सिकंदर ने काबुल नदी पार की थी, सिंधु नहीं
Alexander ने काबुल नदी पार की थी, सिन्धु नहीं!
सिन्धुकुश (हिन्दुकुश) पर्वत, उससे निकली कुभा (काबुल) नदी और वर्तमान सिन्धु नदी के बीच का भूभाग “कपिशा” (फारसी नाम हिन्दुश एवं अरबी नाम काफिरिस्तान) कहलाता था और कपिशावासी कुभा (काबुल) नदी को सिन्धु (Indus) कहते थे तथा वर्तमान सिन्धु को “भारती” कहते थे क्योंकि भारती के पूर्व का भूभाग “भरतखण्ड” कहलाता था। “भारतवर्ष” में भारती के पश्चिम के भूभाग भी सम्मिलित थे। कुभा व भारती के संगम को “अटक” कहा जाता था तथा अटक के आगे के संयुक्त प्रवाह को वर्तमान सिन्धु के पश्चिमी तट के वासी सिन्धु कहते थे जबकि पूर्वी तट के वासी भारती ही कहते थे। अन्य शब्दों में कहा जाए तो जिस प्रकार देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनन्दा का संगम होने के उपरान्त संयुक्त प्रवाह “गंगा” कहलाता है और भागीरथी को मौलिक गंगा माना जाता है उसी प्रकार अटक में कुभा व भारती का संगम होने के उपरान्त संयुक्त प्रवाह “सिन्धु” कहलाता था और कुभा को मौलिक सिन्धु माना जाता था। कालान्तर में पश्चिम से आए आक्रान्ताओं का प्रभाव बढ़ने पर भारती नाम का प्रचलन क्षीण हो गया।
हिन्दुकुश पर्वत (फारसी नाम हिन्दुकोह) को पार करके Alexander कपिशा में प्रविष्ट हुआ जहाँ उसने पर्याप्त लूटमार की। कपिशा में भारती की चौड़ाई न्यून होने से उसे पार करना सरल होता है। इसी कारण कपिशा व कश्मीर के मध्य आवागमन सरल होता है किन्तु Alexander को भारती पार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि तक्षशिला के राजा आम्भी ने Alexander से कहा कि “उसी पार बने रहो, भारती पार न करो, tax भिजवा रहे हैं।” Alexander मान गया! आम्भी के शिष्ट-मण्डल से tax ग्रहण करने के उपरान्त उसने काबुल नदी (जिसे ग्रीक लेखकों ने Indus लिखा है) को पार करके महाराज पुरुष (पोरस) से युद्ध किया क्योंकि महाराज पुरुष ने tax व अधीनता को नहीं स्वीकारा। भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध ने न केवल Alexander का अपितु उसके सैन्य का उत्साह भी बुरी तरह तोड़कर रख दिया और उसके सैनिक स्वदेश लौटने की माँग करने लगे। इसी के साथ Alexander का विजय-अभियान समाप्त हो गया और वह स्वदेश को लौट पड़ा किन्तु मार्ग में हुए हमलों से घायल और रुग्ण होकर स्वदेश पहुँचने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हुआ।
महाराज पुरुष के नगर (पुर) का नाम “पुरुषपुर” था जो अब “पेशावर” कहलाता है। काबुल नदी के दक्षिण में स्थित पेशावर नगर वर्तमान सिन्धु नदी के पश्चिम में है, न कि पूर्व में!
जो विद्वान् India (हिन्दुस्तान) को वर्तमान Indus के पूर्व में ही मानते हैं वे भली-भाँति समझ लें कि “उनके India” में Alexander कभी प्रविष्ट ही नहीं हुआ!
Alexander वर्तमान सिन्धु के पूर्व में कभी नहीं आया!
क्योंकि Alexander ने वर्तमान सिन्धु कभी पार ही नहीं की!
प्रसंगवश एक तथ्य और समझ लीजिए!
