पंकज चतुर्वेदी
चेन्नै और उसके आसपास के शहरी इलाकों की रिहायशी बस्तियों के जलमग्न होने की घटना पहली बार नहीं है। इस इलाके ने सात साल पहले, सन 2015 में भी ऐसी ही मुसीबतें भोगी थीं। यह सच है कि बेमौसम बारिश अप्रत्याशित है, लेकिन जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव सबसे पहले तटीय शहरों में पड़ने की चेतावनी कोई तो नई नहीं हैं। ऐसे में लगता है कि उन पिछले अनुभवों से स्थानीय प्रशासन ने कुछ भी नहीं सीखा। पुराने मद्रास शहर की पारंपरिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी कि 15 मिमी तक भी पानी बरसने पर शहर की जल निधियों में ही पानी एकत्र होता और वे उफनते तो पानी समुद्र में चला जाता। पर नए रूप में, देश का वह शहर जो अपनी आधुनिकता, चमक-दमक और रफ्तार के लिए जग-प्रसिद्ध है, जरा सी बारिश में ही तर-ब-तर हो जाता है तो निश्चित रूप से आधुनिकता के मॉडल पर सवाल उठते हैं।
चेन्नै कभी समुद्र के किनारे का छोटा सा गांव ‘मद्रासपट्टनम’ था। अनियोजित विकास, शरणार्थी समस्या और जल निधियों की उपेक्षा के चलते आज यह महानगर एक विशालकाय शहरी-झुग्गी में बदल गया है। यहां की सड़कों की कुल लंबाई 2847 किलोमीटर है और इसका गंदा पानी ढोने के लिए नालियों की लंबाई महज 855 किलोमीटर। लेकिन इस शहर में चाहे जितनी भी बारिश हो, उसे सहेजने और सीमा से अधिक जल को समुद्र तक छोड़कर आने के लिए यहां नदियों, झीलों, तालाबों और नहरों की सुगठित व्यवस्था थी।
चेन्नै शहर की खूबसूरती और लाइफ लाइन कही जाने वाली दो नदियों- अडयार और कूवम के साथ समाज ने जो बुरा सलूक किया, प्रकृति ने इस बारिश में उसे इसी का मजा चखाया। अडयार नदी का हाल क्या हो गया था, इसका अंदाजा इस बात से मिलता है कि उसके पानी के निकलने की कोई राह भी नहीं बची थी। तेज बारिश में शहर का पानी अडयार में आया, पर इसका दूसरा सिरा रेत के ढेर से बंद था। नतीजा, पीछे धकेले गए पानी ने शहर में जमकर तबाही मचाई। स्थिति यह है कि आज दो हफ्ते से अधिक समय बीत जाने के बाद भी पानी को रास्ता नहीं मिल रहा है। अडयार नदी में शहर के 700 से ज्यादा नालों का पानी बगैर किसी परिशोधन के तो मिलता ही है, पंपल औद्योगिक क्षेत्र का रासायनिक अपशिष्ट इसको और भी जहरीला बनाता है।
कूवम शब्द ‘कूपं’ से बना है- जिसका अर्थ होता है कुआं। कूवम नदी 75 से ज्यादा तालाबों के अतिरिक्त जल को अपने में सहेजकर तिरुवल्लूर जिले में कूपं नामक स्थल से निकलती है। दो सदी पहले तक इसका उद्गम धरमपुरा जिले में था, भौगोलिक बदलाव के कारण इसका उद्ग स्थल बदल गया। कूवम नदी चेन्नै शहर में अरुणाबक्कम नामक स्थान से प्रवेश करती है और फिर 18 किलोमीटर तक शहर के ठीक बीच से निकल कर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसका पूरा तट झुग्गियों से पटा है। इस तरह कोई 30 लाख लोगों का जल-मल सीधे ही इसमें मिलता है।
यह बारिश चेन्नै शहर के लिए जलवायु परिवर्तन की तगड़ी मार के आगमन की बानगी है। यह संकट समय के साथ और क्रूर होगा और इससे बचने के लिए अनिवार्य है कि शहर के पारंपरिक तालाबों, सरोवरों को अतिक्रमण मुक्त कर उनके प्राकृतिक रास्तों को खाली करवाया जाए। नदियों और नहर के किनारों से अवैध बस्तियों को हटाकर महानगर की सीवर व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना होगा। ये नदियां सीधे-सीधे 100 से ज्यादा तालाबों से जुड़ी हैं। ऐसे में जाहिर है कि जब इनकी सहने की सीमा समाप्त हो जाएगी, तो इससे जुड़े पावन सरोवर भी गंदगी व प्रदूषण से बचे नहीं रह पाएंगे।
यह तो सभी जानते ही हैं कि चेन्नै सालभर भीषण जल संकट का शिकार रहता है। यह मसला केवल चेन्नै के जल-संकट का नहीं, बल्कि देश के अधिकांश शहरों के अस्तित्व का है। ये शहर तभी सुरक्षित रहेंगे जब वहां की जल निधियों को उनका पुराना वैभव और सम्मान वापस मिलेगा। चेन्नै को मदद की दरकार तो है, लेकिन यह गंभीर चेतावनी सभी के लिए है कि अपने गांव-कस्बे के कुओं, बावड़ी, तालाब, झीलों से अवैध कब्जे हटा लें।