पूरा देश प्रधानमंत्री मोदी के साथ इस बात के लिए खड़ा था कि अब पाकिस्तान से कोई वार्ता नही होगी, और यदि होगी तो वह मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड को पाकिस्तान द्वारा भारत को सौंपने पर ही होगी। पूरे देश ने यह प्रतिज्ञा की थी और इस प्रतिज्ञा को प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं देश को विश्वास में लेकर किया था। अब अचानक ऐसी कौन सी परिस्थितियां बन गयीं कि जिनके चलते पाकिस्तान से वार्ता की इतनी शीघ्रता दिखानी पड़ गयी? पाकिस्तान ने सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने की अपनी किसी भी गतिविधि पर रोक नही लगाई है, वहां आज भी आतंकी शिविर पहले की तरह ही चल रहे हैं, भारत विरोधी नारे वहां आज भी लगते हैं और कश्मीर को भारत से अलग करने की हरसंभव कोशिश को भी पाकिस्तान अंजाम देने से चूकता नही है, लखवी के प्रकरण में उसने अपने मित्र चीन की सहायता से अभी भारत को संयुक्त राष्ट्र में पटखनी दी है, वह भारत में किसी भी आतंकी घटना में अपना हाथ होने से साफ मुकरता रहता है, ऐसी परिस्थितियों में तो हमें नही लगता कि पाकिस्तान के साथ हमारी रूकी हुई वार्ता आगे बढऩी चाहिए थी पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए कांग्रेस ने जिन मूर्खताओं को अतीत में किया है, लगता है मोदी उसी इतिहास को दोहराने की तैयारी कर रहे हैं, जैसी जिद आज मोदी को अंतर्राष्ट्रीय नेता बनने की है वैसी ही जिद कभी कांग्रेस के पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी रही थी। नेहरू अपनी उस जिद के चलते कई जगह देश के हितों से सौदा कर गये, और उन की गलतियों को यह देश आज तक भुगत रहा है। राजनीति में विवेक तो आवश्यक होता है, परंतु भावुकता का यहां कोई औचित्य नही होता। जबकि हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व भावुकता में बहकर विवेक को पीछे छोडक़र निर्णय लेने का अभ्यासी रहा है। नेताओं की इस प्रकार की प्रवृत्ति के कारण देश को कई बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मुंह की खानी पड़ी है।
अभी चीन ने लखवी प्रकरण में जिस प्रकार हमारे मुंह पर चांटा मारा है उसके अपमान से देश अभी उभर नही पाया है, चीन ने उस समय और भी अधिक ढीठता का प्रदर्शन कर दिया है जब प्रधानमंत्री मोदी ने लखवी प्रकरण में चीन के दृष्टिकोण पर भारत की चिंता से उसे अवगत कराया तो उसने स्पष्ट कह दिया कि उसने जो कुछ किया वह प्रमाणों के आधार पर किया। अब यदि चीन मोदी के नवाज शरीफ के सामने झुकने की बात को यह कहकर प्रचारित करे कि हमने एक बार आंख दिखाई तो भारत पाकिस्तान के साथ तुरंत वार्ता की मेज पर आ गया, तो इसमें गलती किसकी होगी?
जागना कलम के सिपाहियों को पड़ेगा, देश के नेता देश का सौदा करने में माहिर है, इन पर यकीन करना स्वयं को धोखा देना होगा। मोदी देश की भावनाओं और देश की अपेक्षाओं का सम्मान करें, उन्हें समझें और उनके अनुसार निर्णय लें तभी वह वास्तविक जननायक बन पाएंगे। यदि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की नीतियों का अनुसरण किया तो देश की जनता उन्हें भी रद्दी की टोकरी में फेंकने में देर नही करेगी।
पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए कांग्रेस ने जिन मूर्खताओं को अतीत में किया है, लगता है मोदी उसी इतिहास को दोहराने की तैयारी कर रहे हैं, जैसी जिद आज मोदी को अंतर्राष्ट्रीय नेता बनने की है वैसी ही जिद कभी कांग्रेस के पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी रही थी। नेहरू अपनी उस जिद के चलते कई जगह देश के हितों से सौदा कर गये, और उन की गलतियों को यह देश आज तक भुगत रहा है। राजनीति में विवेक तो आवश्यक होता है, परंतु भावुकता का यहां कोई औचित्य नही होता। जबकि हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व भावुकता में बहकर विवेक को पीछे छोडक़र निर्णय लेने का अभ्यासी रहा है। नेताओं की इस प्रकार की प्रवृत्ति के कारण देश को कई बार अंतर्राष्टरीय मंचों पर मुंह की खानी पड़ी है।
अभी चीन ने लखवी प्रकरण में जिस प्रकार हमारे मुंह पर चांटा मारा है उसके अपमान से देश अभी उभर नही पाया है, चीन ने उस समय और भी अधिक ढीठता का प्रदर्शन कर दिया है जब प्रधानमंत्री मोदी ने लखवी प्रकरण में चीन के दृष्टिकोण पर भारत की चिंता से उसे अवगत कराया तो उसने स्पष्ट कह दिया कि उसने जो कुछ किया वह प्रमाणों के आधार पर किया। अब यदि चीन मोदी के नवाज शरीफ के सामने झुकने की बात को यह कहकर प्रचारित करे कि हमने एक बार आंख दिखाई तो भारत पाकिस्तान के साथ तुरंत वार्ता की मेज पर आ गया, तो इसमें गलती किसकी होगी?
जागना कलम के सिपाहियों को पड़ेगा, देश के नेता देश का सौदा करने में माहिर है, इन पर यकीन करना स्वयं को धोखा देना होगा। मोदी देश की भावनाओं और देश की अपेक्षाओं का सम्मान करें, उन्हें समझें और उनके अनुसार निर्णय लें तभी वह वास्तविक जननायक बन पाएंगे। यदि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की नीतियों का अनुसरण किया तो देश की जनता उन्हें भी रद्दी की टोकरी में फेंकने में देर नही करेगी।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।