यह जो कहा जाता है कि
१. वर्तमान सिन्धु की सहायक समस्त नदियाँ सिन्धु कही गईं जिनका प्रवाह-क्षेत्र सप्त-सैन्धव प्रदेश कहलाया।
२. नदी-मात्र को भी सिन्धु कहा गया।
इन दोनों बातों का उत्तर है कि
१. सिन्धुकुश (हिन्दुकुश) पर्वत से निकलने वाली नदियाँ ही सिन्धु कहलाईं (जिनमें कुभा प्रतिनिधि सिन्धु है) और उन्हीं नदियों का प्रवाह-क्षेत्र सप्त-सैन्धव कहलाया जो कि भारतीय भूभाग था और कभी-कभी उत्तरगामी नदियों वाले भूभाग हेरात, वाहीक (बाहीक/वाह्लीक/बाह्लीक/बल्ख/बख्त्र/Bactria) आदि भी इसमें सम्मिलित हो जाते थे। अतः सप्त-सैन्धव जो-कुछ भी था वह वर्तमान सिन्धु के पश्चिम में ही था। पञ्चनद प्रदेश (झेलम, चिनाव, रावी, व्यास व सतलज के मध्य स्थित भूभाग) को सप्त-सैन्धव बताना ब्रिटिशर्स का षड्यन्त्र है ताकि भारतभूमि के विस्तार की संकल्पना को संकुचित किया जा सके।
२. नदी-मात्र को सिन्धु कहा जाना कभी व्यवहृत नहीं रहा।
India (हिन्दुस्तान) शब्द को समझ सकें तो यह एक अतिसार्थक शब्द है क्योंकि यह बताता है कि India की पश्चिमोत्तर सीमा हिन्दुकुश पर्वत और तत्कालीन Indus (काबुल) नदी है, न कि वर्तमान Indus!
अर्थात् पश्चिमोत्तर से आने पर हिन्दुकुश पार करते ही अथवा हिन्दुकुश से निकलने वाली किसी भी दक्षिणगामी नदी के निकट पहुँचते ही India (हिन्दुस्तान) में प्रवेश हो जाता है!
वेदों में “भारतीळे सरस्वति!” कहकर हिन्दुकुश पर्वत के दक्षिण की जिन तीन नदियों का वन्दन किया गया है उनके प्रवाह-क्षेत्र भारतभूमि के पश्चिमी सीमान्त हैं। वर्तमान सिन्धु को भारत की पश्चिमी सीमा मानना इतिहासविरुद्ध है!
१. भारती = वर्तमान सिन्धु नदी
२. इळा = कुभा (काबुल) नदी
३. सरस्वती = हेलमन्द नदी
१. महाभारत में सिन्धुराज जयद्रथ का उल्लेख है। सिन्धु राज्य (Greek लेखों में Gedrosia) वर्तमान सिन्धु नदी के पश्चिम में होता था। सिन्धु शब्द का प्रयोग पर्वत (हिन्दुकुश) व नदी (काबुल) के लिए ही नहीं अपितु राज्य (सिन्ध) व समुद्र (अरब सागर) के लिए भी हुआ। वर्तमान सिन्धु नदी के पश्चिम में सिन्धु शब्द का व्यापक प्रयोग होता रहा। पूर्व में यह प्रयोग अद्यतन दुर्लभ है।
२. “पुरुरवा” नामक एक ऋषि कहे गए हैं जो इळा नदी के तट पर रहने के कारण “ऐळ” भी कहलाए। इनकी कथा भी “पुरुष व पुरुषपुर” से नैकट्य रखती है जो कुभा के “इळा/इला/इडा” होने को पुष्ट करता है।
३. हिन्दुकुश पर्वत से ही निकलने वाली हेलमन्द नदी का अन्त एक सरोवर में होता है अतः इसे सरस्वती (सरोवर वाली) कहना सार्थक ही है। इसका फारसी नाम “हरखवती” भी है जो स्पष्टतः सरस्वती से व्युत्पन्न है।
१. सिन्धु क्षेत्र = सिन्ध व बलोचिस्तान
२. कुभा क्षेत्र = कपिशा
३. हेलमन्द क्षेत्र = कन्धार
अर्थात् वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान भारतभूमि के ही भाग हैं जिन पर अभारतीय शासन है!
पुनः कह रहे हैं कि Alexander वर्तमान सिन्धु के पूर्व में अपना पग कभी नहीं रख सका!
सिन्धु नद का उद्गम कहाँ है?
(महाभारत के आलोक में)
यह सुविदित तथ्य है कि सिन्धु, सतलज, कर्णाली और ब्रह्मपुत्र इन चार नदियों के उद्गम तिब्बत में कैलास गिरि के निकट हैं तो फिर इस प्रश्न का औचित्य ही क्या है?
