ़ी… ये हरकत मुसलमानों ने कोई पहली बार नहीं की है।

-अगर आप इतिहास को पढ़ें (मैं स्कूली किताबों के सतही इतिहास की बात नहीं कर रहा हूं) वो इतिहास पढ़ें जो बादशाहों और सुल्तानों ने अपने दरबारी इतिहासकारों से लिखवाया है… तो आपको ये बात बार बार पढ़ने को मिलेगी कि मुसलमान जिस भी हिंदू किले को जीतते थे वहां पर जीतने के बाद बाकायदा फतेह की एक नमाज पढ़ते थे… कि अल्लाह ने हमको फतेह दी… इसी तरह से जीतने वाला बादशाह मस्जिद से खुतबा भी जारी करता था।

-कहने का मतलब ये है कि नमाज कोई सामान्य आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है ये पूरी तरह से साम्राज्यवादी प्रक्रिया है… और इस्लाम के साम्राज्य को फैलाने के लिए किया गया उपक्रम है !

-आध्यात्मिक जीवन यानी स्प्रिचुएल लाइफ में एकांतवास का एक महत्व है । वो खुदा ऊपरवाला अल्लाह गॉड परमेश्वर जो भी है वो एकांत में ही मिल सकता है । ये बात तमाम महापुरुषों की जीवनी से साबित है इस दुनिया में जितने लोगों ने भी आध्यात्मिक रूप से विकास किया है चाहे वो किसी भी धर्म का हो… वो एकांतवास में ही किया है । फिर मुसलमान… इकट्ठा होकर कौन सा आध्यात्मिक कार्य करते हैं ? नमाज घर में क्यों नहीं पढ़ी जा सकती है ? घर से बाहर निकलकर इकट्ठा होना क्यों जरूरी है ?

-दरअसल सच्चाई ये है कि जब मुसलमान अपने घर से बाहर निकलकर मस्जिद के अंदर जाकर सौ डेढ सौ लोगों के साथ नमाज पढता है तो उसे अपनी ताकत का अहसास होता है उसे ये पता चलता है कि वो सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है बल्कि एक भीड़ का हिस्सा है और भीड़ कभी भी विध्वंसक रूप ले सकती है

-आप जरा विचार कीजिए… अभी महाराष्ट्र में जो दंगे हुए वो शुक्रवार के दिन ही हुए… ये समझना बहुत मुश्किल है कि और दूसरे धर्म के लोग जब प्रार्थना करते हैं तो उनका मन शांत हो जाता है लेकिन आखिर नमाज पढ़ने के बाद शुक्रवार के दिन मुसलमानों का मन इतना अशांत कैसे हो जाता है कि वो उपद्रव शुरू कर देते हैं

-मैंने कोई आंकड़ा तो नहीं निकाला है लेकिन अगर हिंदुस्तान के समस्त दंगों की एक लिस्ट बना ली जाए तो ये पता चलेगा कि कम से कम 40 प्रतिशथ दंगे शुक्रवार के दिन ही हुए होंगे । दरअसल नमाज एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मुसलमान अपनी शक्ति दूसरे समुदाय के लोगों को दिखाता है

-अभी मैं इंडिया टीवी पर 18 नवंबर को शाम 6 बजे आ रही एक डिबेट को भी सुन रहा था । उस कार्यक्रम में मेहमान बीजेपी के प्रवक्ता राजीव जेटली जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में एक आर्मी की यूनिट के कैंप के सामने कुछ लोगों ने नमाज पढ़ना शुरू किया और बाद में वहां इतनी भीड़ आने लगी कि आखिर में आर्मी को अपनी यूनिट ही कहीं और शिफ्ट करनी पड़ी । इसी तरह राजीव जेटली ने दिल्ली के ओखला का एक उदाहरण दिया जहां पहले एक सरकारी जमीन पर नमाज पढ़ी जा रही थी और फिर धीरे धीरे उस सरकारी जमीन पर ही मस्जिद बन गई और वहीं पर नमाज पढी जाने लगी । इतना ही नहीं राजीव जेटली तो ये यहां तक दावा कर दिया कि ऐसी कोई जगह बता दीजिए जहां 2 साल मुसलमानों ने नमाज पढ़ी हो और फिर वहां पर मस्जिद ना तैयार हो गई हो

और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है… दरअसल शरारत भी होती है… कुछ मुसलमान जानबूझकर ही ज्यादा जगह घेर कर नमाज पढ़ते हैं ताकी मस्जिद से बाहर निकलकर सड़कें जाम हों… और पूरे मोहल्ले को ये पता चले कि देखो हमारी ताकत कितनी है…

-भाव को समझिए… जब कोई चार लोग गुस्से में आकर किसी वजह से सड़क जाम करते हैं तो वो सिस्टम के प्रति एक गुस्सा प्रकट करते हैं… सड़क जाम करना एक विरोध प्रकट करे का तरीका भी देखा गया है लेकिन जब व्यक्ति शांत भाव से आराम से बैठता है और नमाज सड़क पर पढ़ता है तो वो सिस्टम को कोई गुस्सा नहीं दिखाता है… वो सिस्टम को ये दिखाता है कि तुम मेरे ठेंगे पर हो ! ये एक गुंडई की मानसिकता है कि भाई का जो मन आए करेगा… अपुन भाई है !

-मुझे तो ये बात समझ में नहीं आती है कि आखिर मुसलमानों को कितना विशेषाधिकार चाहिए…. विशेषाधिकार के नाम पर तो उन्होंने पाकिस्तान भी ले लिया फिर पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को भी भगा दिया मार दिया काट दिया उनकी बेटियों का निकाह बलात्कार कर डाला… अब भारत में भी और कितना विशेषाधिकार चाहते हो ? आखिर तुम्हारा हाजमा कैसा है कि पेट में कितना भी समा जाए लेकिन पेट नहीं भरता है !

-सच्चाई ये है कि इस्लाम एक साम्राज्यवादी धर्म है और आपको इसकी कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी ही पड़ेगी और कोई विकल्प भी नहीं है और इसके लिए जरूरी है जनजागरण अभियान।
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