#डॉविवेकआर्य
अम्बेडकरवादी यह जानते हुए भी कि कुछ मूर्खों ने मनुस्मृति में श्लोकों की मिलावट की थी सृष्टि के प्रथम संविधान निर्माता महर्षि मनु के प्रति द्वेष वचनों का प्रयोग करने से पीछे नहीं हटते। मिलावटी अथवा प्रक्षिप्त भाग को छोड़कर बाकि सत्य भाग को स्वीकार करने में सभी का हित है। सत्य यह है कि संसार के किसी भी धार्मिक पुस्तक में धर्म -अधर्म की इतनी सुन्दर परिभाषा नहीं मिलती जितनी सुन्दर परिभाषा मनुस्मृति में मिलती है। मनुस्मृति दहन करने वाले निष्पक्ष होकर चिंतन करेंगे तो उन्हीं का अधिकाधिक लाभ होगा।
मनु स्मृति में धर्म की परिभाषा
धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं ६/९
अर्थात धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।
दूसरे स्थान पर कहा हैं आचार:परमो धर्म १/१०८
अर्थात सदाचार परम धर्म है।
मनुस्मृति ६/९२ में धर्म के दस लक्षण बताए है तो मनुस्मृति १२/५-७ में अधर्म के भी दस लक्षण इस प्रकार बताए हैं :-
पराये द्रव्यों का ध्यान करना, मन से अनिष्ट चिन्तन करना और तथ्य के विपरीत बातों में निवेश करना – ये तीन मानसिक दुष्कर्म हैं।
कठोर और कटु वचन बोलना या लिखना, झूठ बोलना या लिखना, चुगली खाना या चापलूसी और चुगली करते हुए भाव में लिखना तथा असम्बद्ध प्रलाप करना अथवा सम्बन्ध न होते हुए भी किसी पर दोषारोपण करते हुए लिखना – ये चार वाचिक दुष्कर्म हैं।
वस्तु के आधिकारिक स्वामी द्वारा न दी गई अर्थात् अदत्त वस्तु को ले लेना (यथा चोरी, छीना-झपटी, अपहरण अथवा डाका इत्यादि द्वारा ले लेना), अवैधानिक हिंसा करना (यथा क़ानून अपने हाथ में लेते हुए निर्दोषों की हत्या इत्यादि करना) और परायी स्त्री का सेवन (यथा छेड़छाड़, अपहरण अथवा बलात्कार इत्यादि) करना – ये तीन शारीरिक दुष्कर्म हैं।
इस प्रकार तीन मानसिक, चार वाचिक और तीन शारीरिक मिलाकर कुल दस दुष्कर्म अधर्म के लक्षण हैं। जहां ये विद्यमान होंगे वहां निश्चित रूप से अधर्म का वास होगा।
अतः धर्म और अधर्म की उक्त परिभाषाओं को भली-भांति जानते, समझते और मानते हुए सदाचार स्वरूप धर्म का जो पालन करता है और दुराचार स्वरूप अधर्म से पदूर रहता है, वह वैदिक-हिन्दू धर्म का अवलम्बी है
One reply on “धर्म और अधर्म के बारे में क्या कहती है मनुस्मृति ?”
Jo padha gya vo sb acha lga esibtrh aage b manusmriti ki jankari dete rahe dhanyawad