कैलास के निकटवर्ती “मानस सर” (मानसरोवर) को महाभारत में “बिन्दुसर” भी कहा गया है।
उत्तरेण तु कैलासं मैनाकं पर्वतं प्रति।
यियक्षमाणेषु पुरा दानवेषु मया कृतम्॥
चित्रं मणिमयं भाण्डं रम्यं बिन्दुसरः प्रति।
सभायां सत्यसंधस्य यदासीद् वृषपर्वणः॥
हिरण्यशृङ्गः सुमहान् महामणिमयो गिरिः।
रम्यं बिन्दुसरो नाम यत्र राजा भगीरथः॥
द्रष्टुं भागीरथीं गङ्गामुवास बहुलाः समाः।
यत्रेष्टं सर्वभूतानामीश्वरेण महात्मना॥
(सभापर्व, अध्याय ३, श्लोक २,३,१०,११)
उपर्युक्त अन्तिम श्लोक में गङ्गा का उल्लेख है। देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनन्दा का सङ्गम होने के उपरान्त संयुक्त प्रवाह गङ्गा कहलाता है। अलकनन्दा द्वारा अधिक जलापूर्ति की जाती है किन्तु “मौलिक गङ्गा” भागीरथी को ही माना जाता है। अतः भागीरथी का उद्गम ही गङ्गा का उद्गम है जो गोमुखसदृश होने से “गोमुख” कहलाता है। यह गंगोत्री हिमनद (Gangotri glacier) का मुहाना है। गोमुख से निकलती गङ्गा का मूल स्रोत अदृश्य और दुर्गम है। ऐसी मान्यता है कि गङ्गा के गुप्त अन्तःप्रवाह का मूल स्रोत कैलास है। उपर्युक्त श्लोक भी यही द्योतित करते हैं।
अस्तु, इन श्लोकों में सिन्धु नद का कोई उल्लेख नहीं है! कहने को यह भी कहा जा सकता है कि इनमें सतलज और ब्रह्मपुत्र का भी उल्लेख नहीं है किन्तु इस आक्षेप का निराकरण इस तथ्य से हो जाता है कि महाभारत में ही अन्यत्र सिन्धु नद के उद्गम का उल्लेख है और वह कैलास क्षेत्र का ज्ञापक नहीं है। देखें –
सिन्धोश्च प्रभवं गत्वा सिद्धगन्धर्वसेवितम्।
तत्रोष्य रजनीः पञ्च विन्देद् बहुसुवर्णकम्॥
(वनपर्व, अध्याय ८४, श्लोक ४६)
यहाँ कहा जा रहा है कि सिन्धु नद का प्रभव (उद्गम) सिद्धों व गन्धर्वों द्वारा सेवित है। यह तथ्य प्रसिद्ध ही है कि गन्धर्वों का क्षेत्र गान्धार है जो अफगानिस्तान में है अतः वहीं की कोई नदी “मौलिक सिन्धु” है और कैलास क्षेत्र से आने वाली धारा उसकी सहायक नदी है। इस क्षेत्र में केवल एक नदी ऐसी है जिसका पारम्परिक अपर नाम सिन्धु भी है और वह नदी है – कुभा (काबुल), जो हिन्दुकुश पर्वत से निकलती है। हिन्दुकुश संज्ञा का पूर्वार्ध हिन्दु भी सिन्धु शब्द से ही तद्भूत है। “सिन्धुः स्यन्दनात्” अर्थात् शनैः शनैः टपकने अथवा रिसने के कारण सिन्धु का यह नाम पड़ा। कुभा में यह लक्षण पूर्णतया घटित होता है अतः इसका अपर नाम सिन्धु होना सार्थक ही है। केवल ग्रीष्म में इसका जलप्रवाह बढ़ जाता है क्योंकि तब हिन्दुकुश पर्वत में हिमगलन होता है।
अब सहज प्रश्न है कि
यदि कुभा ही सिन्धु है तो कैलास क्षेत्र से आने वाली धारा का नाम क्या है और उसे कब से सिन्धु कहा जाने लगा और क्यों?
इसका उत्तर है कि कैलास क्षेत्र से आने वाली नदी का नाम “भारती” है। भरतखण्ड की सीमा-रेखा होने से इसका यह नाम पड़ा। वस्तुतः अटक में कुभा और भारती का सङ्गम होने के उपरान्त संयुक्त प्रवाह को पश्चिमी लोग सिन्धु कहते थे। भारती द्वारा प्रदत्त जल कुभा की अपेक्षा अधिक होता है। इस सङ्गम के उपरान्त सिन्धु का पाट (दोनों तटों का अन्तर) इतना विस्तीर्ण होता जाता है कि दूसरा तट अदृश्य ही हो जाता है। अति विस्तीर्ण पाट के कारण ही उन्होंने इसे नद कहा जो पुँलिङ्गवाचक सिन्धु नाम से भी ध्वनित होता है। पश्चिमी परम्परा में कहा जाय तो “जहाँ से कुभा विस्तीर्ण होती है वहीं से सिन्धु कहलाने लगती है।” सिन्धु का एक अर्थ समुद्र भी होता है। जहाँ से सिन्धु नद का दूसरा तट दिखना बन्द हो जाता है वहाँ से यह समुद्रवत् ही प्रतीत होता है, इस दृष्टि से भी इसका यह नाम सार्थक है।
पूर्वी लोगों के लिए कैलास क्षेत्र से सागरपर्यन्त अखिल प्रवाह की संज्ञा भारती ही थी। कालान्तर में पारसीक आक्रमणों के परिणामस्वरूप पश्चिमी लोग बड़ी संख्या में सिन्धु के पूर्व में भी बसते गए और उन्होंने इस संज्ञा को पूर्व में इतना सुप्रचलित कर दिया कि भारती नाम चलन से बाहर हो गया फलतः पूर्वी लोगों में यह दोषपूर्ण कथन प्रवर्तित हो गया कि “सिन्धु का उद्गम कैलास क्षेत्र में है।” वस्तुतः निर्दोष कथन यह है कि “भारती का उद्गम कैलास क्षेत्र में है।”
इस घटना की तुलना हम ऍफ्रीका महाद्वीप के उत्तर-पूर्वी देश ईजिप्ट (Egypt) के “नील नद” से कर सकते हैं। नीलिमायुक्त जल के कारण इसका नील नाम पड़ा। नील का उद्गम ईजिप्ट की दक्षिण-पूर्वी सीमा से लगे देश इथियोपिआ की “टाना झील” (Lake Tana) है। सूडान देश की राजधानी “खरटूम” (Khartoum) के उत्तर में नील नद में “विक्टोरिआ झील” (Lake Victoria) से परे सुदूर मध्य ऍफ्रीका से आने वाली एक धारा मिल जाती है। कुछ लोग इस धारा को भी नील कहने लगे जबकि इसके द्वारा प्रदत्त जल अतिन्यून ही है। इसके प्रति आकर्षण का मुख्य कारण इसके उद्गम की सुदूरता ही है। वस्तुतः इथियोपिआई धारा द्वारा प्रायः ८० प्रतिशत जलापूर्ति की जाती है और इसी में बाढ़ आने से वह उपजाऊ मिट्टी प्राप्त होती है जो अति प्राचीन काल से ही ईजिप्ट के कृषिकर्म का आधार रही है। इस प्रकरण में रोचक बात यह है कि मध्य ऍफ्रीकाई धारा को “श्वेत नील” (White Nile) कहते हैं और इथियोपिआई धारा को “नीला नील” (Blue Nile) कहते हैं। “नीला नील” संज्ञा में वस्तुतः नील शब्द की पुनरुक्ति है जो उसके “मौलिक नील” होने का परिचायक है।
श्वेत नील जैसी ही स्थिति कर्णाली नदी की है। अपने दक्षिण-पूर्वी प्रवाह-पथ में कर्णाली नदी नेपाल के “चिस्पानी” नामक स्थान पर “गेरुवा” (बाएँ) व “कौरियाला” (दाएँ) नामक दो प्रवाहों में विभक्त हो जाती है और भारत में उनके पुनः मिलने पर संयुक्त प्रवाह को “घाघरा” कहा जाता है। “बहराइच” के उत्तर-पश्चिम में घाघरा में बाईं ओर से “सरयू” नदी मिल जाती है और संयुक्त प्रवाह सरयू कहलाता है। “बहरामघाट” के निकट सरयू नदी में दाईं ओर से “शारदा” नदी मिल जाती है और संयुक्त प्रवाह सरयू ही कहलाता है। “छपरा” के निकट पहुँचकर सरयू गङ्गा नदी में मिल जाती है। गङ्गा को सर्वाधिक जल इसी नदी से प्राप्त होता है।
कर्णाली के अग्रिम प्रवाह सरयू के दाएँ तट पर स्थित वेदप्रसिद्ध नगरी “अयोध्या” इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की राजधानी रही है। भगीरथ भी इक्ष्वाकुवंशी राजा थे और राम के पूर्वज थे तो सर्वाधिक जलप्रदात्री होने और सुदूर हिमालयपार उद्गम होने मात्र से कर्णाली को ही “भागीरथी” अथवा “गङ्गा” नहीं माना जा सकता! क्योंकि गङ्गाजल की प्रसिद्ध विशेषताएँ सरयू में हैं अथवा नहीं, यह भी तो विचारणीय है!
अस्तु, कुभा ही “मौलिक सिन्धु” है और उसका उद्गम हिन्दुकुश पर्वत में है!
तथा जिस Indus (सिन्धु) को Alexander ने पार किया था वह पूर्वगामिनी कुभा नदी ही थी। इसके उपरान्त जिस राजा पोरस से उसने युद्ध किया उसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी जिसका अर्थ है – पुरुष (पोरस) का दुर्ग। विस्तीर्ण पाट वाले दक्षिणगामी सिन्धु नद को Alexander ने पार नहीं किया क्योंकि पोरस का राज्य सिन्धु नद के पश्चिम में ही था, न कि पूर्व में! Alexander द्वारा Indus पार करने का हेतु “पोरस से युद्ध” ही उल्लिखित है।
तथा दक्षिणगामी सिन्धु नद के पश्चिम का भूभाग “सैन्धव प्रदेश” अथवा India कहलाता था जो भारतवर्ष का पश्चिमी प्रदेश था और सिन्धु नद के पूर्व का भूभाग “सारस्वत प्रदेश” कहलाता था जिसकी पूर्वी सीमा यमुना व चम्बल नदियाँ थीं। Alexander’s invasion of India का इतना ही अर्थ है कि उसने सैन्धव प्रदेश पर आक्रमण किया और वहीं से लौट गया!
ब्रिटिश लेखक Alexander को सिन्धु नद पार कराने पर तुले रहे। अब यही कृत्य काले अंग्रेजों द्वारा सम्पादित किया जा रहा है!
Greek लेखकों द्वारा वर्णित Alexander’s invasion of India (सिकन्दर का भारत पर आक्रमण) पुनः पुनः यह प्रश्न उपस्थित कर देता है कि ग्रीक लेखकों द्वारा वर्णित India क्या था?
Britain व England के भेद की सहायता से इस प्रश्न को सरलतया हल किया जा सकता है। कभी-कभी Britain व England शब्दों का प्रयोग समानार्थक शब्दों की भाँति किया जाता है जबकि हम यह जानते हैं कि Scotland, England व Wales इन तीन देशों का समूह Britain है। यदि इस समूह में तत्रत्य लघु द्वीपों को भी जोड़ दिया जाए तो Great Britain बन जाता है। एक मत के अनुसार Great Britain में Ireland भी सम्मिलित है। किन्तु इस समूह के प्रतिनिधि एवं प्रमुख के स्थान पर England है, फलतः Britain व England शब्दों का प्रयोग समानार्थक शब्दों की भाँति भी किया जाता है। अतः Britain के किसी भी स्थान की घटना को England की घटना के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, भले ही वह स्थान England के बाहर हो।
Britain = Scotland + England + Wales
Great Britain = Scotland + England + Wales + लघुद्वीप + Ireland
अब, इस वस्तुस्थिति की सहायता से हम भारत व India शब्दों पर विचार कर सकते हैं। वस्तुतः ‘सिन्धु’, ‘इन्दु’ व ‘बिन्दु’ नामक तीन देशों का समूह भारत कहलाता था। यदि इस समूह में निकटस्थ द्वीपों को भी जोड़ दिया जाए तो ‘महाभारत’ बन जाता था। एक मत के अनुसार ‘महाभारत’ में ‘Indochina’ (East Indies सहित) भी सम्मिलित था। किन्तु इस समूह के प्रतिनिधि एवं प्रमुख के स्थान पर ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) था, फलतः ‘भारत’ व ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) शब्दों का प्रयोग समानार्थक शब्दों की भाँति भी किया जाता था। अतः ‘भारत’ के किसी भी स्थान की घटना को ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) की घटना के रूप में व्यक्त किया जा सकता था, भले ही वह स्थान ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) के बाहर हो।
भारत = सिन्धु + इन्दु + बिन्दु
महाभारत = सिन्धु + इन्दु + बिन्दु + निकटस्थ द्वीप + Indochina
वस्तुतः सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पश्चिम में स्थित भूभाग ‘सिन्धु’देश कहलाता था। इसी से पारसीक शब्द ‘हिन्दु’ तथा ग्रीक शब्द ‘India’ बने। यहीं पर स्थित ‘कपिशा’ को ‘हिन्दुश’ भी कहा जाता था जिसे बुद्ध की मूर्तियों के आधिक्य के कारण अरब आक्रान्ताओं ने ‘कफिरिस्तान’ की संज्ञा दी, फलतः फारसी भाषा में ‘हिन्दू’ व ‘काफिर’ शब्द पर्यायवाची की भाँति प्रयुक्त होने लगे। सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पूर्व में स्थित भूभाग ‘इन्दु’देश कहलाता था जिससे चाइना देश के ‘इन्तु’ व ‘यिन्तु’ शब्द बने। इसी भूभाग को ‘भरतखण्ड’ भी कहा जाता था। हिमालय के उत्तर में स्थित भूभाग ‘बिन्दु’देश कहलाता था। इसी भूभाग को ‘त्रिविष्टप’ भी कहा जाता था जिससे ‘तिब्बत’ व ‘टिबैट’ (Tibet ) शब्द बने। सिकन्दर का आक्रमण ‘भारत’ के एक भाग ‘सिन्धु’देश (हिन्दु = India) पर हुआ था जो सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पश्चिम में स्थित है। भले ही यह भूभाग सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पूर्व में स्थित ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) के बाहर है किन्तु ‘भारत’ व ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) शब्दों के समानार्थक प्रयोग के कारण यह समझ लिया जाता है कि सिकन्दर का आक्रमण ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) पर हुआ था। उस पर विडम्बना यह है कि
कुछ मताग्रही विद्वान् यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि India शब्द ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) से बना है न कि ‘सिन्धु’देश से, अतः ग्रीक लेखकों ने भूल से ‘सिन्धु’देश के लिए India शब्द का प्रयोग कर दिया।
इस आग्रह को वस्तुस्थिति के शीर्षासन के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है। इन आग्रही लोगों से कोई भी यह नहीं कहता कि
चलिए, मान लिया कि Greek भाषा में India शब्द इन्दुदेश (भरतखण्ड) का वाचक था और Greek लेखकों ने भूल से सिन्धुदेश के लिए India शब्द का प्रयोग कर दिया किन्तु यह तो बताइए कि Greek भाषा में सिन्धुदेश के लिए कोई शब्द था कि नहीं?
बात उतनी भी कठिन नहीं है जितनी बना दी गई है!
महाभारत, पुराण आदि में वर्णित ‘चीन’ (ची अथवा चिन्) शब्द के तात्पर्य-भेद की सहायता से भी इस प्रश्न को सरलतया हल किया जा सकता है। चीन शब्द के 4 तात्पर्य हैं जो क्रमशः पूर्वदिशस्थ हैं –
- चीन अथवा प्राचीन – ‘म्यान्मार’ देश की ‘अराकानयोमा’ (चिन्) पर्वतशृङ्खला व सालवीन नदी के मध्य में स्थित भूभाग को पुराणों में चीन अथवा प्राचीन कहा गया है अर्थात् म्यान्मार ही पौराणिक चीन है। सम्प्रति अराकान पर्वतशृङ्खला का केवल मध्य भाग ही ‘चिन्’ कहलाता है। महाभारत युद्ध के समय प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त का इस चीन देश पर आधिपत्य था। समस्त पूर्वी क्षेत्र के राजा भगदत्त को अपना नेता मानते थे अथवा भगदत्त के ही अधीन थे। महाभारत युद्ध में पाण्डव पक्ष में भगदत्त भी सम्मिलित थे।
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सुचीन – सालवीन नदी तथा ‘विएतनाम’ देश के उत्तर-पूर्व की सी-कियांग अथवा सी-जांग (Si-Kiang or Xi-Jiang) नदी के मध्य में स्थित भूभाग। सी-कियांग नदी ही विएतनाम की वास्तविक उत्तर-पूर्वी सीमा है। हैनान व हांगकांग आदि अनेक द्वीप वस्तुतः विएतनाम के ही हैं जिन्हें “वर्तमान चाइना” देश ने अधिगृहीत कर लिया है।
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अतिचीन – सी-कियांग तथा “वर्तमान चाइना” की यांग्त्ज़ी-क्यांग नदी के मध्य में स्थित भूभाग।
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पराचीन – यांग्त्ज़ी-क्यांग नदी व हुआंग-ह अथवा पीत (Huang-He or Yellow) नदी के मध्य स्थित भूभाग।
पौराणिक काल में प्रथम व द्वितीय चीन पर भारत का आधिपत्य रहा है। द्वितीय चीन को Indochina भी कहा जाता है जिसमें East Indies (Indonesia) भी सम्मिलित था। कभी-कभी East Indies को Indochina से पृथक् भी वर्णित किया जाता है। भारतवर्ष के भीतरी भाग के जन समुद्र मार्ग से इण्डोनेशिआ जाते थे। स्थल मार्ग से जाने वाले चिन् (अराकान) पर्वत को पार नहीं करते थे प्रत्युत समुद्र तट पर चलते हुए वहाँ पहुँचते थे अर्थात् चिन् (अराकान) पर्वतशृङ्खला से ही सीधे इण्डोनेशिआ पहुँच जाते थे। अति प्राचीन काल में जब रामसेतु समुद्र में नहीं डूबा था तब चिन् पर्वतशृङ्खला वर्तमान अण्डमान निकोबार द्वीप समूह से होती हुई सुमात्रा व जावा द्वीपों तक जाती थी और यह भी वहाँ पहुँचने का एक स्थल-मार्ग था।
विचारणीय है कि
पूर्व की ओर बढ़ने पर सतत चीन शब्द का ही प्रयोग क्यों किया गया?
उत्तर अतिसरल है!
ये चारों नाम भारत (प्राग्ज्योतिषपुर) द्वारा दिए गए थे जिन्हें इन भूभागों के निवासियों द्वारा स्वीकार कर लिया गया। “वर्तमान चाइना” देश में तृतीय व चतुर्थ चीन सम्मिलित हैं, अतः वहाँ के निवासियों ने संक्षेप में केवल ‘चाइना’ शब्द को स्वयं के लिए रूढ कर लिया है किन्तु “मौलिक पौराणिक चीन” सदैव प्रथम चीन ही है।
सम्प्रति सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पूर्व के भूभाग को India कहा जा रहा है किन्तु Greek लेखकों का “मौलिक India” तो सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पश्चिम का भूभाग ही है। India शब्द के व्युत्पत्तिकारक “Indus अथवा सिन्धु” नद के नाम पर ही प्रसिद्ध “सिन्धु अथवा सिन्ध” राज्य भी सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पश्चिम में है जो जीवित प्रमाण है कि Greek लेखकों का “मौलिक India” सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पश्चिम का भूभाग ही है। इतिहास साक्षी है कि सौवीर राज्य अथवा सिन्धु-भंग (Indus delta) पर सिन्धु नद के दक्षिणी प्रवाह के पश्चिम के शासकों के आधिपत्य के पूर्व उसे सिन्धु राज्य का एक भाग नहीं अपितु स्वतन्त्र सौवीर राज्य कहते थे। महाभारत में सिन्धुराज को ‘जयद्रथ’ कहा गया है जिसका Greek लेखों में वर्णित Indus नद के पश्चिमवर्ती तथा अरब सागर के तटवर्ती ‘Gedrosia’ (जेड्रोसिआ) राज्य से पूर्ण साम्य है।
जो लोग ऐसा कहते हैं कि India शब्द ‘इन्दु’देश (भरतखण्ड) से बना है न कि ‘सिन्धु’देश से, अतः Greek लेखकों ने भूल से ‘सिन्धु’देश के लिए India शब्द का प्रयोग कर दिया,
वे भूल रहे हैं कि सिन्धु नद को Greek भाषा में Indus कहा गया है!
बात उतनी भी कठिन नहीं है जितनी बना दी गई है!
✍🏻प्रचंड प्रद्योत